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AAGE AUR AAG HAI (Satire) by Virender Sengar
About the Author
इस दौर में भुला दी गयी कटाक्ष की शैली को उन्होंने खूब सींचा। राजनीतिक और सामाजिक विसंगतियों पर वह पैनी नजर रखते थे, जिसकी गवाही यह पुस्तक देती है।
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दौर चुनाव का हो तो हर जगह सियासी हवाओं की बहार होती है। चाहे श्मशान घाट का जमघट हो या धुर आस्था की यात्रा का काफिला। भारत जैसे आस्थावानों के देश में लोकतन्त्र का सबसे बड़ा पर्व चल रहा हो तो लोगों को कुछ न कुछ नशा सा हो जाता है। कुछ मेरे जैसे निठल्लों को इस दौर में हवा और धुर गैरराजनीतिक दरख्तों में भी सियासत नजर आने लगती है। इस प्रजाति का मैं कोई अकेला प्राणी नहीं हूँ। ये अनुभव के आधार पर कह रहा हूँ। बहुतों के अन्दर भी इस सियासी निठल्लेपन का वायरस पाया जाता है। बस, उन्हें पता नहीं होता। अनुकूल माहौल पाकर ये चकचक वाले वायरस फुदकने लगते हैं। कई बार पता ही नहीं चलता कब इस वायरस के प्रभाव में ठेठ इंसान से आप कठपुतली बन जाते हैं।
– इसी पुस्तक से
वीरेंद्र सेंगर के विषय विविध हैं। उन्होंने समाज की सभी दुखती रगों पर हाथ रखा है। वे केवल राजनीति तक सीमित नहीं हैं। उन्होंने अनेक सामाजिक विषयों पर भी गहरे कटाक्ष किये हैं। छोटी से छोटी घटना ने भी उन्हें आकर्षित किया है। छोटी घटनाओं के माध्यम से वे बड़े प्रसंगों को उठाते दिखाई देते हैं। उनकी एक बड़ी विशेषता उनकी निर्भीकता है। लेकिन यह निर्भीकता बेलगाम नहीं है। वे संसदीय भाषा में ऐसे सवाल उठाते हैं जो संसदीय व्यवस्था की सीमाओं और वैधता पर बड़े गम्भीर प्रश्न उठा देते हैं। उनके प्रश्न कहीं प्रश्न होते हैं और कहीं प्रश्नों के उत्तर होते हैं। पाठक को यह समझना पड़ता है कि उनके सवाल एक प्रकार के उत्तर ही हैं। वे जान-बूझकर ऐसे सवाल उठाते हैं जो पाठक को एक सही निष्कर्ष की ओर ले जाते हैं।
– असगर वजाहत
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AAGE AUR AAG HAI (Satire) by Virender Sengar
About the Author
इस दौर में भुला दी गयी कटाक्ष की शैली को उन्होंने खूब सींचा। राजनीतिक और सामाजिक विसंगतियों पर वह पैनी नजर रखते थे, जिसकी गवाही यह पुस्तक देती है।
Author | Virender Sengar |
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Binding | Paperback |
Language | Hindi |
ISBN | 978-93-6201-265-4 |
Pages | 237 |
Publisher | Setu Prakashan Samuh |
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