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Hindi Sahitya Ke 75 Varsh : Nehru Yug Se Modi Yug Tak By Sudhish Pachauri

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हिन्दी साहित्य के 75 वर्ष नेहरू युग से मोदी युग तक (एक उत्तर आधुनिकतावादी पाठ) सुधीश पचौरी

पिछले सत्तर-अस्सी बरस के साहित्य का इतिहास सीधी लाइन में नहीं चला बल्कि उसमें अनेक टूट-फूट हुई हैं और अनेक विच्छेद आए हैं। ऐसी बहुत सी ‘फॉल्ट लाइनें’ और विच्छेद आज की ‘उत्तर आधुनिक स्थितियों’ में और ‘उत्तर संरचनावादी’ समीक्षा पद्धति के बाद इसलिए और भी अधिक उत्कट होते दीखते हैं क्योंकि आज साहित्य में एक अर्थ, एक प्रातिनिधिक यथार्थ और एकान्विति को नहीं पढ़ा जा सकता क्योंकि अब उसका न कोई एक ‘सेण्टर’ है, न ‘एक यथार्थ’ है और न शब्द का ‘एक अर्थ’ सम्भव है। जब अमेरिका में काले आदमी औरत का ‘पाठ’ गोरे आदमी औरत के ‘पाठ’ से अलग हो सकता है, जब अपने यहाँ दलित ‘पाठ’ गैरदलित ‘पाठ’ से अलग और विपरीत हो सकता है तब एक दिन हिन्दी साहित्य का ‘हिन्दू’ पाठ भी होगा, ‘मुस्लिम’ पाठ भी होगा, ‘सिख’ या ‘बौद्ध’ या ‘ईसाई’ या ‘जैन’ या अन्य पाठ भी सम्भव हैं। जितनी भी अस्मितामूलक पहचानें हैं उन सबके पाठ अलग-अलग हो सकते हैं और कई बार एक-दूसरे के विपरीत और लड़ते- झगड़ते नजर आ सकते हैं। इतना ही नहीं जब दलित विमर्श हो सकते हैं तब ब्राह्मणवादी, वैश्यवादी और क्षत्रियवादी विमर्श भी हो सकते हैं और होंगे और इनके अतिरिक्त, हर ‘अस्मितामूलक समूह’ के ‘स्त्रीत्ववादी’ तथा ‘एलजीबीटीक्यू वादी’ पाठ भी सम्भव हैं। सवाल यह भी है कि आज के ‘उत्तर आधुनिकतावादी’ दौर में जब साहित्य के ‘एक केन्द्रवाद’ का पतन हो चुका हो, तब कौन सा ‘साहित्य शास्त्र’ अथवा कौन सी ‘साहित्यिक सिद्धान्तिकियाँ’ कारगर हो सकती हैं? कहने की जरूरत नहीं कि ऐसे सवालों से टकराये बिना आगे के साहित्य व साहित्य शास्त्र का विकास सम्भव नहीं दीखता।


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Hindi Sahitya Ke 75 Varsh : Nehru Yug Se Modi Yug Tak : Ek Uttar Aadhuniktawadi Paath
By Sudhish Pachauri

इस पुस्तक के मुखपृष्ठ पर हमने ‘नेहरू युग से मोदी युग तक’ लिखा है। हो सकता है इसे देख हमारे कई ‘पाठक’ हमारी ‘निन्दा’ भी करें कि यह लेखक नेहरू के साथ मोदी का नाम कैसे ले रहा है? वे शायद सोचते हैं कि हिन्दी साहित्य का ‘नेहरू युग’ तो हो सकता है लेकिन’ मोदी युग’ कैसे हो सकता है ? इसके जवाब में हमारा यही कहना है कि अगर कुछ विद्वानों द्वारा आजादी से पहले और कुछ बाद के हिन्दी साहित्य पर नेहरू का प्रभाव देखा जा सकता है तो आज के साहित्य पर मोदी का प्रभाव भी देखा जा सकता है। आजादी के बाद के हिन्दी साहित्य में नेहरू की ‘छवि’ अगर एक ‘अप्रत्यक्ष किन्तु सकारात्मक’ आलम्बन के रूप में नजर आती है तो मोदी की छवि ‘प्रत्यक्ष नकारात्मक’ आलम्बन के रूप में नजर आती है। नेहरू युग का बौद्धिक नजरिया साहित्य को ‘ धर्म और संस्कृति’ से अलग करके देखता-पढ़ता था तो मोदी युग का बौद्धिक नजरिया साहित्य को देश, राष्ट्र, धर्म व संस्कृति से मिलाकर देखता-पढ़ता है जो हिन्दी साहित्य के जातीय पाठों और साहित्य शास्त्र के अधिक नजदीक बैठता है! नेहरूवादी नजरिया साहित्य के इतिहास की ‘फॉल्ट लाइनों’ को दबाकर चलता है तो मोदीवादी नजरिया साहित्य के इतिहास की फॉल्ट लाइनों को उजागर कर पढ़ना पढ़ाना चाहता है! यह किताब पिछले पिचहत्तर बरसों के इतिहास को इसी और ऐसे ही उपेक्षित कर दिये गये नाना जातीय नजरियों से टटोलती पढ़ती है। इस किताब का लेखक भी ‘पॉलिटिकली करेक्ट’ लेखन करने की जगह ‘पॉलिटिकली इनकरेक्ट’ लेकिन ‘लिटरली करेक्ट’ लेखन करने में यकीन करता है और यहाँ उसने वैसा ही करने की कोशिश की है। और इसी मानी में इस लेखक ने हिन्दी साहित्य के पिछले सात-आठ दशकों के साहित्य को देश, राष्ट्र और धार्मिक-सांस्कृतिक सन्दर्भों में रखकर देखने-समझने की कोशिश की है। इस नजर से देखें तो हमारा साहित्य उन तमाम फॉल्ट लाइनों का संकेत करता रहा है जिनके बारे में ‘द क्लैश ऑफ सिविलाइजेशन’ के लेखक सैमुअल पी. हंटिंग्टन ने अपनी उक्त किताब में लिखा है और जिनके बारे में इस लेखक ने भी यत्र- तत्र संकेत दिये हैं।

– भूमिका से

Additional information

Author

Sudhish Pachauri

Binding

Paperback

Language

Hindi

ISBN

978-93-6201-433-7

Pages

320

Publisher

Setu Prakashan Samuh

1 review for Hindi Sahitya Ke 75 Varsh : Nehru Yug Se Modi Yug Tak By Sudhish Pachauri

  1. Nitin Singh

    यह किताब साहित्य में विविध दृष्टिकोणों और पहचान आधारित पठन की चर्चा करती है। समकालीन आलोचना के लिए यह अनिवार्य है।

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