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Sisriksha Ka Tatva-darshan By Mukund Lath (PaperBack)

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मुकुन्द लाठ के अलावा यशदेव शल्य ने हिन्दी में मौलिक और दार्शनिक चिन्तन किया है। इन दोनों के बीच लम्बे अरसे तक बौद्धिक साहचर्य और संवाद रहा। उनके कुछ रुझानों और वैचारिक सरोकारों में साझेदारी भी रही है।

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Description

मुकुन्द लाठ के अलावा यशदेव शल्य ने हिन्दी में मौलिक और दार्शनिक चिन्तन किया है। इन दोनों के बीच लम्बे अरसे तक बौद्धिक साहचर्य और संवाद रहा। उनके कुछ रुझानों और वैचारिक सरोकारों में साझेदारी भी रही है। यशदेव शल्य जैसे बड़े दार्शनिक पर मुकुन्द जी की यह पुस्तक दोनों के बीच अनवरत चलते रहे संवाद का मूल्यवान् प्रतिफल है। रज़ा फ़ाउण्डेशन इस पुस्तक को प्रकाशित कर प्रसन्नता अनुभव कर रहा है।

About the Author:

मुकुन्द लाठ जन्म : १९३७, कोलकाता में शिक्षा के साथ संगीत में विशेष प्रवृत्ति थी जो बनी रही। आप पण्डित जसराज के शिष्य हैं। अँग्रेज़ी में बी.ए. (ऑनर्स), फिर संस्कृत में एम.ए. किया। पश्चिम बर्लिन गये और वहाँ संस्कृत के प्राचीन संगीत- ग्रन्थ दत्तिलम् का अनुवाद और विवेचन किया। भारत लौट कर इस काम को पूरा किया और इस पर पी-एच.डी. ली। १९७३ से १९९७ तक राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर, के भारतीय इतिहास एवं संस्कृति विभाग में रहे। भारतीय संगीत, नृत्त, नाट्य, कला, साहित्य सम्बन्धी चिन्तन और इतिहास पर हिन्दी-अंग्रेज़ी में लिखते रहे। यशदेव शल्य के साथ दर्शन प्रतिष्ठान की प्रतिष्ठित पत्रिका उन्मीलन का सम्पादन और उसमें नियमित लेखन । प्रमुख प्रकाशन : ए स्टडी ऑफ़ दत्तिलम, हाफ़ ए टेल (अर्धकथानक का अनुवाद), द हिन्दी पदावली ऑफ़ नामदेव (कालावात के सहलेखन में), ट्रान्सफ़ॉरमेशन ऐज क्रिएशन, संगीत एवं चिन्तन, स्वीकरण, तिर रही वन की गन्ध, धर्म- संकट, कर्म चेतना के आयाम, क्या है क्या नहीं है। दो कविता-संग्रह अनरहनी रहने दो, अँधेरे के रंग के नाम से प्रमुख सम्मान व पुरस्कार पद्मश्री, शंकर पुरस्कार, नरेश मेहता वाङ्मय पुरस्कार, फेलो-संगीत अकादेमी। निधन : ६ अगस्त २०२०

Additional information

ISBN

9788196166540

Author

Mukund Lath

Pages

283

Publication date

25-02-2023

Imprint

Setu Prakashan

Language

Hindi

Binding

Paperback

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