Alfatiya (Short Story) By Dhruv Shukla

15% off

अलफतिया – ध्रुव शुक्ल


देशज संस्कारों, विचारों और खरे जीवनानुभवों से रचित एक अविस्मरणीय और दुर्लभ गल्प है अलफतिया। हिन्दी की अपनी परम्परा की कथाकहन के विन्यास को, आधुनिक जीवन के व्यापक और बहुविध अनुभवों से समृद्ध करती, यह कथा इतनी प्रवाहपूर्ण और इतनी आत्मीय है, कि मुझ जैसा पाठक, उसमें सहज ही अपने घर, शहर और अपनी देश-दुनिया की बीसियों छवियों को साक्षात अनुभव करने सा देखता रहता है। इसकी बिम्बात्मकता, केवल शैल्पिक युक्ति के स्तर पर नहीं, मर्म में रच बस जाने वाली पाठानुभूति की तरह है। इसकी बतकही इसके मुख्य चरित्र अलफतिया को, इस तरह से रचती है, कि हम उसके कहने को ही नहीं, बल्कि उसके विविधरंगी जीवन को भी महसूस करते हैं। लेकिन यह पूरा किस्सा, महज उसकी बतकही का नहीं, हमारे आज के जीवन का एक संवेदनासिक्त और विचार-विवेक समृद्ध किस्सा है। गल्प के सच को, जीवन के सत्य, बल्कि सचों में रूपान्तरित करते, इस किस्से में मोड़ तो हैं, और दृश्य भी, लेकिन कथा हमें भटकाती नहीं है और कहीं अटकाती भी नहीं।
लोकचित्त की गहरी और सहज अन्तर्दृष्टि के साथ गल्प को विकसित करने की कोशिश की गयी है। अकादमिक अर्थ में लोक और शिष्ट के विभेद के रूप में नहीं, बल्कि वास्तविक, व्यावहारिक जीवन के रोजमर्रा में, सहज ही पहचान में आने वाले लोगों के सोचविचार और जीवनविधि के अर्थ में ही, पूरी कथा में इस चित्त की साकारता के विविध रूपाकार कल्पनाशील भाषा में सिरजे गये हैं। सम्भवतः इस गल्प की बुनियादी विशेषता यही है और शायद इसकी रचना की अन्तः प्रेरणा भी।
भाषा में जो प्रवहमानता और अनुभवगम्य प्रामाणिकता महसूस होती है, वह सिर्फ अलफतिया या बाद में लेडी अलफतिया के कथन वैशिष्ट्य में सीमित नहीं है, बल्कि निरन्तर आने जाने वाले लोगों और जगहों में गतिशील स्वतःस्फूर्त्त लोकभावना है, जो भाषा को सिर्फ माध्यम नहीं रहने देती, बल्कि अनुभव कराती है, कि वही इसकी अन्तर्वस्तु की जननी है। इसकी भाषा में लीलाभाव तो पर्याप्त है, पर उसके अलावा, उसमें भारतीयों के साम्प्रतिक और प्रासंगिक जीवन की अनेक स्मृतियाँ भी, जीवन्त और गतिशील होकर पाठक के अनुभव संसार को आन्दोलित करती हैं।
यह कथा एक कवि की गद्यभाषा में लिखी गयी है। अनावश्यक ब्यौरों से दूर, इस कथा में ग्रामीण जीवन की स्मृतियों की मासूमियत का विन्यास है। जब हम अलफतिया और लेडी अलफतिया को गाँव में जाकर बसता देखते हैं, तो गाँव बनाम शहर, की एक पुरानी बहस कथा में आकार लेने लगती है। कथा के इस अंश में ग्रामीण सहजता की नैसर्गिकता है और साथ-साथ गाँव से शहर भागते लोगों के हवाले से, वहाँ आते बदलाव की झलकियाँ भी। मुक्त और सुन्दर प्रकृति को कथाकार, भाषा में पूरे मन से आत्मसात करता है और जैसे वहीं बस जाता है। कविता की लय में ही विकसती है पूरी कहानी और पाठक को अन्तरंग बिम्बात्मकता के संसार में डुबो देती है।
कोरोना महामारी के समय की दहशत, तकलीफ, बेकारी, बदहाली के बीच से गुजरती कथा, अपने विकसित रूप में सभ्यता-समीक्षा की भाषा में बदल जाती है। बाजारू भोगवाद को, कोरोना जैसी ही नहीं, बल्कि उससे भी बड़ी और खतरनाक बीमारी के रूप में देखता कथाकार, अपने अन्तर्मन की संस्कारी भाषा में उसका प्रतिरोध रचता सा प्रतीत होता है। शायद पूरी कथा में इसीलिए देसी चिन्तनशीलता की एक अन्तर्लय है। अन्तर्मन की यह पुकार ही सहजता के साथ कहानी को आगे बढ़ाती है। अलफतिया एक प्रासंगिक, रोचक और पठनीय कथा है, जो हमें अपने आत्मालोचन की दिशा में बढ़ने के लिए उद्‌द्बुद्ध करती है।

– प्रभात त्रिपाठी

149.00175.00

In stock

Alfatiya (Short Story) By Dhruv Shukla


About the Author

ध्रुव शुक्ल

11 मार्च, 1953 को मध्य प्रदेश के सागर शहर में जन्मे ध्रुव शुक्ल विगत चालीस वर्षों से हिन्दी की साहित्यिक बिरादरी में शामिल हैं। उन्होंने महात्मा गांधी की पुस्तक ‘हिन्द स्वराज्य’ को केन्द्र में रखकर ‘पूज्य पिता के सहज सत्य पर’ नाम से एक चर्चित पुस्तक के अलावा मध्य प्रदेश के लोक आख्यान, भीलों के मदनोत्सव भगोरिया और आदिवासी संस्कृति पर मोनोग्राफ़ लेखन भी किया है। उनकी पुस्तकों में अब तक सात कविता-संग्रह, शाइरी की एक किताब, तीन उपन्यास, एक कहानी संग्रह, एक आलोचना पुस्तक, कृति-केन्द्रित समीक्षा-पुस्तक, सामयिक विषयों पर तीन निबन्ध संग्रह। सेतु प्रकाशन से ध्रुव शुक्ल की संचयिता ‘यह दिन सब पर उगा है’, ‘पण्डित कुमार गन्धर्व की जीवनी’ और ‘वा घर सबसे न्यारा’ प्रकाशित।
मध्य प्रदेश कला परिषद् और बाद में भारत भवन भोपाल से प्रकाशित पत्रिका पूर्वग्रह में आठ वर्षों तक सह-सम्पादक और बाद में मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी के सचिव और साक्षात्कार पत्रिका के सम्पादक रहे। मध्य प्रदेश शासन ने 2019 में ध्रुव शुक्ल को धर्मपाल शोधपीठ के निदेशक पद पर मनोनीत किया। ध्रुव शुक्ल को भारत के राष्ट्रपति ने कथा अवॉर्ड से, गांधी शान्ति प्रतिष्ठान ने गांधी पीस अवॉर्ड फॉर लिटरेचर से, मध्य प्रदेश लेखक संघ ने अक्षर आदित्य सम्मान से, मध्य प्रदेश कला परिषद् ने कविता के लिए रज्जा पुरस्कार से, आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी राष्ट्रीय स्मारक समिति ने लोकसेवा सम्मान से सम्मानित किया है। उन्हें कृष्ण बलदेव वैद सम्मान भी प्रदान किया गया है। भारत सरकार के संस्कृति विभाग और रजा फाउण्डेशन दिल्ली ने उन्हें फैलोशिप के लिए चुना है।

SKU: Alfatiya By Dhruv Shukla-PB
Category:
Author

Dhruv Shukla

Binding

Paperback

Language

Hindi

ISBN

978-93-6201-174-9

Pages

102

Publication date

30-01-2025

Publisher

Setu Prakashan Samuh

Customer Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Alfatiya (Short Story) By Dhruv Shukla”

You may also like…

  • Maa, March Aur Mrityu By Sharmila Jalan (Paperback)

    Maa, March Aur Mrityu By Sharmila Jalan

    “यहाँ मैं यह भी याद करता हूँ कि इन कहानियों के लेखक की मानसिकता संकीर्ण, अपाहिज और विभाजित नहीं है और वे औसत से औसत अनुभव को एक अलग रोशनी में, अपनी निगाहों से खुले हुए मन और मस्तिष्क से बिना किसी पूर्वग्रह से देखने के लिए प्रयत्नशील बनी रहती है। लेखक का इस तरह का प्रयत्न और प्रतिरोध भी लेखक की कुछ कहानियों में उस महत्वपूर्ण चीज़ को जन्म देता है जिसे टॉमस मान प्रिसिजन (precision) कहा करते थे। मैंने यहाँ लेखक की लचीली अविभाजित और स्वस्थ दृष्टि की बात इसलिए भी की है कि एक खुला हुआ दिमाग ही यह जान पाता है कि मानवीय समझ और मानवीय व्यवहार में ही कुछ ऐसे तत्त्व हमेशा शामिल रहते हैं जिनका सरलीकरण किया ही नहीं जा सकता है और अगर ऐसा किया जाए तब मानवीय स्थितियों को उसके समूचेपन में समझा ही नहीं जा सकता है, व्यक्त ही नहीं किया जा सकता है। इन कहानियों के लेखक की गहरी प्रश्नाकुलता भी है कि ये कहानियाँ न अपने परिवेशों और पात्रों का सरलीकरण करती हैं और न ही कहानियों में आती परिस्थितियों और प्रश्नों का। इन कहानियों का लेखक अपने भीतर इस समझ की गहरी पहचान लिये रहता है कि अच्छाई के भीतर बुराई का अंश छिपा रह सकता है और बुराई के भीतर अच्छाई का। और किसी भी लेखक के भीतर अच्छे-बुरे की संतुलित संवेदनशील और सच्ची समझ की सघन उपस्थिति बनी रहनी चाहिए।”


    Kindle E-Book Also Available
    Available on Amazon Kindle

    158.00175.00
  • Vang Chii By Manish Vaidya

    ये कहानियाँ उत्तर भूमण्डलीकृत हमारे समाज का वीभत्स, क्रूर लेकिन मुस्कराता और अपनी चमक- दमक से हमें लुभाता हुआ चेहरा हमारे सामने लाता है। मानवीय संवेदनाओं के चितेरे मनीष ने आज के दौर को अनूठे ढंग और खूबी से प्रस्तुत किया है और उसमें भी वे ख़ासकर छोटे-छोटे हुनरमन्द लोगों के रोजगार के कम या बन्द होने की चिन्ता को कहानी की केन्द्रीय चिन्ता बनाकर बड़े फ़लक पर ले जाते हैं या लगातार टूटते गाँव-क़स्बों को जिस शिद्दत और अपनेपन से सामने रखते हैं, वह साबित करता है कि अपने गाँव की मिट्टी से जुड़े रहने के साथ मनीष समाज में तेजी से घट रहे बदलावों और छोटे तथा दबे-कुचले लोगों के लिए सतत क्रूर होते जा रहे समय की नब्ज़ को पहचानते हैं और अपने किरदारों के जरिये उन्हें अपनी कहानियों में जगह देते हैं। दुनिया के एक बाजार में तब्दील होते जाने और हमारे बीच से मनुष्यता, प्रेम और करुणा के कमतर होते जाने की पीड़ा को व्यक्त करती बड़बोलेपन और नारेबाज़ी से दूर उनकी यथार्थवादी कहानियों में विचार अण्डरटोन में भीनी गन्ध की तरह पाठक को छूकर निकल जाता है लेकिन उस गन्ध की महक गहरे तक धँसकर पाठक के मन में लम्बे वक़्त तक बनी रहती है।
    Buy This Book Instantly thru RazorPay (15% + 5% extra discount)

    Or use Add to cart button to use our shopping cart

    234.00275.00
  • Ramoo Ka Ankaha Dard (Novel) By Taj Hassan

    रामू का अनकहा दर्द – ताज हसन


    करेह नदी के तट पर स्थित तेसरी नामक गाँव के बाशिन्दे मजदूर, दुकानदार और कारीगर-मिस्त्री आदि के रूप में पड़ोस के भगतपुर के उच्चवर्णीय भूस्वामियों की सेवा करते हुए अपना गुजारा करते हैं। सैकड़ों साल से वहाँ जिन्दगी इसी ढर्रे पर चलती रहती है, इसमें खलल उस दिन पड़ता है जिस दिन रामू हज्जाम, तेसरी गाँव का एक नाई, भगतपुर के मुखिया के हाथों बुरी तरह पीटा जाता है, सिर्फ इसलिए कि दाढ़ी बनाते समय संयोगवश मुखिया का गाल थोड़ा सा कट गया था। अन्याय के खिलाफ गुस्से से उबलता हज्जाम का बेटा, बदला लेने के लिए नदी के उस पार रहस्यमय युवाओं के समूह, जो अपने को माओवादी कहते हैं, से जा मिलता है; फिर घटनाओं का एक ऐसा सिलसिला शुरू होता है जो दो गाँवों के बीच के नाजुक शक्ति सन्तुलन को हमेशा के लिए छिन-भिन्न कर देता है। कुल मिलाकर, रामू का अनकहा दर्द भारत के दूरदराज में गरीबी, गैरबराबरी और जातिगत हिंसा का जीवन्त चित्रण है।

    276.00325.00
  • Raag Virag Aur Anya Kahaniyan By Sharmila Jalan

    Raag Virag Aur Anya Kahaniyan By Sharmila Jalan
    राग विराग और अन्य कहानियां -शर्मिला बोहरा जालान

    252.00280.00
  • Johar Jharkhand Aadiwasi Janjeevan Ki Kahaniyan By Rakesh Kumar Singh

    जोहार झारखण्ड
    आदिवासी जनजीवन की कहानियाँ – राकेश कुमार सिंह


    आदिवासी जन-जीवन पर लिखने वाले गैरआदिवासी रचनाकारों में राकेश कुमार सिंह एक महत्त्वपूर्ण नाम हैं। राकेश कुमार सिंह का प्रस्तुत कथा संग्रह ‘जोहार झारखण्ड’ भारत के आदिवासी बहुल राज्य झारखण्ड की पृष्ठभूमि पर लिखी कहानियों का विशिष्ट संग्रह है।
    प्रस्तुत संग्रह में ‘ जोहार झारखण्ड’ शीर्षक से कोई कहानी नहीं है बल्कि यह शब्दवन्ध झारखण्ड के लोक का रूपक है… एक अन्तर्धारा है जो इस संग्रह में संयोजित हर कहानी में उपस्थित है।
    यह शब्दबन्ध झारखण्ड की सांस्कृतिक भौगोलिक विरासत का प्रतीक है जिसका अर्थ है स्वागतम्, अभिवादन, नमस्कार… आतिथ्य की भावना।
    ‘जोहार झारखण्ड’ की कहानियाँ पाठकों को झारखण्ड के गाँवों, बीहड़ वनों और कस्बों के सीमान्त पर बसे आदिवासी समाज तक पहुँचने को आमन्त्रित करती पगडण्डियाँ हैं।
    झारखण्ड के पठार को उसके श्वेत श्याम धूसर रंगों में चित्रित करता यह कथा संग्रह हिन्दी कहानी में बनैली बयार की अनुभूति है जो सघन वन में पैठती जाती कहानियों की भाषा में गीत (सिम्फनी) की करुणा भरती जाती है।
    प्रस्तुत संग्रह में पठार की पीड़ा के शब्दकार राकेश कुमार सिंह का किस्सा-गो पूरी विश्वसनीयता, प्रामाणिकता, माटी-प्रेम और झारखण्डी किस्सागोई के सामर्थ्य के साथ उपस्थित है।

    – डॉ. अशोक प्रियदर्शी


    ढेरों कथाकार हैं जिन्होंने यादगार कहानियाँ लिखी हैं पर मेरे साथ स्थिति दूसरी है। चूँकि मैं कायदे का कथाकार ही नहीं हूँ अतः कहानी ही शायद स्वयं को मुझसे लिखवा ले जाती है। प्रस्तुत कथा को भी मैंने अपनी मौलिक रचना के रूप में लिख डालना चाहा था पर लिखी नहीं जा सकी। देश, काल, पात्र, और स्थितियों में तालमेल मैं बिठा ही नहीं पाया अतः जैसी सुनी वैसी लिख डाली। यह कहानी मेरे हलवाहे भुवनेश्वर गोसाईं की ही है।

    इसी पुस्तक से

    297.50350.00
  • Durasth Dampatya (Hindi Story) By Mamta Kalia

    दूरस्थ दाम्पत्य – ममता कालिया


    कथावस्तु से कथानक का निर्माण होता है। कथावस्तु की तमाम घटनाएँ हमारी जिन्दगी की जानी-पहचानी स्थितियाँ होती हैं। कथाकार अपनी संवेदना और कल्पना से जिस कथानक का निर्माण करता है वह विशिष्ट और गतिमान होता है। ममता कालिया की इन कहानियों की विशेषता है कि पाठक कथावस्तु के सूत्रों के सहारे इनकी घटनाओं को अपने जीवन का अंग मानने लगता है। उसे लगता है कि अरे! यह तो हमारे पड़ोस में रहने वाले फलाँ बाबू हैं, अरे! यह तो हमारे साथ उस बरस घटा था आदि आदि। पर पूरी कहानी अपने रचनात्मक आवेग में उसी पाठक को उस रहस्य लोक में ले जाती है, जहाँ पात्र, परिवेश, उद्देश्य सब एक हो जाते हैं। कहानी अपने प्रभाव और रचाव में जैविक एकक बन जाती है। ममता कालिया की ये कहानियाँ इसलिए भी विशिष्ट हैं कि इनकी संवेदनात्मक संरचनाएँ सुसंगठित और एकात्मक हैं। इसीलिए ये पहचान और रचनात्मक विस्मय एकसाथ निर्मित कर पाने में सक्षम होती हैं। ममता कालिया की इन कहानियों की संवेदनात्मक संरचना के एकत्व को गहराई मिलती है जीवन की दार्शनिकता और विचारपरकता से- ‘यह दो जीवन-पद्धतियों का टकराव था, साथ ही दो विचार-पद्धतियों का भी।’ यह दार्शनिकता किसी भी रचना की गहराई के लिए अनिवार्यता है। इन कहानियों में यह अलग से इसलिए रेखांकित हो रही है क्योंकि आज के कहानी लेखन में इसका अभाव सा दीख रहा है। इसके कारण इस कहानी-संग्रह की बहुआयामिता निर्मित हो रही है। वह सपाट कथन से बाहर निकलती है। ममता जी की ये कहानियाँ अपने भीतर मध्यवर्ग का जीवन्त संस्कार समेटे हुए हैं। आशा-दुराशा, जीवन स्वप्न और दुस्सह यथार्थ, आकांक्षा और अपेक्षा के बीच डोलता मध्यवर्गीय जीवन यहाँ उपस्थित है। इस उपस्थिति के प्रति रचनाकार एक करुणापूर्ण दृष्टि रखता है। यह करुणा इस तथ्य के बावजूद है कि वे अपने पात्रों से एक निरपेक्ष दूरी भी बनाने में सफल होती हैं। यह द्वैत या द्वन्द्व ही ममता जी की कहानी-कला की विरल विशिष्टता है। सघन होने के बावजूद ममता जी की कहानियाँ बोझिल या कठिन नहीं बनतीं, तो इसका कारण इनकी प्रवाहपूर्ण भाषा है। सरस गद्य और भाषा का प्रवाह इन्हें न केवल व्यंजक बनाता है अपितु पठनीय भी।

    – अमिताभ राय


    191.00225.00
  • Tark ke khunte se By Jayant Pawar

    तर्क के खूँटे से… (छह लम्बी कहानियाँ)

    मराठी के अग्रणी कहानीकार जयंत पवार को ये लंबी कहानियाँ हाशिये बाहर के आदमी को आस्था तथा सम्मान के साथ केंद्र में रख कर मानवीयता के चरम बिंदु पर जाकर लिखी गयी जीवन गाथाएँ हैं।

    ये कहानियाँ सत्ता, शोषण और साहित्य के अंतर्सबंधों की सही परख की खोज का प्रयास करती हैं। इसलिए सत्ता से निरंतर दूर रखे गये आदमी के जीवन की त्रासदियों को केंद्र में रखती हैं। शहरी परिवेश को भरी-पूरी दुनिया में साधनहीन आदमी के अकेलेपन का विकराल रूप इन कहानियों में दिखाई देता है।

    जयंत पवार कहानी को मानव जीवन की जटिलता से और विषमता से जूझने का हथियार मानते हैं। मिथकों की संरचना भी सत्ता का एक रूपक होता है, यह जान कर वे मिथकों की रचना पर सवाल उठते हैं और उनसे अलग अर्थ प्रसृत करवाते हैं। कहानी के शिल्प पर भी सवाल उठाने से वे परहेज नहीं करते।


    Kindle E-book Also Available
    Available on Amazon Kindle

    269.00299.00
  • Kalam By Hariyash Rai

    “हरियश राय की कहानियाँ हमारे आज के सामाजिक परिवेश का आकलन करती हुई उन मूल्यों की शिनाख्त करती दिखाई देती हैं जो मनुष्यता और विवेकपरकता के लिए सबसे ज़रूरी हैं। हरियश राय यह शिनाख़्त बहुत धैर्य और संयम के साथ करते हुए दिखाई देते हैं। उनकी कहानियाँ हमारे आज के बदलते समय में गुम हो रही मनुष्यता और संवेदनशीलता को सामने लाकर पाठकों की समझ को बदलने का आधार देती हैं ”


    Buy This Book Instantly thru RazorPay (15% + 5% extra discount)

    Or use Add to cart button to use our shopping cart


    Kindle E-Book Also Available
    Available on Amazon Kindle

    213.00250.00
  • Pagdandi By Shraddha Thavait

    पगडण्डी – श्रद्धा थवाईत

    इधर कुछ बरसों से हिन्दी में लिखी जा रही अधिकांश कहानियाँ दो तरह की अति का शिकार हैं। एक श्रेणी उन कहानियों की है जो हद दर्जे की अमूर्त हैं, किसी कथाभूमि के बगैर हवा में तिरती हुई । निराकार । दूसरी श्रेणी उन कहानियों की है जो ठोस कथाभूमि पर खड़ी तो रहती हैं पर इतनी ठस होती हैं कि उनमें प्रतीक, व्यंजना और अन्यार्थ की गुंजाइश नहीं होती । खुशी की बात है कि श्रद्धा थवाईत की कहानियाँ इन दोनों अतियों या कमजोरियों से मुक्त हैं। उनका यह कहानी संग्रह पगडण्डी इसका साक्ष्य है। इस संग्रह की कहानियों में जहाँ अन्तर्वस्तु का विस्तार है वहीं भाषा और शिल्प में एक सहज पारदर्शिता है जो कहानियों को काफी पठनीय बनाती है और पाठक को बरबस बाँधे रखती है।


    Kindle E-book Also Available
    Available on Amazon Kindle

    254.00299.00
  • Band Kothari Ka Darwaja By Rashmi Sharma

    इस संग्रह की कहानियाँ भिन्न जीवन-स्थितियों एवं भिन्न मनःस्थितियों की कहानियाँ हैं। मध्य वर्ग, मजदूर वर्ग, निम्न वर्ग, समान्त वर्ग सब हैं इन कहानियों में। कहानीकार यथार्थ रचने की प्रक्रिया में भी हैं। बन्द कोठरियों के दरवाजे खुल रहे हैं।
    युवा कथाकार रश्मि शर्मा का नया कहानी संग्रह बंद कोठरी का दरवाजा आकर्षित करता है क्योंकि उसमें भाषा व शिल्प का कोई प्रपंच नहीं है, उसमें उसका प्रदर्शन नहीं है और उसमें कथ्य को अधिक महत्त्व दिया गया है। रश्मि की कई कहानियों में कई स्थलों पर उनकी भाषा बहुत सुंदर और काव्यात्मक भी हो जाती है और उसका शिल्प भी आकर्षित करता है लेकिन रश्मि शर्मा ने हर कहानी में अपने कथ्य को ही उभारने का प्रयास किया है।


    Kindle E-Book Also Available
    Available on Amazon Kindle


     

    234.00260.00
  • Parinde Ka Intazar Sa Kuchh – Neelakshi Singh

    Parinde Ka Intazar Sa Kuchh – Neelakshi Singh
    परिंदे का इंतजार-सा कुछ –नीलाक्षी सिंह

    नीलाक्षी सिंह हिन्दी के विशिष्ट कहानीकारों में हैं। वे अपने समय की संवेदना को मौलिक ढंग से परखते हुए उसे उसकी बेलौस सान्द्रता के साथ अभिव्यक्त करती हैं। वे उन विरल रचनाकारों में हैं जिन्होंने ‘ग्लोबल’ और ‘लोकल’ के सम्बन्ध एवं संघात को सफलतापूर्वक अपनी कहानियों में पिरोया है। युवा-सम्बन्ध, प्रेम, परिवार, बाजार, साम्प्रदायिकता को विषय बनाते हुए कहीं भी उनमें सेकण्डरी इमेजिनेशन नहीं झलकता है। हमारे निकट अतीत से नितान्त वर्तमान तक बाजार तथा धर्म ने जिस तरह आमूल रूप से जीवन को बदल दिया है; लालसा और भोग का विकट विस्तार हुआ है; हर सम्बन्ध विषम जद्दोजहद में फँस गया है उसकी फर्स्ट हैण्ड अभिव्यक्ति नीलाक्षी के यहाँ है। भूमण्डलीकरण को विषय बनाती उनकी ‘प्रतियोगी’ शीर्षक कहानी क्लासिक की ऊँचाई को छूती है। इस कहानी को जहाँ अभिधा में पढ़ा जा सकता है वहीं समय के मेटाफर के रूप में भी। कहानी में नये आक्रामक बाजार के प्रतिनिधि ‘फास्ट फूड’ के बरअक्स जलेबी, कचरी और पिअजुआ स्थानीय संस्कृति और प्रतिरोध का मेटाफर बन जाते हैं। इस भूमण्डलवादी बाजार की जद में वस्तु की सत्ता ही नहीं नितान्त मानवीय भावनात्मक सत्ता भी है। दो मूल्य दृष्टियों के बीच बँट गये दम्पति यहाँ परस्परता खोकर प्रतियोगी बन जाते हैं।

    नीलाक्षी की कहानियाँ मनुष्यता के पक्ष में एक अपील हैं। निरन्तर तिरोहित हो रही मानवीय संवेदना उनकी कहानियों का केन्द्रीय सरोकार है। ‘एक था बुझवन…’, ‘उस शहर में चार लोग रहते थे’, ‘परिन्दे का इन्तज़ार सा कुछ’ आदि कहानियाँ इसी तिरोहित हो रही मानवीयता को परिवार, समाज, सम्प्रदाय आदि के विभिन्न स्तरों पर प्रस्तुत करती हैं। कहीं निजी लालच में परिवार टूट रहा है, बुजुर्ग घर के बाहर ठेले जा रहे हैं; कहीं सामन्ती- बाजारवादी दृष्टिकोण के कारण कोमल भावनाओं पर आघात हो रहा है। धार्मिक उन्माद इंसान को विभाजित और आहत कर रहा है। प्रेम एवं सम्बन्ध के विभिन्न रूपों को नीलाक्षी ने नवेले विन्यास एवं बिम्ब में सम्भव किया है। ‘बज्जिका’ के शब्दों का सर्जनात्मक प्रयोग मूल संवेदना को अक्षुण्ण रखता है। प्रस्तुत संग्रह हमारे समकालीन संवेदनात्मक विक्षोभ का साथी एवं गवाह है।
     
    – राजीव कुमार

    Kindle E-Book Also Available
    Available on Amazon Kindle

    325.00
  • Ansari Ki Maut Ki Ajeeb Dastan By Anjali Deshpande (Paperback)

    Ansari Ki Maut Ki Ajeeb Dastan By Anjali Deshpande

    समय और काल के गहरे बोध से निर्मित अंजली देशपांडे की कहानियाँ गहरे द्वैत से निर्मित हैं। यह समय और काल हमें मशीन बना रहा है या हम मशीन बन कर समय और काल को ज्यादा विकृत कर रहे हैं। मशीन रूपी दिल ने अंसारी का ज्यादा नुकसान किया या व्यवस्था के भीतर मशीन हो गये इनसानों ने यह कहना बहुत मुश्किल है। संग्रह की कहानियों से जब पाठक गुजरता है, तब बहुत बार हृदय के विविध रूपों को देखता है। ‘अंसारी की मौत की अजीब दास्तान’ हो या ‘धुंआरी आँखें’ हों या रामचंद्र का श्रद्धा से नत हृदय हो। यह आधुनिक जीवन में मनुष्यता के छीजने के कारण है। विडंबनात्मक रूप में यह उसके छीजने की कहानी है पर प्रकारांतर से उस छीजने से उत्पन्न तड़प की। एक बात यहाँ और भी ध्यान देने की है। समय और काल में हम सामाजिक के रूप में फँसे हैं; पर लेखक की प्रतिबद्धता इन कहानियों को एक निश्चित कोण प्रदान करती है। कहानी की संरचना में इस बात का भी विशेष महत्त्व है। एक स्तर पर गहरी विसंगतियों-विडंबनाओं को धारण करती ये कहानियाँ लेखकीय दृष्टिकोण के कारण जनता की तरफदार बन जाती हैं। अतः ये कहानियाँ मानवीयता के स्खलन के समानांतर एक प्रतिपक्ष भी निर्मित करती हैं। समाज में अन्याय के अनेक रूपों को ये कहानियाँ उजागर करती हैं, खासतौर से स्त्रियों के प्रति होने वाले अन्याय को।


    Kindle E-Book Also Available
    Available on Amazon Kindle

    198.00220.00
  • Fani Baaki -Shamsur Rahman Faruqi

    Fani Baaki – Shamsur Rahman Faruqi

    फ़ानी बाक़ी – शम्सुर्रहमान फ़ारूक़ी

    इस किताब का मुख्य आकर्षण फ़ारुक़ी साहब की लम्बी कहानी ‘फ़ानी बाक़ी’ है। यह कहानी खुद फ़ारुक़ी साहब की बाक़ी कहानियों से अलग है। वे मनुष्य के अन्तस की गहराई में काँपती मुक्ति की आकांक्षा की ओर अपनी दूसरी कहानियों में भी किसी न किसी तरह से इशारे करते ही थे, लेकिन ‘फ़ानी बाक़ी’ में वे इस आकांक्षा के ठीक सामने जा खड़े हुए हैं। इस एनकाउण्टर की रोशनी से फ़ारुक़ी साहब ने एक विलक्षण कल्पना लोक की रचना की है। यह कल्पना लोक वास्तविक न होते हुए भी अपने भीतर मनुष्य की मुक्ति की आकांक्षा के सच को अपने हर रेशे में थामे रखता है। यहीं से इस कहानी का सौन्दर्य और उसकी गहराई पैदा होती है।

    144.00160.00
  • Ek Raat Ka Mauqif : Ek Raat Ka Sath by Dr. Shakeel

    डॉ. शकील के अफ़साने खुशगवार झोंके की तरह सामने आए हैं।… उनकी बड़ी ख़ासियत यह है कि वह अच्छी तरह जानते हैं, उन्हें क्या नहीं लिखना है। लिखना तो बहुत लोग जानते हैं, मगर इसकी जानकारी कम लोगों को होती है कि उन्हें क्या नहीं लिखना है। डॉ. शकील के यहाँ मुझे एक तरह का CRAFTMANSHIP दिखाई देता है। यह खसूसीयत बहुत रियाज के बाद आती है… मुझे खुशी है कि उर्दू अफ़सानानिगारी में एक ऐसे नाम का इजाफा हो रहा है, जिनके अफ़साने नये रंगो-आहंग (बिम्ब) से मुजय्यन (सुसज्जित) हैं।

    – अब्दुस्समद

    डॉ. शकील साहब की कहानियाँ हमारे समय की नब्ज़ पर उँगली रखती हैं। ये कहानियाँ हमारे समय और हमारी दुनिया का कार्डियोग्राम हैं।… यहाँ बहुत बारीकी और संवेदना से हिंसा और अमानवीय स्थितियों में छटपटाते स्त्री-पुरुष, उनके संघर्ष और कई बार जीत को प्रस्तुत किया गया है जो समकालीन कथा जगत् के लिए एक विरल घटना है। मूलतः उर्दू में लिखी यह कहानियाँ उर्दू और हिन्दी दोनों ही परम्पराओं से रस ग्रहण करती हैं… डॉ. शकील इन कहानियों के साथ डॉक्टर-कथाकारों की उस महान् परम्परा को आगे बढ़ाते हैं, जिसमें पहले चेखव, समरसेट मॉम, बनफूल सरीखे कथाकार हो गये हैं।
    – अरुण कमल
    यह डॉ. शकील का पहला कहानी संग्रह है।… कहानियाँ बहुत सादा जुबान में लिखी गयी हैं, लेकिन कहानी बुनने की कला पर ध्यान न जाना मुमकिन नहीं… कहानीकार अपने आपको अकेली आवाज़ नहीं, बल्कि सरहदों और वक़्तों के आर-पार फैले आवाज के समन्दर का क़तरा मानता है। आपको वह उस संवेदना लोक की झलक दिखलाना चाहता है, जिसका वह वासी है।
    -अपूर्वानंद
    डॉ. शकील उर्दू, हिन्दी और अँग्रेजी के साथ कई इलाक़ाई बोलियों का भी इल्म रखते हैं जिससे इन्हें अपने किरदारों के अलग-अलग रूप पेश करने में आसानी होती है। वह अफ़साने के उस्लूब (शैली) और उसकी रिवायत को समझते हैं, लिहाजा कहानी में सादगी के साथ फ़न्नी जब्त (कलात्मक नियन्त्रण) और एहतियात का हर जगह लेहाज रखते हैं।
    -सफ़दर इमाम क़ादरी
    171.00190.00
  • Dhela Aur Anya Kahaniyan By Aanand Bahadur (Paperback)

    Dhela Aur Anya Kahaniyan By Aanand Bahadur

    अपने सत्य और संवेदना का निर्वहन करती कथा-साहित्य के महासमुद्र में अपना वजूद तलाशती कथाकार आनंद बहादुर की दस कहानियाँ किसी भी तरह के आरोपण और कृत्रिमता से परे जीवन की नैसर्गिकता की ओर लौटने की कहानियाँ हैं। कला के लिहाज से कुछ अपवादों को छोड़ दें तो एक ओर कविता का संस्पर्श, दूसरी ओर फंतासी… बस इसके सिवा न तो भाषा-शिल्प की सायास कलाबाजियों के शीर्षासन हैं, न ही वैसे कोई अन्य प्रयोग। अलबत्ता इस रूहानी सफर में आनंद का खिलंदड़ापन, एक खास तरह की वक्रोक्ति, यदा-कदा विवृति की वाग्विदग्घता से…। इस तरह सिरजे हुए अलग ही आस्वाद में पगी हैं आनंद की कहानियाँ…। मसलन ‘ढेला’ में एक छोटा सा ईंट का टुकडा एक कुशल स्कूटर चालक के लिए मनोवैज्ञानिक खलल पैदा कर उसे नचा मारता है तो ‘भेद’ का शिशु मनोविज्ञान अपनी सजीधजी शिशु की माँ को महज इस विनाह पर अपरिचिता बना देता है कि वह उसके पुराने आत्मीय विन्यास में नहीं है।


    Kindle E-Book Also Available
    Available on Amazon Kindle

    126.00140.00
  • Bharatpur Lut Gayo By Vibha Rani

    भरतपुर लुट गयो नया कहानी संग्रह है प्रख्यात कथाकार विभा रानी का। उनकी कथा-सामर्थ्य का
    एक और साक्ष्य । इस पुस्तक में संकलित कहानियों को किसी एक सूत्र में नहीं बाँधा जा सकता, पर यही
    इस संग्रह की खूबी और ताकत भी है। इन कहानियों में किसी किस्म का कोई दोहराव नहीं है, न अन्तर्वस्तु का और न ही भाषा व शैली का ।
    हर कहानी का कथ्य और परिवेश अन्य सब कहानियों से अलग है। शिल्प की विविधता भी भरपूर है, जिसमें वर्णन और आख्यान से लेकर इकबालिया बयान तक,
    अनेक रंग-ढंग शामिल हैं। पात्रों और परिवेश के मुताबिक भाषा और शैली बदल जाती है।
    Buy This Book Instantly thru RazorPay (15% + 5% extra discount)

    Kindle E-Book Also Available
    Available on Amazon Kindle

    200.00250.00