Description
Bharat mein Samyavad ki Dastak Aur Malayapuram Singaravelu Chettiyar (Biography) by Omprakash Kashyap
मलयपुरम सिंगारवेलु चेट्टियार (18 फरवरी 1860 -11 फरवरी 1946) को दक्षिण भारत का प्रथम साम्यवादी माना जाता है। सच तो यह है कि उन्होंने पूरे भारत के कम्युनिस्ट आन्दोलन को दिशा देने का काम किया था। ज्ञान-विज्ञान में रुचि रखने वाले सिंगारवेलु ने अपने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार से की थी। कुछ ही समय बाद वे प्रान्तीय मजदूर आन्दोलनों से जुड़ गये। 1920 में गांधी ने असहयोग आन्दोलन की शुरुआत की, तो मद्रास हाईकोर्ट की अपनी जमी-जमायी वकालत छोड़कर उसमें कूद पड़े।
श्रमिक आन्दोलनों में पैठ के कारण वे काँग्रेस के सम्पर्क में आए। अस्पृश्यता विरोधी आन्दोलनों में उन्होंने सहभागिता की। श्रमिक हित वहाँ भी उनकी प्राथमिकता रहे। मजदूर नेता के रूप में कई बड़ी हड़तालों का नेतृत्व उन्होंने किया। उन्हीं के नेतृत्व में 1 मई 1923 को देश में पहली बार मजदूर दिवस का आयोजन किया गया। इतना ही नहीं पहली बार ‘कॉमरेड’ कहने, मजदूर क्रान्ति का प्रतीक लाल झण्डा फहराने की पहल करने का श्रेय भी सिंगारवेलु को ही जाता है। उनका बड़ा काम था साम्यवादी विचारधारा पर आधारित लेबर एण्ड किसान पार्टी ऑफ हिन्दुस्तान की स्थापना; जिसने देश में साम्यवादी राजनीति की नींव रखी। दिसम्बर 1925 में देश में कम्युनिस्ट पार्टी के प्रथम सम्मेलन की अध्यक्षता उन्हीं ने की थी।
वे पेरियार से स्वाभिमान आन्दोलन के जरिये जुड़े तथा उसे साम्यवादी विचारधारा के अनुरूप ढालने का काम किया। जनसाधारण को रूढ़िवाद और अन्धविश्वासों से दूर करने के लिए तर्क और विज्ञान पर केन्द्रित लेखन वे लगातार करते रहे। इस पुस्तक से गुजरना न केवल उनके संघर्षशील जीवन, अपितु भारत में साम्यवादी राजनीति के आरम्भिक इतिहास से रूबरू होना है।
ओमप्रकाश कश्यप
15 जनवरी 1959 को जिला बुलन्दशहर (उ.प्र.) के एक गाँव में जन्मे ओमप्रकाश कश्यप की छवि एक गम्भीर और साहसी लेखक-अध्येता की है। अभी तक पाँच उपन्यास समेत नाटक, कविता, बाल साहित्य, वैचारिक लेखन आदि की उनकी 48 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। प्रकाशित पुस्तकों में- पेरियार ई.वी. रामासामी : भारत के वॉल्टेयर, पेरियार संचयन, समाजवादी आन्दोलन की पृष्ठभूमि, समाजवादी आन्दोलन के विविध आयाम, परीकथाएँ एवं विज्ञान लेखन, बचपन और बालसाहित्य के सरोकार, कल्याण राज्य का स्वप्न और मानव अधिकार, भारतीय चिन्तन की बहुजन परम्परा- आदि विशेष रूप से चर्चित हैं। इनके अतिरिक्त साहित्य, संस्कृति और समसामयिक मुद्दों पर सैकड़ों लेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में छप चुके हैं। उन्हें हिन्दी अकादमी, दिल्ली तथा उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा सम्मानित किया जा चुका है। सम्प्रति स्वतन्त्र लेखन।
Reviews
There are no reviews yet.