Description
Jab Chije Der Se Aati Hain Jeevan Mei (Poems) by Nishant
‘जीवन हो तुम’ के कवि निशान्त का नया संग्रह है- ‘जब चीजें देर से आती हैं जीवन में’। संग्रह की प्रारम्भिक कविताओं में बेरोजगारी का दंश झेलता युवा है। युवावस्था उमंग, उत्साह, ऊर्जा का समय है। परन्तु देश का युवक रोजगार की तलाश में भटकता हुआ अपने जीवन की ऊर्जा, उमंग नष्ट कर रहा है। साथ ही ध्यान देने की बात है कि ये युवा शिक्षित युवा हैं, जिनके बारे में राजनेता से लेकर दार्शनिक तक बताते हैं कि ये युवा देश और समाज का भविष्य हैं। किन्तु बेरोजगारी ने इनके सामर्थ्य को पराभूत सा कर दिया है- ‘उच्च शिक्षा को मजदूरों की भेड़ में तब्दील कर दिया गया है।’ यह जो चीजों का देर से आना है जीवन में वह भी इसी प्रसंग में है- फिर चाहे वह प्रेम हो, गार्हस्थ-दाम्पत्य हो या जीवन का कोई और सन्दर्भ।
दूसरी खास बात है इन कविताओं में- व्यक्तिवाचक संज्ञाओं की उपस्थिति। काव्य व्यापार प्रतीकों, बिम्बों में ध्वनित होता है। ऐसा नहीं है कि निशान्त की कविताओं में प्रतीक या बिम्ब नहीं हैं- ‘कभी-कभी बहुत मन करता है मेरा/ एक जिन्दा, चलता हुआ, बच्चा और प्यारा सा खरगोश देखने का।’ परन्तु कविता में व्यक्तिवाचक संज्ञाओं का इस्तेमाल अतिरिक्त ध्यानाकर्षण करता है। कविताओं में व्यक्तिवाचक संज्ञाओं के इस्तेमाल से कवि ने इन्हें समाज के ठोस यथार्थ का आईना बनाया। इसके बावजूद ये अपनी अन्तिम परिणति में प्रवृत्तिमूलक ही बनती हैं। इससे इन कविताओं में एक तनाव का निर्माण होता है। यह तनाव हमारे समाज और उसमें रह रहे मनुष्यों की गतिकी का पर्याय बन जाता है।
निशान्त की कविताएँ अपने समय का गहरा अन्तर्पाठ हैं। वे कविताओं में सामाजिक परिवर्तन को बहुत बारीकी से पकड़ने की कोशिश करते हैं। विवरण से व्यंग्यार्थ तक पहुँच पाने की उनकी क्षमता सराहनीय है।
आशा की जानी चाहिए कि इनके पिछले संग्रहों की तरह इस
संग्रह का भी स्वागत होगा।
About the Author
निशान्त
जन्म : 4 अक्टूबर 1978, लालगंज, बस्ती (उ.प्र.) ।
एम. ए., एम. फिल., पी-एच.डी. (हिन्दी) की पढ़ाई जेएनयू से।
कृतियाँ : कविता संग्रह क्रमशः ‘जवान होते हुए लड़के का कबूलनामा (2009),
‘जी हाँ, लिख रहा हूँ…’ (2012), ‘जीवन हो तुम’ (2019) में तथा जीवनानन्द दास पर हिन्दी में पहली आलोचना पुस्तक ‘जीवनानन्द दास और आधुनिक हिन्दी कविता’ (2013) और ‘कविता पाठक आलोचना’ (2022) में प्रकाशित।
कविताओं का अँग्रेजी, उर्दू, बांग्ला, ओड़िया, मराठी, गुजराती सहित कई भारतीय भाषाओं में अनुवाद।
बचपन से बंगाल में रहनवारी। बांग्ला साहित्य और फिल्मों से लगाव। रवीन्द्रनाथ टैगोर की 13 कविताओं पर आधारित फिल्म त्रयोदशी में अन्तरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त फिल्मकार और कवि बुद्धदेव दासगुप्ता के साथ बतौर सहायक निर्देशक और अभिनेता कार्य।
अनेक वरिष्ठ एवं युवा कवियों की कविताओं का बांग्ला से हिन्दी अनुवाद। अनुवाद की तीन पुस्तकें प्रकाशित ।
सम्मान : कविता के लिए भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार, नागार्जुन शिखर सम्मान, शब्द साधना युवा सम्मान, नागार्जुन प्रथम कृति सम्मान, मलखान सिंह सिसोदिया पुरस्कार, देवीशंकर अवस्थी पुस्कार से सम्मानित ।
वर्तमान में काजी नजरुल विश्वविद्यालय में सहायक प्राध्यापक ।
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