Is Tarah Ek Adhyaya (Poems) By Naval Shukla

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इस तरह एक अध्याय – नवल शुक्ल


लगभग एक दशक पहले नवल शुक्ल ने अपने पहले कविता संग्रह ‘दसों दिशाओं में’ के द्वारा समकालीन कविता में नथी ताजगी और युवा पारदर्शिता के साथ प्रवेश किया था। तब से अब तक समय के समस्त परिवर्तनों की प्रतिकृतियाँ, अनुगूँजें और वयस्कताएँ उनकी कविता में चुपचाप घटित होती रही हैं।
नवले बहुत चुपचाप ढंग से, किसी एकान्त भाषिक सक्रियता में, बहुत अधिक उदाहरणों से परहेज करते हुए, चहुत कम शब्दों की कविता के मिजाज के कवि रहे हैं। उनकी कविताएँ भाषा को बहुत किफायत के साथ धारण करने वाले जीवन भर विस्तृत सन्नाटे को अभिव्यक्तियाँ हैं। एक संकटग्रस्त समय में निरनार ‘बहुत कम आदमी’ और ‘बहुत कम नागरिक’ होते जाते मनुष्य की स्मृत्तियों और विस्मरणों के मध्य उसके घर संसार, स्वप्नों-आकांक्षाओं, उल्लास और हताशा से भरी दिनचर्या को नवल की कविताओं की मूल आसक्ति कह सकते हैं। वे बार-बार वहाँ लौटते हैं जहाँ थोड़े से खुले साफ नीले लाकाश और पृथ्वी के छोटे से अँधेरे में ये जगहें अब भी मौजूद हैं, जहाँ असंख्य आधी-अधूरो, मामूली और असमाप्त इच्छाओं का नन्हे नन्हे नक्षत्रों की तरह वास है। यह सम्भवतः हम सभी के सुदूर अतीत या बचपन का कोई दृश्य है अथवा कभी बहुत पहले देखी गयी किसी फिल्म का कोई दृश्य या फिर यय के किसी और जन्म-काल में सुनी गयी किसी कहानी का कोई टुकड़ा।
एक अध्याय इस तरह एक
नवल शुक्ल
नवल की कविताएँ बार-बार जैसे किसी तत्क्षण काव्य- चेष्टा में इच्छाओं की उसी विस्मृत जगह की ओर लौटती हैं और वर्तमान समय की निस्संवेद्य निरपेक्षता का एक मार्मिक’ क्रिटीक’ निर्मित करती हैं।
नवल परिजन सम्बन्धों को बिरल और विलक्षण रागात्मकता के अपनी तरह के अकेले कवि हैं। पर, माँ, पिता, बेटा, मित्र, सहकर्मी सभी के प्रति एक सघन व्याकुल रागात्मकता कई बार उनकी कविताओं
को वह पवित्र और अबोध बचपन की हार्दिकता देती है, जो उनकी कविताओं का मूल स्वभाव बनाता है। ‘मैं संसाधन नहीं था’ और ‘मेरा मन छाता है’ के अतिरिक्त भी उनकी कई ऐसी कविताएँ हैं जहाँ उनकी यह रागात्मकता किसी दीये सी जलती हुई, अपनी ही जरा सी रोशनी में काँपती किसी चुपचाप लौ की तरह निसुत हो रही है। उस धुंधली सी रोशनी में ही हम पाते हैं एक कोई पीछे अतीत में छूट गया अपना गाँव, एक घर, जहाँ एक बच्चा खिलौनों और तरह-तरह के फोड़ों के साथ किसी खेल में डूबा हुआ है और स्मृत्ति के उस धूल-धूसरित कमरे में किसी बहुत प्राचीन कहानी के किसी दृश्प में विलीन हो रहा है।
जाहिर है, नवल की कविताओं को पढ़ते हुए कई बार हम उन जगहों तक स्वयं भी पहुँचते हैं, जहाँ स्वयं हमारे बचपन की कोई खोयी हुई नोटबुक या कोई एलबम मौजूद है। और हम वहाँ स्वयं को पहचानते हैं और अचानक इस खोज से हतप्रभ रह जाते हैं।
लेकिन एक सब यह भी है कि ये कविताएँ नवल को कविता के बदलाव या संक्रमण के दौर की कविताएँ हैं। किसी अगली सम्भावना या परिणति की ओर चुपचाप अपनी ही गति और स्वभाव में बढ़ती हुई।

– उदय प्रकाश


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Is Tarah Ek Adhyaya (Poems) By Naval Shukla

नवल शुक्ल

जन्म: 27 जनवरी, 1958, तिवारी डीह, हरिना माड़, पलामू, झारखंड।
प्रकाशन : दसों दिशाओं में, मातृ भाषा में (कविता-
संग्रह); तिलोका वायकान (उपन्यास) नदी का पानी तुम्हारा है, बच्चा अभी दोस्त के साथ उड़ रहा है (बाल कविता-संग्रह); कविता में मध्यप्रदेश, राजा पेमल शाह (नाटक); मदारीपुर जंक्शन (नाट्य रूपान्तरण); मुरिया, दंडामी माड़िया, मध्यप्रदेश के धातु शिल्प और बसदेवा गायकी (मोनोग्राफ्स)।
सम्मान : पहले कविता संग्रह के लिए रामविलास शर्मा सम्मान। जर्मनी और इंग्लैंड की सांस्कृतिक यात्राएँ।
सम्पर्क : एम-28, निराला नगर, भदभदा रोड,
भोपाल-462003

SKU: Is Tarah Ek Adhyaya By Naval Shukla-PB
Category:
Author

Naval Shukla

Binding

Paperback

Language

Hindi

ISBN

978-93-6201-405-4

Pages

112

Publication date

20-01-2025

Publisher

Setu Prakashan Samuh

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