Description
नवाबी-बादशाही काल और 1857 की क्रान्ति की गाथा
लखनऊ – राजगोपाल सिंह वर्मा
पुस्तक के दूसरे हिस्से में 1857 की क्रान्ति की लखनऊ और अवध की जर्मी पर सबसे बड़ी उपलब्धि चिनहट की लड़ाई की विस्तृत चर्चा है। इस एक दिन के युद्ध में, जो 30 जून 1857 को हुआ था, ईस्ट इण्डिया कम्पनी की सेना को उनसे अलग हुए बागी संघर्षकारी सैनिकों और स्थानीय लोगों के अनुशासित तथा जुनूनी बल ने एक अप्रत्याशित और कड़ी शिकस्त दी थी। ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी की यह पराजय इतनी निर्णायक थी कि कम्पनी के अनेकों सैनिकों अफसरों को अपनी जानें गँवानी पड़ीं और वे जो भागकर रेजीडेंसी में घुसे तो अगले कई महीनों तक संघर्षकारी सैनिकों और जुनूनी क्रान्तिकारियों ने उनकी वहीं घेराबन्दी कर बाहर निकलने के रास्ते बन्द कर दिये। लखनऊ और अवध में ये स्थितियाँ देर से आयीं, लेकिन मजबूती से चलीं, देर तक कायम रहीं और वहाँ के गाँव गाँव तक फैल गयी थीं। अवध प्रान्त के चीफ कमिश्नर हेनरी लॉरेंस, जिन्हें भारत के अगले गवर्नर-जनरल के पद के लिए नामित किया गया था, सहित ब्रिटिश पक्ष के अन्य कई महत्त्वपूर्ण अधिकारी-सैनिक भी मारे गये थे। ऐसे में इंग्लैण्ड सरकार आततायी भूमिका के रूप में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के जायज-नाजायज कार्यकलापों का समर्थन करने, इस जनक्रान्ति को कुचलने तथा देश के जुनूनी और समर्पित क्रान्तिकारियों को उनके ‘दुस्साहस’ की सजा देने के लिए किसी भी सीमा तक जा सकती थी। लखनऊ और निकटवर्ती क्षेत्रों को फिर से जीतने के लिए इंग्लैण्ड सरकार ने एक विशिष्ट अभियान को स्वीकृति दी थी। इस हेतु जनरल कॉलिन कैम्पबेल को इंग्लैण्ड से लखनऊ भेजा जाना इस अभियान की महत्ता को बताता है। पर अवध के विभिन्न इलाकों के ताल्लुकेदारों, जमींदारों और आम जन ने भी फिरंगी ईस्ट इण्डिया कम्पनी की सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए जो एकजुटता की भावना दिखाई थी, वह अद्भुत थी। लोगों को स्वराज चाहिए था, और चाहिए थी फिरंगी प्रताड़ना से मुक्ति ! क्रान्ति की यह ज्वाला कितनी सफल हुई, यह अर्थहीन है। अवध और आसपास के इस जन संघर्ष का गहन वर्णन प्रामाणिकता के साथ सामने लाया गया है।
Nitin Kumar –
यह पुस्तक अवध के नवाबी युग से 1857 की क्रांति तक की समृद्ध ऐतिहासिक यात्रा को जीवंत रूप में प्रस्तुत करती है। इसके सांस्कृतिक और राजनीतिक पहलुओं का गहन विश्लेषण करती है।