Description
Sari Prithvi Mera Ghar Hai (Poem) By Vinod Padraj
मेरे नजदीक विनोद पदरज उन कवियों में से एक हैं जिनकी कविताओं की मैं प्रतीक्षा करता हूँ और जिनकी मर्मभेदी कहन का कायल हूँ। आलोकधन्वा और विनोदकुमार शुक्ल सरीखी दूर से ही दिखाई देती भाषा उनकी नहीं है लेकिन हिन्दी के उन गिने-चुने कवियों सरीखी भाषा उनके पास है जिसके पास जाने पर उसकी अद्वितीयता दिखाई देती है।
वे लोक कवि नहीं है लेकिन उनकी कहन में उच्चकोटि की लोक कविताओं सरीखी विरल सादगी है और उनकी कविताओं का एक लोक है। पूर्वी राजस्थान के तलैटी, पचवारा, माड़, जगरौटी अंचल के जनजीवन की उदात्तताओं के हर्ष और छिछलेपन से उपजे शोक का गान उनकी कविताओं में इस तरह सुनाई देता है कि उसके प्रभाव से बाहर आना असम्भव होता है। उनकी अनेक कविताओं को पढ़ते हुए अपनी भाषा और अपने लोक से उनका प्यार रसूल हमजातोव के ‘मेरा दागिस्तान’ की याद दिला देता है।
उनके व्यक्तित्व का गठन इतना मजबूत और स्पष्ट है कि उन्होंने कभी बनी बनायी प्रतिबद्धताओं को नहीं ढोया। उन्होंने अपने जीवनानुभवों, साहित्य, इतिहास और अन्य अनुशासनों के अध्यवसाय से सीखते हुए अपनी प्रतिबद्धताएँ खुद तय कीं, जिनकी अनुगूँजें उनकी कविताओं में संगीत की तरह सुनी जा सकती हैं। मेरे निकट वे उन साहित्य साधकों में से एक हैं जिनके जीवन और रचनाकर्म में लगभग कोई फाँक नहीं है। और मुझे यह एक दुर्लभ बात लगती है।
– प्रभात
About the Author
विनोद पदरज
जन्म: 13 फरवरी 1960, राजस्थान के सवाईमाधोपुर जिले के गाँव मलारना चौड़ में
शिक्षा : एम. ए. (इतिहास)
प्रकाशित:पाँच संग्रह
1. कोई तो रंग है
2. अगन जल
3. देस
4. आवाज अलग अलग है
5. यत्क्रोंचमिथुनादेकम्
संचयन:
1. समकाल की आवाज, (चयनित कविताएँ)
2. एक आँख कौंधती है (स्त्री केन्द्रित कविताओं का संचयन) अनेक महत्त्वपूर्ण संग्रहों में भी कविताएँ शामिल।
पुरस्कार: पत्रिका का सृजनात्मक साहित्य पुरस्कार, प्रो घासीराम वर्मा साहित्य पुरस्कार; नन्द चतुर्वेदी सम्मान-प्रौढ़ शिक्षा के लिए भी कार्य।
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