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  • Maine Apni Maa Ko Janm Diya Hai -Rashmi Bhardwaj

    Maine Apni Maa Ko Janm Diya Hai – Rashmi Bhardwaj
    मैंने अपनी मां को जन्म दिया है – रश्मि भारद्वाज

    जानी-मानी लेखिका रश्मि भारद्वाज के कविता संग्रह ‘मैंने अपनी मां को जन्म दिया है’ में जीवन के विविध पक्षों की छाप है। उनकी कविताएं दुख, मुक्ति और स्वाभिमान के मुद्दों के अतिरिक्त विस्थापन, पर्यावरण और सहकारिता के वृहत्तर प्रश्नों से भी टकराती हैं।

    238.00280.00
  • Marg Madarzaad By Piyush Daiya Paperback

    Marg Madarzaad By Piyush Daiya
    मार्ग मादरज़ाद – पीयूष दईया

    मार्ग मादरज़ाद-पीयूष दईया की आत्मा के दायरों में फिसलते मनुष्य की यात्रा का मार्ग है। यह मार्ग निर्विघ्न नहीं है क्योंकि इसमें ‘श्मशानी शऊर’ की ‘वर्णमाला’ सीखे लोगों की साँसें निर्बिम्ब’ हैं।

    120.00
  • Andhere Ki Pajeb By Nida Nawaz -Paperback

    Andhere Ki Pajeb By Nida Nawaz

    अँधेरे की पाज़ेब – निदा नवाज़
    निदा नवाज़ अपना अता-पता एक कविता में इस तरह देते हैं : ‘मैं उस स्वर्ग में रहता हूँ। जहाँ घरों से निकलना ही होता है/ गायब हो जाना/ जहाँ हर ऊँचा होता सर/ तानाशाहों के आदेश पर/ काट लिया जाता है और ‘जहाँ लोग जनसंहारों की गणना और कब्रों की संख्या भूल गये हैं’।

    137.00
  • Kshirsagar Main Nind – Shriprakash Shukla-Paperback

    Kshirsagar Main Nind – Shriprakash Shukla
    क्षीरसागर में नींद – श्रीप्रकाश शुक्ल

    बनारस…बनारस कई अर्थों और चेतनाओं के साथ भारतीय मनीषा का अभिन्न अंग रहा है। भारत, विशेष तौर से उत्तर भारत की परिपक्व मनीषा का अभिभाज्य अंग है बनारस। इसे प्रत्येक मानुष समझता है परंतु जब कोई सामाजिक बनारस में निरंतर रह रहा है, तो संवेदनशील सामाजिक की चेतना का बहुमुखी हो जाना स्वाभाविक बात है।

    112.00
  • Beech December By Shailey-Paperback

    Beech December By Shailey

    प्रकृति के साथ और सामंजस्य के बिना न जीवन संभव है और न जीवनानुभूतियों की अभिव्यक्ति। प्रकृति का संसर्ग हो तो सूर्य, चंद्रमा, चाँदनी, पेड़, पौधे, सावन, भादो, वसंत इत्यादि प्रकृति के तत्त्व जीवन-अंग के रूप में संचालित होने लगते हैं।

    125.00
  • Bhukhe Pet Kee Raat Lambi Hogi By Anil mishra

    Bhukhe Pet Kee Raat Lambi Hogi – Anil mishra
    ‘भूखे पेट की रात लंबी होगी’ – अनिल मिश्र

    भूखे पेट की रात लंबी होगी’, पर क्यों? यह जितना अभिधात्मक पदबंध है, उतना ही लाक्षणिक! अभिधात्मकता और लाक्षणिकता कविता की भवता की अनिवार्यता है।

    170.00
  • Kshirsagar Main Nind – Shriprakash Shukla

    Kshirsagar Main Nind – Shriprakash Shukla
    क्षीरसागर में नींद – श्रीप्रकाश शुक्ल

    207.00230.00
  • Andhere Ki Pajeb By Nida Nawaz

    Andhere Ki Pajeb By Nida Nawaz

    अँधेरे की पाज़ेब – निदा नवाज़

    480.00600.00
  • Marg Madarzaad By Piyush Daiya

    Marg Madarzaad By Piyush Daiya
    मार्ग मादरज़ाद – पीयूष दईया

    मार्ग मादरज़ाद-पीयूष दईया की आत्मा के दायरों में फिसलते मनुष्य की यात्रा का मार्ग है। यह मार्ग निर्विघ्न नहीं है क्योंकि इसमें ‘श्मशानी शऊर’ की ‘वर्णमाला’ सीखे लोगों की साँसें निर्बिम्ब’ हैं।

    216.00240.00
  • Pansokha Hai Indradhanush – Madan Kashyap

    Pansokha Hai Indradhanush – Madan Kashyap
    पनसोखा है इन्द्रधनुष – मदन कश्यप

    185.00205.00
  • Ujaas – Jitendra Shrivastav

    Ujaas – Jitendra Shrivastav

    1990 के आसपास जिन कवियों ने लिखना आरंभ किया और साहित्य में अपने लिए एक अलग पहचान बनायी, उनमें जितेन्द्र श्रीवास्तव महत्त्वपूर्ण हैं। प्रस्तुत संग्रह ‘उजास’ उनके तीन पूर्ववर्ती संग्रहों का समुच्चय है। ये संग्रह हैं- ‘अनभै कथा’ (2003), ‘असुंदर सुंदर’ (2008) और ‘इन दिनों हालचाल’ (2000, 2011)। इन संग्रहों के साथ आने के कई लाभ हैं। सबसे बड़ा लाभ तो यही है कि एक कवि के रूप में जितेन्द्र श्रीवास्तव के विकास-क्रम के ऊबड़-खाबड़ रास्तों की पहचान संभव हो सकेगी। एक संग्रह शायद इस विकास-यात्रा की मुकम्मल तस्वीर उजागर कर पाने में उतना सक्षम नहीं हो पाता। यह तथ्य सिर्फ जितेन्द्र श्रीवास्तव के लिए ही सत्य नहीं, अपितु यह उन तमाम कवियों पर भी लागू होता है, जिनके इस तरह के संग्रह प्रकाशित होते हैं। परंतु यह तथ्य जितेन्द्र श्रीवास्तव के इस संग्रह में ज्यादा प्रभावी है क्योंकि ये उनके आरंभिक तीन संग्रह हैं। ‘उजास’ उनकी अब तक की काव्य-यात्रा को समझने की आधारभूमि का कार्य करेगा—ऐसा मेरा विश्वास है। 1990 के आसपास का समय भारतीय समाज और राजनीति में व्यापक परिवर्तन और उठापटक का था। व्यवस्था और समाज के स्तर पर हो रहे परिवर्तनों के बीच नयी साहित्यिक चेतनाओं और चेष्टाओं का विकास हो रहा था। कवि के रूप में जितेन्द्र श्रीवास्तव की आरंभिक कविताएँ इन्हीं नयी साहित्यिक चेतनाओं और चेष्टाओं की कविताएँ हैं। इसीलिए इनकी आरंभिक कविताओं में विषय भी बहुत हैं और उन विषयों के साथ कवि के ट्रीटमेंट अनेकवर्णी हैं। कुल मिलाकर ये आरंभिक कविताएँ नयी संवेदनात्मक संरचना के तलाश की कविताएँ प्रतीत होती हैं। इसीलिए इनकी आरंभिक कविताओं में सैद्धांतिक समझ के बावजूद व्यावहारिक अपरिचय है, जो कवि को कभी प्रश्नाकुल बनाता है तो कभी उसे सहज संकोची-कहीं-कहीं ये दोनों भाव साथ-साथ ही आ जाते हैं; इनमें जीवन का संघर्ष है और उस संघर्ष की दार्शनिक निष्पत्तियाँ भी हैं; युवकोचित उत्साह है और इन सबके बीच है अपने कवि होने का अहसास। कवि होने के अहसास और दायित्व के साथ ये अपनी काव्य-यात्रा जारी रखते हैं। हम इस पुस्तक में उनके परिपक्व रूप, जो ‘कायांतरण’ जैसे परवर्ती संग्रहों में अधिक उभरता है, का परिचय प्राप्त कर लेते हैं । इसका प्रमाण इनकी अनेक कविताएँ हैं। ये कविताएँ विचार, व्यवहार, प्रश्न, लोक-शिष्ट सबके सम्मिश्रण से निर्मित हैं। इन कविताओं में इन्हें अलगाना संभव नहीं है। विभिन्न संदर्भो के एकात्मीकरण से बनी ये कविताएँ अपनी निर्मित में संपूर्ण एकक हैं, इन्हें दुबारा खंडित नहीं किया जा सकता। इसीलिए ये पाठकों पर गहरा तथा स्थायी प्रभाव छोड़ते हैं। मसलन इनकी बहुत प्रसिद्ध कविता ‘सोनचिरई’ है। विमर्श, मिथक, लोक और करुणा से रची यह कविता, आज विमर्शात्मक प्रगति के पटल पर बहुत पिछड़ी लग सकती है, परंतु हमारे समाज में जब तक एक भी महिला संतान जन्म न दिये जाने के कारण प्रताड़ित की जाती रहेगी, तब तक इस कविता का महत्त्व अक्षुण्ण रहेगा। ऐसी अनेक कविताएँ इस संग्रह में हमें मिल जाएँगी। एक छोटी बात इनकी भाषा के संदर्भ में। इनकी भाषा में लोच भी है, प्रवाह भी है, पढ़े-लिखे की गंध भी है; परंतु इनकी भाषा की सबसे बड़ी ताकत है-इनकी अभिधात्मकता। प्राथमिक रूप से इनकी भाषा लक्षणा की भाषा नहीं है। इसके बावजूद उसमें व्यंजना की उड़ान मिल जाती है।

    520.00650.00
  • Lekin Udas Hai Prithvi – Madan Kashyap

    Lekin Udas Hai Prithvi – Madan Kashyap

    नौवाँ दशक कविता की वापसी का दशक है। ऐसा कहना न केवल इस दृष्टि से सार्थक है कि इसमें कविता फिर साहित्य के केन्द्र में स्थापित हो गयी, बल्कि इस दृष्टि से भी कि इसमें गहरी सामाजिक प्रतिबद्धता वाली कविता अपने निथरे रूप में सामने आयी और पूरे परिदृश्य पर छा गयी। मदन कश्यप का संग्रह किंचित विलम्ब से निकल रहा है, वह भी मित्रों की प्रेरणा और दबाव से, लेकिन उनकी कविताएँ उक्त निथरी हुई कविता का बहुत बढ़िया उदाहरण हैं। इन कविताओं की विशिष्टता यह है कि ये वैशाली की माटी की महक में तो सनी हुई हैं ही, कवि ने इन्हें अत्यन्त कलात्मक रूप भी प्रदान किया है। उसकी ‘गनीमत है’-जैसी कविताएँ इसका साक्ष्य प्रस्तुत करती हैं। उसका मानसिक क्षितिज अपने साथ लिखने वाले कवियों की तुलना में कितना विस्तृत है, यह उसकी ‘पृथ्वी दिवस, 1991’ जैसी कविताओं से जाना जा सकता है। एक खास बात यह कि मदन कश्यप के पास राजनीति से लेकर विज्ञान तक की गहरी जानकारी है, जिसका वे अपनी कविताओं में बहुत ही सृजनात्मक उपयोग करते हैं। इसका प्रमाण उनकी ‘तिलचट्टे’ जैसी सशक्त कविताओं में मिलता है। लेकिन कविता क्या सोद्देश्य सृष्टि ही है? मदन कश्यप ने प्रतिबद्धता को संकीर्ण अर्थ में नहीं लिया, वरना वे न तो ‘चिड़िया का क्या’ जैसी नाजुक कविता लिख पाते, न ही ‘किराये के घर में’ जैसी ‘निरुद्देश्य’ कविता। तात्पर्य यह कि उनकी कविताओं में वह नजाकत और ‘निरुद्देश्यता’ भी मिलती है, जो इनकी अनुभूति को नया सौन्दर्यात्मक आयाम प्रदान करके उन्हें समृद्ध करती है। बिना इस नजाकत और ‘निरुद्देश्यता’ के प्रतिबद्ध कविता भी पूरी तरह सार्थक नहीं हो सकती है। कुल मिलाकर मदन कश्यप का यह संग्रह समकालीन हिन्दी कविता के ‘बसन्तागमन’ की पूरी झलक देता है, जिसमें ‘पलाश के जंगल से दहकते आसमान में/ अमलतास के गुच्छे-सा खिलता है सूरज!’

    207.00230.00