Description
JUNGLE KI KAHANIYAN by Sunayan Sharma
सुनयन शर्मा
वनों व वन्य जीवन के प्रति एक विशेष आकर्षण ही था कि सुनयन शर्मा (3 मार्च 1950) ने इंजीनियरिंग जैसे आकर्षक करिअर को छोड़कर वन सेवा को अपनाया व चार दशक तक वन विभाग के लिए अपनी सेवाएँ दीं और वन्यजीव प्रबन्धन इनका पसन्दीदा क्षेत्र रहा। प्रसिद्ध केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान के निदेशक के रूप में इनके द्वारा किये गये नवाचारों की यूनेस्को द्वारा भूरि-भूरि प्रशंसा की गयी। सरिस्का के प्रसिद्ध टाइगर रिजर्व को पुनः आबाद करने का श्रेय भी आपको है। इस पुस्तक में सम्मिलित कहानी, ‘रण थम्भोर से लाये बाघों ने स्वीकार किया सरिस्का का नया आशियाना’ इसी घटना पर आधारित है। वर्ष 2010 में सरिस्का से सेवा निवृत्ति होने के बाद एक दशक से भी अधिक समय के लिए सरिस्का टाइगर फाउण्डेशन के अध्यक्ष रहे, और राष्ट्रीय स्तर पर वन्यजीव संरक्षण के मुद्दों को उठाया। वन, वन्यजीव और आदिवासियों के लिए लेखक के लगाव और उनसे लम्बे साहचर्य व सम्बन्ध को इनके रचनाकर्म में बखूबी देखा जा सकता है। देश-विदेश के प्रमुख वन्यजीव क्षेत्रों के अनेकानेक भ्रमण-अनुभवों के आधार पर पुस्तकें, कहानियाँ, लेख लिखना इनकी अभिरुचि है। अभी तक सौ से अधिक इनके लेख/कहानियाँ देश-विदेश की प्रसिद्ध पत्र-पत्रिकाओं में प्रकशित हो चुके हैं। सरिस्का टाइगर रिजर्व रोअर्स अगेन (अँग्रेजी) व इसका हिन्दी रूपान्तरण (सरिस्का बाघ संरक्षित क्षेत्र में फिर से गूंजी दहाड़), केवलादेव नेशनल पार्क भरतपुर : बर्ड्स इन पैराडाइज व वाइल्ड ट्रेजर्स एण्ड एडवेंचर्स: ए फॉरेस्टर्स डायरी आदि इनकी प्रकाशित पुस्तकें भारी लोकप्रिय रही हैं। वन, वन्यजीव व पर्यावरण के हितार्थ लेखक आज भी सतत प्रयत्नशील हैं।
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