Johar Jharkhand Aadiwasi Janjeevan Ki Kahaniyan By Rakesh Kumar Singh

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जोहार झारखण्ड
आदिवासी जनजीवन की कहानियाँ – राकेश कुमार सिंह


आदिवासी जन-जीवन पर लिखने वाले गैरआदिवासी रचनाकारों में राकेश कुमार सिंह एक महत्त्वपूर्ण नाम हैं। राकेश कुमार सिंह का प्रस्तुत कथा संग्रह ‘जोहार झारखण्ड’ भारत के आदिवासी बहुल राज्य झारखण्ड की पृष्ठभूमि पर लिखी कहानियों का विशिष्ट संग्रह है।
प्रस्तुत संग्रह में ‘ जोहार झारखण्ड’ शीर्षक से कोई कहानी नहीं है बल्कि यह शब्दवन्ध झारखण्ड के लोक का रूपक है… एक अन्तर्धारा है जो इस संग्रह में संयोजित हर कहानी में उपस्थित है।
यह शब्दबन्ध झारखण्ड की सांस्कृतिक भौगोलिक विरासत का प्रतीक है जिसका अर्थ है स्वागतम्, अभिवादन, नमस्कार… आतिथ्य की भावना।
‘जोहार झारखण्ड’ की कहानियाँ पाठकों को झारखण्ड के गाँवों, बीहड़ वनों और कस्बों के सीमान्त पर बसे आदिवासी समाज तक पहुँचने को आमन्त्रित करती पगडण्डियाँ हैं।
झारखण्ड के पठार को उसके श्वेत श्याम धूसर रंगों में चित्रित करता यह कथा संग्रह हिन्दी कहानी में बनैली बयार की अनुभूति है जो सघन वन में पैठती जाती कहानियों की भाषा में गीत (सिम्फनी) की करुणा भरती जाती है।
प्रस्तुत संग्रह में पठार की पीड़ा के शब्दकार राकेश कुमार सिंह का किस्सा-गो पूरी विश्वसनीयता, प्रामाणिकता, माटी-प्रेम और झारखण्डी किस्सागोई के सामर्थ्य के साथ उपस्थित है।

– डॉ. अशोक प्रियदर्शी


ढेरों कथाकार हैं जिन्होंने यादगार कहानियाँ लिखी हैं पर मेरे साथ स्थिति दूसरी है। चूँकि मैं कायदे का कथाकार ही नहीं हूँ अतः कहानी ही शायद स्वयं को मुझसे लिखवा ले जाती है। प्रस्तुत कथा को भी मैंने अपनी मौलिक रचना के रूप में लिख डालना चाहा था पर लिखी नहीं जा सकी। देश, काल, पात्र, और स्थितियों में तालमेल मैं बिठा ही नहीं पाया अतः जैसी सुनी वैसी लिख डाली। यह कहानी मेरे हलवाहे भुवनेश्वर गोसाईं की ही है।

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Johar Jharkhand Aadiwasi Janjeevan Ki Kahaniyan (A Collection Of Short Stories) By Rakesh Kumar Singh


About the Author :-

राकेश कुमार सिंह

जन्म : 20 फरवरी 1960, पलामू (झारखण्ड) के गुरहा गाँव में।
शिक्षा: स्नातकोत्तर रसायन विज्ञान (पी-एच.डी.) एवं विधि स्नातक ।
कृतियाँ: ‘हाँका तथा अन्य कहानियाँ’, ‘ओह पलामू…! “जोड़ा हारिल की रूपकथा’, ‘महुआ माँदल और अँधेरा’, ‘कहानी खत्म नहीं होती’, ‘तमस कोहरा और…!’ ‘रूपनगर की रूपकथा’ (कथा संग्रह), ‘पठार पर कोहरा’, ‘जहाँ खिले हैं रक्तपलाश’, ‘जो इतिहास में नहीं है’, ‘साधो, यह मुद्दों का गाँव’, ‘हुल पहाड़िया’, ‘महाअरण्य में गिद्ध’, ‘ऑपरेशन महिषासुर’, ‘मिशन होलोकॉस्ट’, ‘ठहरिए…! आगे जंगल है’, ‘खोई हुई कड़ियाँ’, ‘महासमर की सांझ’ (उपन्यास), ‘केशरीगढ़ की काली रात’, ‘वैरागी वन के प्रेत’, ‘नीलगढ़ी का खजाना’ (किशोर उपन्यास), ‘कहानियाँ ज्ञान की विज्ञान की’, ‘आदिपर्व’, ‘उलगुलान’, ‘अग्निपुरुष’, ‘अरण्य कथाएँ’, ‘अवशेष कथा’ (बालोपयोगी पुस्तकें)
सम्मान : झारखण्ड का प्रतिष्ठित राधाकृष्ण सम्मान (2004),
‘पाखी’ पत्रिका का शब्द साधक जनप्रिय सम्मान (2015), आनन्द सागर स्मृति कथाक्रम सम्मान (2016), कथाक्रम कहानी प्रतियोगिता (2001 तथा 2002) में प्रथम पुरस्कार, कथाबिम्ब कहानी प्रतियोगिता (2002) में प्रथम तथा कमलेश्वर स्मृति कथा सम्मान (2008) में प्रथम पुरस्कार। कहानी ‘ठहरिए आगे जंगल है’ पर दूरदर्शन द्वारा इसी नाम से टेलीफिल्म निर्मित-प्रदर्शित। कई कहानियाँ ओड़िया, पंजाबी तथा अँग्रेजी में अनूदित ।

SKU: Johar Jharkhand By Rakesh Kumar Singh-PB
Category:
Tag:
Author

Rakesh Kumar Singh

Binding

Paperback

Language

Hindi

ISBN

978-93-6201-298-2

Pages

240

Publication date

27-01-2025

Publisher

Setu Prakashan Samuh

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    JINNAH: His Successes, Failures and Role in History का हिन्दी अनुवाद
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  • Parinde Ka Intazar Sa Kuchh – Neelakshi Singh

    Parinde Ka Intazar Sa Kuchh – Neelakshi Singh
    परिंदे का इंतजार-सा कुछ –नीलाक्षी सिंह

    नीलाक्षी सिंह हिन्दी के विशिष्ट कहानीकारों में हैं। वे अपने समय की संवेदना को मौलिक ढंग से परखते हुए उसे उसकी बेलौस सान्द्रता के साथ अभिव्यक्त करती हैं। वे उन विरल रचनाकारों में हैं जिन्होंने ‘ग्लोबल’ और ‘लोकल’ के सम्बन्ध एवं संघात को सफलतापूर्वक अपनी कहानियों में पिरोया है। युवा-सम्बन्ध, प्रेम, परिवार, बाजार, साम्प्रदायिकता को विषय बनाते हुए कहीं भी उनमें सेकण्डरी इमेजिनेशन नहीं झलकता है। हमारे निकट अतीत से नितान्त वर्तमान तक बाजार तथा धर्म ने जिस तरह आमूल रूप से जीवन को बदल दिया है; लालसा और भोग का विकट विस्तार हुआ है; हर सम्बन्ध विषम जद्दोजहद में फँस गया है उसकी फर्स्ट हैण्ड अभिव्यक्ति नीलाक्षी के यहाँ है। भूमण्डलीकरण को विषय बनाती उनकी ‘प्रतियोगी’ शीर्षक कहानी क्लासिक की ऊँचाई को छूती है। इस कहानी को जहाँ अभिधा में पढ़ा जा सकता है वहीं समय के मेटाफर के रूप में भी। कहानी में नये आक्रामक बाजार के प्रतिनिधि ‘फास्ट फूड’ के बरअक्स जलेबी, कचरी और पिअजुआ स्थानीय संस्कृति और प्रतिरोध का मेटाफर बन जाते हैं। इस भूमण्डलवादी बाजार की जद में वस्तु की सत्ता ही नहीं नितान्त मानवीय भावनात्मक सत्ता भी है। दो मूल्य दृष्टियों के बीच बँट गये दम्पति यहाँ परस्परता खोकर प्रतियोगी बन जाते हैं।

    नीलाक्षी की कहानियाँ मनुष्यता के पक्ष में एक अपील हैं। निरन्तर तिरोहित हो रही मानवीय संवेदना उनकी कहानियों का केन्द्रीय सरोकार है। ‘एक था बुझवन…’, ‘उस शहर में चार लोग रहते थे’, ‘परिन्दे का इन्तज़ार सा कुछ’ आदि कहानियाँ इसी तिरोहित हो रही मानवीयता को परिवार, समाज, सम्प्रदाय आदि के विभिन्न स्तरों पर प्रस्तुत करती हैं। कहीं निजी लालच में परिवार टूट रहा है, बुजुर्ग घर के बाहर ठेले जा रहे हैं; कहीं सामन्ती- बाजारवादी दृष्टिकोण के कारण कोमल भावनाओं पर आघात हो रहा है। धार्मिक उन्माद इंसान को विभाजित और आहत कर रहा है। प्रेम एवं सम्बन्ध के विभिन्न रूपों को नीलाक्षी ने नवेले विन्यास एवं बिम्ब में सम्भव किया है। ‘बज्जिका’ के शब्दों का सर्जनात्मक प्रयोग मूल संवेदना को अक्षुण्ण रखता है। प्रस्तुत संग्रह हमारे समकालीन संवेदनात्मक विक्षोभ का साथी एवं गवाह है।
     
    – राजीव कुमार

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