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DESHBHAKTI, RASHTRAVAD AUR HINDUTVA Edited by Ravikant

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देशभक्ति, राष्ट्रवाद और हिन्दुत्व — रविकान्त


यह पुस्तक देशभक्ति, राष्ट्रवाद और आधुनिक जीवन से जो सम्बन्ध है, उसकी गहरी पड़ताल करती है, इस पड़ताल में देशभक्ति, राष्ट्रवाद का इतिहास और भूगोल भी है। इसमें देश की विभिन्न प्रकार की ताकतों से
उसकी मुठभेड़ को प्रमुखता से रेखांकित करने वाले आलेख सम्मिलित हैं। फासीवादी और ब्राह्मणवादी ताकतें भारत में देशभक्ति और राष्ट्रवाद की भावनाओं को उभारती हैं, भावनात्मकता, उत्तेजना का अपने फायदे
के लिए इस्तेमाल करती हैं। भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वर्तमान उभार से इस भावात्मक उत्तेजना में जो गुणात्मक वृद्धि हुई है उसे यह पुस्तक खासतौर पर अपने अध्ययन के कैनन में रखती है।
इस तरह यह राष्ट्रवादी चेतना का पक्ष नहीं, प्रतिपक्ष रचती है। आशा है यह पुस्तक, पुस्तक-प्रेमियों में समादृत होगी।


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Description

DESHBHAKTI, RASHTRAVAD AUR HINDUTVA Edited by Ravikant


About The Author

रविकान्त

अम्बेडकरवादी विचारक, राजनीतिक विश्लेषक, दलित मामलों के विशेष जानकार, साहित्य-समीक्षक, सामाजिक न्याय और साम्प्रदायिक सौहार्द के लिए निरन्तर लेखन एवं सक्रियता, कई किताबों के लेखक और सम्पादक, जैसे- आलोचना और समाज (2016), आज के आईने में राष्ट्रवाद (2018), आजादी और राष्ट्रवाद (2018), ‘आधा गाँव’ में मुस्लिम अस्मिता (2019), वैश्वीकरण, हिन्दी साहित्य और आलोचना (2020), इतिहास, धर्म और राजनीति (2020), अम्बेडकर, दलित और स्त्री प्रश्न (2023), अद्यतन हिन्दी काव्य (2023), प्रतिनिधि कविताएँ : ओमप्रकाश वाल्मीकि (2024), सम्पूर्ण कविताएँ : ओमप्रकाश वाल्मीकि (2024), वैश्विक आतंकवाद और भारत की अस्मिता (2024), आरएसएस और हिन्दुत्व की राजनीति (2024), खतरे में धर्मनिरपेक्षता (2025), अल्पसंख्यक राजनीति और समाज (2025), संविधान, संघ और डॉ. अम्बेडकर (2025), लहूलुहान कश्मीर और तड़पती कश्मीरियत (2025)।
पत्रिका सम्पादन : अदहन।
सम्प्रति : एसोसिएट प्रोफेसर,
हिन्दी तथा आधुनिक भारतीय भाषा विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ।


Additional information

Editor

Ravikant

Binding

Paperback

Language

Hindi

ISBN

978-93-6201-325-5

Pages

260

Publisher

Setu Prakashan Samuh

1 review for DESHBHAKTI, RASHTRAVAD AUR HINDUTVA Edited by Ravikant

  1. Surat singh

    हिन्दुत्व और फासीवादी प्रवृत्तियों के उभार को ऐतिहासिक सन्दर्भों में रखकर समझने वाली महत्वपूर्ण कृति, सामाजिक-राजनीतिक विमर्श को नया दृष्टिकोण देती है

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