Achhoot Kaun Aur Kaise By Bhimrao Ambedkar
Achhoot Kaun Aur Kaise By Bhimrao Ambedkar
15% off
अछूत कौन और कैसे – भीमराव अम्बेडकर
भारतीय इतिहास के तथाकथित स्वर्ण युग से छुआछूत के औचित्य को प्रश्नांकित करता ग्रन्थ
हिन्दू धर्म के भीतर सामाजिक संरचना के गठन की प्रक्रिया में एक ऐसे वर्ग की उत्पत्ति हुई जिसे न केवल समाज में सबसे हेय दृष्टि से देखा गया बल्कि उसे सामान्य मानवीय व्यवहार से भी वंचित रखा गया। डॉ. भीमराव अम्बेडकर की यह पुस्तक’ अछूत कौन और कैसे’ समाज के इसी वर्ग अर्थात् अछूतों की उत्पत्ति और उनकी स्थिति का ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर विश्लेषण करती है। इसमें न सिर्फ भारत में बल्कि सम्पूर्ण विश्व में अछूतों के अस्तित्व की जाँच-परख की गयी है। यह पुस्तक स्पष्ट करती है कि अछूतों और हिन्दुओं में नस्लीय आधार पर किसी प्रकार की भिन्नता नहीं है लेकिन ब्राह्मणों की घृणा और स्वयं को श्रेष्ठ समझने की भावना अछूतों की उत्पत्ति और उनकी बदतर स्थिति का कारण बनी। इसमें स्पष्ट किया गया है कि ब्राह्मणों द्वारा बौद्धों के प्रति घृणा और एक समूह विशेष के द्वारा गौमांस खाने के कारण उस वर्ग को ब्राह्मणवादी समाज से बहिष्कृत कर दिया गया और उन्हें अछूत के रूप में एक अलग समूह में स्थापित कर दिया गया। यह पुस्तक समाज की विभेदकारी प्रवृत्तियों का मूल्यांकन करते हुए वर्तमान व्यवस्था को समझने का स्पष्ट और व्यापक दृष्टिकोण प्रदान करती है।
₹170.00₹200.00
In stock
Author | Bhimrao Ambedkar |
---|---|
Binding | Paperback |
Language | Hindi |
ISBN | 978-93-6201-421-4 |
Pages | 208 |
Publication date | 14-01-2025 |
Publisher | Setu Prakashan Samuh |
Customer Reviews
There are no reviews yet.
You may also like…
-
Prak Cinema By Arun Khopkar
प्राक्-सिनेमा अरुण खोपकर अनुवाद रेखा देशपाण्डे
सिने-निर्देशक, सिनेविद्, सिने अध्यापक, लेखक अरुण खोपकर की पुस्तक ‘प्राक्- सिनेमा’ उनकी कला-विचार त्रयी में से ‘अनुनाद’ और ‘कालकल्लोल’ के बाद की तीसरी कड़ी है। सिनेमा ने केवल सवा सौ साल की अपनी उम्र में मानव जीवन पर बहुत गहरा प्रभाव डाला है। हजारों वर्षों की अवधि में विकसित होती चली गयी मानव की कलाओं और विज्ञान को अपने आप में समो लेने की शक्ति उसने हासिल की है। आदि मानव के बनाये गुफाचित्रों, जादूटोने, पाषाणशिल्पों, प्राचीन वास्तुओं, लोक कलाओं, धार्मिक विधियों, नृत्य, नाट्य, संगीत, साहित्य आदि के प्राचीन से आधुनिकोत्तर काल तक के प्रयोगों के सार-तत्त्व सिनेमा में उतरे हुए हैं। उन्हें आसान सी सुलझी हुई भाषा में उजागर करते हुए सिनेमा के इन अवतारों को आपस में जोड़ने वाली पुस्तक है’ प्राक्-सिनेमा’। फ़िल्म-निर्माण के अपने अनुभव और दुनिया भर की घुमक्कड़ी के दौरान अभिजात इमारतों, कलाकृतियों के किये संवेदनशील अवलोकन के चिन्तन के सम्पुट में जड़े जाने की वजह से इस कथ्य का रचना-विन्यास ठोस और तर्कसिद्ध बन गया है। चर्चित वास्तुओं और वस्तुओं में अजन्ता-घारापुरी की गुफाओं, दक्षिण भारत के मन्दिरों, मध्य एशियाई मस्जिदों, यूरोप के प्राचीन और आधुनिक गिरजाघरों और अत्याधुनिक दृक्-कलाओं के उदाहरण हैं। लेओनार्दों के साथ-साथ पर्शियन और मुग़ल मिनिएचर्स हैं। मातिस और पिकासो हैं। कथकली और भरतनाट्यम् के साथ-साथ अलग-अलग भाषाओं की साहित्य-कृतियों का विश्लेषण भी है। अभिजात सिनेमा के विकास में सभी कलाओं और शास्त्रों का जो सहयोग मिला है उसे यहाँ बड़ी नजाकत से पेश किया गया है। अरुण खोपकर की जीवन भर की खोजी प्रवृत्ति और समग्र विचार को लेकर उनके आग्रह की वजह से सिनेमा के पीछे खड़े सिनेमा के रहस्य को खोलकर पेश करने का उनका यह प्रयास सम्पन्न हुआ है। इस तरह की कोई पुस्तक भारतीय तो क्या विश्व साहित्य में भी अनन्य होगी।
– चन्द्रकान्त पाटील
₹550.00 -
Dalit Kavita – Prashana aur Paripekshya – Bajrang Bihari Tiwari
दलित कविता : प्रश्न और परिप्रेक्ष्य – बजरंग बिहारी तिवारीदलित साहित्यान्दोलन के समक्ष बाहरी चुनौतियाँ तो हैं ही, आन्तरिक प्रश्न भी मौजूद हैं। तमाम दलित जाति-समुदायों के शिक्षित युवा सामने आ रहे हैं। ये अपने कुनबों के प्रथम शिक्षित लोग हैं। इनके अनुभव कम विस्फोटक, कम व्यथापूरित, कम अर्थवान नहीं हैं। इन्हें अनुकूल माहौल और उत्प्रेरक परिवेश उपलब्ध कराना समय की माँग है। वर्गीय दृष्टि से ये सम्भावनाशील रचनाकार सबसे निचले पायदान पर हैं। यह ज़िम्मेदारी नये मध्यवर्ग पर आयद होती है कि वह अपने वर्गीय हितों के अनपहचाने, अलक्षित दबावों को पहचाने और उनसे हर मुमकिन निजात पाने की कोशिश करे। ऐसा न हो कि दलित साहित्य में अभिनव स्वरों के आगमन पर वर्गीय स्वार्थ प्रतिकूल असर डालने में सफल हों।
– इसी पुस्तक सेBuy This Book with 1 Click Via RazorPay (15% + 5% discount Included)
₹275.00 -
JUNGLE KI KAHANIYAN by Sunayan Sharma
जंगल की कहानियाँ – सुनयन शर्मा
एक जमाना था जब जंगल व शिकार की कहानियाँ हिन्दी साहित्य का अविभाज्य हिस्सा हुआ करती थीं। लेकिन देखते देखते ही जीवन की इस आपाधापी में साहित्य की यह विधा कहाँ गायब हो गयी पता ही नहीं चला। सच तो यह है कि अँग्रेजी साहित्य भी इस मार से बच नहीं सका। लेखक, जो भारतीय वन सेवा के अधिकारी रहे हैं, ने इस पुस्तक के जरिये इस विलुप्त- प्राय विधा को पुनर्जीवित करने का सार्थक प्रयास किया है। लेखक ने अपने लम्बे वन सेवा काल में अर्जित अनुभवों को इस पुस्तक में अत्यन्त रोचक कथानक के रूप में इस प्रकार से पिरोया है कि पाठक न सिर्फ लेखक के साथ वन्यजीवों से भरपूर विभिन्न जंगलों की सैर करता महसूस करता है बल्कि स्वयं को वन्यजीवों के अवैतनिक संरक्षक के रूप में देखने लगता है। यह पुस्तक इस दृष्टिकोण से भी विशिष्ट है कि जहाँ पहले की कहानियों में वन्यजीवों के शिकार के लिए चलने वाली बन्दूकों का वर्णन होता था वहीं इस पुस्तक में ऐसे दुर्दान्त शिकारियों की बन्दूकों को खामोश करने व उन्हें सीखचों के पीछे पहुँचाने के रोचक किस्से हैं। आम आदमी जंगल व वहाँ काम करने वाले लोगों की परिस्थितियों के बारे में बहुत कम जानकारी रखता है लेकिन इस अनजान क्षेत्र के बारे में जानकारी प्राप्त करने की प्रबल उत्कण्ठा उसके मन में सदा रहती है। लेखक ने वन सेवा के अपने विशद अनुभव को कहानियों में इस रोचकता के साथ पिरोया है कि हर कहानी न सिर्फ वन और वहाँ के जीवों के सौन्दर्य-रोमांच से पाठक को सराबोर कर देती है बल्कि उसे इस विशाल अद्भुत संसार के अबूझ रहस्यों से परिचित कराती है। लेखक ने जहाँ एक ओर घने सुदूर जंगलों के रहवासी आदिवासियों की आडम्बरविहीन विशिष्ट जीवन शैली से परिचय कराया है वहीं अपनी एक रोमांचक कहानी में जंगली भूतों के रहस्य से भी परदा उठाया है। बाघ एकाकी जीवन बिताता है लेकिन बाघिन जब बच्चों के साथ है तब वह कितनी खूंखार हो जाती है इसका अहसास तो लेखक की रोंगटे खड़े कर देने वाली कहानी से ही किया जा सकता है। यही नहीं यह कहानियाँ वनकर्मियों के जोखिम भरे जीवन में झाँकने का मौका भी बखूबी देती हैं। निश्चय ही यह पुस्तक न सिर्फ रोमांचक कहानियों के शौकीन व्यक्तियों को पसन्द आएगी बल्कि प्रकृति, पर्यावरण, वनों, वन्यजीवों के प्रति आकर्षण रखने वाले संवेदनशील लोगों के साथ ही साथ वन्यजीव प्रबन्धन से जुड़े लोगों के लिए भी काफी उपयोगी साबित होगी।
Order this Book with 1 Click Using Razorpay Button
₹260.00 -
Ardhsatyon Ka Poorn Kavi By Dr. Anamika Anu
अर्द्धसत्यों का पूर्ण कवि
अशोक वाजपेयी पर एकाग्र
कविताएँ । साक्षात्कार | लेख
— डॉ. अनामिका अनु
क्या हम यह जान या मान पाएँगे कि हमारी दुनिया उस वास्तविक सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में और समय के फ्रेम में एक क्षण भर है। स्थान के फ्रेम में एक बिन्दु है। ज्ञान की किताब में एक वर्ण भर है। हम किस गुमान में हैं और किस नामकरण की संस्कृति को जन्म देकर सन्तुष्ट हुए जा रहे हैं। यह आम है, यह खास है, यह पहाड़ है, यह घास है, यह सुन्दर है, यह असुन्दर है। अबोध होकर बौद्धिकता का मायाजाल फैलाकर जो प्रसन्नता और गर्व हमारे चेहरे पर दिखायी पड़ता है, उसे अखिल- अनन्त ब्रह्माण्ड ‘अबोध शिशु की हँसी या अहंकार’ मान प्रतिक्रियाविहीन रहता है। ये सारे भाव अशोक वाजपेयी की कविताओं को पढ़ते वक़्त आप महसूस करते हैं। मैं अशोक वाजपेयी को अर्द्धसत्यों का पूर्ण कवि मानती हूँ। यहाँ’ अर्द्धसत्य’ का मतलब ‘आधा-सच’ बिल्कुल नहीं है। सत्य को जबरदस्ती उद्घाटित, सत्यापित या जानकारी से ज्यादा जोड़कर न व्यक्त करने से है। जैसा कि हम सब जानते हैं कि यथार्थ का एक चित्र हो ही नहीं सकता है। जितने दृष्टिकोण उतने चित्र और हर कवि की काव्य विद्या उसे सम्पूर्णता से काग़ज़ पर संलिष्ट करने की कोशिश करती है। हर ईमानदार कवि ऐसी कोशिश बार-बार करता है।
– (किताब से)
₹275.00 -
Geeta Press Aur Hindu Bharat Ka Nirman by Akshay Mukul
गीता प्रेस और हिन्दू भारत का निर्माण – अक्षय मुकुल
अनुवाद : प्रीती तिवारीपुस्तक के बारे में…
अक्षय मुकुल हमारे लिए अमूल्य निधि खोज लाए हैं। उन्होंने गोरखपुर स्थित गीता प्रेस के अभिलेखों तक अपनी पहुँच बनाई। इसमें जन विस्तार वाली पत्रिका कल्याण के पुराने अंक थे। लेकिन सबसे महत्त्वपूर्ण कई दशकों तक कल्याण के संपादक और विचारक रहे हनुमान प्रसाद पोद्दार के निजी कागजात तक पहुँचना था। इन कागजात के जरिये मुकुल हमें हिन्दुत्व परियोजना के बीजारोपण से लेकर जनमानस में उसे मजबूत किए जाने के पूरे वाकये से रूबरू करवाते हैं। इससे भी आगे वे इसकी जड़ में मौजूद जटिलता तक पहुँचते हैं जहाँ रूढ़िग्रस्त ब्राह्मणवादी हिन्दुओं और मारवाड़ी, अग्रवाल और बनिया समुदाय के अग्रणी पंरॉयमदन मोहन मालवीय, गांधी, बिड़ला बंधुओं और गीता प्रेस के बीच की सहयोगी अंतरंगता, किंतु कभी मधुर कभी तिक्त संबंध बिखरे दिखाई देते हैं। यह किताब हमारी जानकारी को बहुत समृद्ध करेगी और आज जिन सूरत-ए-हालों में भारत उलझा है उसे समझने में मददगार साबित होगी।– अरुंधति रॉयBuy This Book with 1 Click Via RazorPay (15% + 5% discount Included)
₹599.00 -
Jinna : Unki Safaltayein, Vifaltayein Aur Itihas Me Unki Bhoomika by Ishtiaq Ahmed
मुहम्मद अली जिन्ना भारत विभाजन के सन्दर्भ में अपनी भूमिका के लिए निन्दित और प्रशंसित दोनों हैं। साथ ही उनकी मृत्यु के उपरान्त उनके इर्द- गिर्द विभाजन से जुड़ी अफवाहें खूब फैलीं।
इश्तियाक अहमद ने कायद-ए-आजम की सफलता और विफलता की गहरी अन्तर्दृष्टि से पड़ताल की है। इस पुस्तक में उन्होंने जिन्ना की विरासत के अर्थ और महत्त्व को भी समझने की कोशिश की है। भारतीय राष्ट्रवादी से एक मुस्लिम विचारों के हिमायती बनने तथा मुस्लिम राष्ट्रवादी से अन्ततः राष्ट्राध्यक्ष बनने की जिन्ना की पूरी यात्रा को उन्होंने तत्कालीन साक्ष्यों और आर्काइवल सामग्री के आलोक में परखा है। कैसे हिन्दू मुस्लिम एकता का हिमायती दो-राष्ट्र की अवधारणा का नेता बना; क्या जिन्ना ने पाकिस्तान को मजहबी मुल्क बनाने की कल्पना की थी-इन सब प्रश्नों को यह पुस्तक गहराई से जाँचती है। आशा है इस पुस्तक का हिन्दी पाठक स्वागत करेंगे।JINNAH: His Successes, Failures and Role in History का हिन्दी अनुवादBuy This Book Instantly thru RazorPay(20% + 5% Extra Discount Included)Or use Add to cart button Below, to use our shopping cart
₹700.00 -
RSS Aur Hindutva Ki Rajneeti By Ram Puniyani
आरएसएस और हिन्दुत्व की राजनीति – राम पुनियानी (सम्पादक रविकान्त)
आरएसएस जितना साम्प्रदायिक है, उससे भी ज्यादा वर्ण और जातिवादी है। आरएसएस का हिन्दुत्व दरअसल नया ब्राह्मणवाद है। गोलवलकर ने एक तरफ मुसलमानों और ईसाइयों को भारत से बाहर निकालने की बात की तो दूसरी तरफ वर्ण व्यवस्था की प्रशंसा करते हुए इसे कठोरता से लागू करने का सन्देश दिया। संघ के मुखपत्र ऑर्गनाइजर (2 जनवरी 1961) के अनुसार गोलवलकर ने अपने एक सम्बोधन में कहा था कि, ‘आज हम अपनी नासमझी की वजह से वर्ण व्यवस्था को नीचा दिखाने की कोशिश कर रहे हैं। जबकि यही वह व्यवस्था है जिसकी वजह से अधिकारात्मकता पर नियन्त्रण करने की महान् कोशिश की गयी है… हमारे समाज में कुछ लोग बौद्धिक, कुछ लोग पैदावार में माहिर, कुछ लोग दौलत कमाने में और कुछ मेहनत करने की क्षमता रखते हैं। हमारे पूर्वजों ने मोटे तौर पर ये चार विभाजन किये थे। वर्ण व्यवस्था कुछ और नहीं बल्कि उन चार विभाजनों के बीच सन्तुलन स्थापित करना है, इसके जरिये हर आदमी समाज की सेवा अपनी बेहतरीन क्षमता द्वारा कर सकता है जो उसने वंशानुगत रूप से विकसित की है। अगर यह व्यवस्था जारी रहती है तो हर व्यक्ति के जीवनयापन के लिए उसके जन्म से ही कार्य सुरक्षित रहेगा।’– भूमिका से
Buy This Book with 1 Click Using RazorPay
₹399.00 -
Sabhyata Ke Kone By Ramachandra Guha
संशोधित-परिवर्द्धित हिन्दी संस्करणसभ्यता के कोने
वेरियर एल्विन
और
भारतीय आदिवासी समाज– रामचन्द्र गुहा– अनुवादक अनिल माहेश्वरी
Book Instantly Using RazorPay Button
यह पुस्तक एक जीवनी है और इस विधा में अपनी विशिष्ट जगह बना चुकी है। समकालीन भारत के सबसे जाने-पहचाने इतिहासकार रामचन्द्र गुहा की लिखी महात्मा गांधी की जीवनी कितनी बार पढ़ी गयी और चर्चित हुई। लेकिन गुहा की कलम से रची गयी पहली जीवनी वेरियर एल्विन (1902- 1964) की थी। यह एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है जो ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से पढ़ाई समाप्त करके ईसाई प्रचारक के रूप में भारत आया। फिर यहीं का होकर रह गया। वह धर्म प्रचार छोड़कर गांधी के पीछे चल पड़ता है। उसने भारतीय आदिवासियों के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। वह उन्हीं में विवाह करता है। भारत की नागरिकता लेता है और अपने समर्पित कार्यों की बदौलत भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पण्डित जवाहरलाल नेहरू का विश्वास जीतता है। साथ ही उस विश्वास पर खरा उतरता है।
एल्विन का जीवन आदिवासियों के लिए समर्पण की वह गाथा है जिसमें एक बुद्धिजीवी अपने तरीके का ‘एक्टिविस्ट’ बनता है तथा अपनी लेखनी और करनी के साथ आदिवासियों के बीच उनके लिए जीता है। यहाँ तक कि स्वतन्त्रता सेनानियों में भी ऐसी मिसाल कम ही है।
रामचन्द्र गुहा ने वेरियर एल्विन की जीवनी के साथ पूर्ण न्याय किया है। मूल अँग्रेजी में लिखी गयी पुस्तक आठ बार सम्पादित हुई। मशहूर सम्पादक रुकुन आडवाणी के हाथों और निखरी। जीवनी के इस उत्तम मॉडल में एल्विन के जीवन को उसकी पूर्णता में उभारा गया है और शायद ही कोई पक्ष अछूता रहा है।
एल्विन एक बहुमुखी प्रतिभा के व्यक्तित्व थे। वे मानव विज्ञानी, कवि, लेखक, गांधीवादी कार्यकर्ता, सुखवादी, हर दिल अजीज दोस्त और आदिवासियों के हितैषी थे। भारत को जानने और चाहने वाले हर व्यक्ति को एल्विन के बारे में जानना चाहिए ! यह पुस्तक इसमें नितान्त उपयोगी है।
राम गुहा ने इस पुस्तक के द्वितीय संस्करण में लिखा है कि किसी लेखक के लिए उसकी सारी किताबें वैसे ही हैं जैसे किसी माता- पिता के लिए उनके बच्चे। यानी किसी एक को तरजीह नहीं दी जा सकती और न ही कोई एक पसन्दीदा होता है। फिर भी वो अपनी इस किताब को लेकर खुद का झुकाव छुपा नहीं पाये हैं। ऐसा लगता है गुहा अपील करते हैं कि उनकी यह किताब जरूर पढ़ी जानी चाहिए। और क्यों नहीं ?
₹649.00 -
Bharat Se Kaise Gaya Buddh Ka Dharm By Chandrabhushan
औपनिवेशिक भारत में स्तूपों की खुदाई, शिलालेखों और पाण्डुलिपियों के अध्ययन ने बुद्ध को भारत में पुनर्जीवित किया। वरना एक समय यूरोप उन्हें मिस्त्र या अबीसीनिया का मानता था। 1824 में नियुक्त नेपाल के ब्रिटिश रेजिडेण्ट हॉजसन बुद्ध और उनके धर्म का अध्ययन आरम्भ करने वाले पहले विद्वान थे। महान बौद्ध धर्म भारत से ऐसे लुप्त हुआ जैसे वह कभी था ही नहीं। ऐसा क्यों हुआ, यह अभी भी अनसुलझा रहस्य है। चंद्रभूषण बौद्ध धर्म की विदाई से जुड़ी ऐतिहासिक जटिलताओं को लेकर इधर सालों से अध्ययन-मनन में जुटे हैं। यह पुस्तक इसी का सुफल है। इस यात्रा में वह इतिहास के साथ-साथ भूगोल में भी हैं। जहाँ वेदों, पुराणों, यात्रा-वृत्तान्तों, मध्यकालीन साक्ष्यों तथा अद्यतन अध्ययनों से जुड़ते हैं, वहीं बुद्धकालीन स्थलों के सर्वेक्षण और उत्खनन को टटोलकर देखते हैं। वह विहारों में रहते हैं, बौद्ध भिक्षुओं से मिलते हैं, उनसे असुविधाजनक सवाल पूछते हैं और इस क्रम में समाज की संरचना नहीं भूलते। जातियाँ किस तरह इस बदलाव से प्रभावित हुई हैं, इसकी अन्तर्दृष्टि सम्पन्न विवेचना यहाँ आद्योपान्त है।
Buy This Book Instantly thru RazorPay
(Book and Courier Charges Included)
₹395.00 -
Vaishvik Aatankawad Aur Bharat Ki Asmita By Ram Puniyani
वैश्विक आतंकवाद और भारत की अस्मिता – राम पुनियानी (सम्पादक रविकान्त)
जरूरत इस बात की है कि हम केवल आतंकवाद के लक्षणों को न देखें बल्कि उस रोग का पता लगाने की कोशिश करें, जो आतंकवाद के उदय का मूल कारण है। केवल सुरक्षा व्यवस्था को कड़ा करने से काम नहीं चलेगा क्योंकि अधिकतर आतंकवादी अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अपना जीवन खोने के लिए तत्पर रहते हैं। हमने यह भी देखा है कि कुछ वैश्विक ताकतें आतंकवाद को प्रोत्साहन देती हैं और आतंकी संगठनों की मदद करती हैं। इसलिए यह आवश्यक है कि वैश्विक स्तर पर संयुक्त राष्ट्र संघ को और मजबूत बनाया जाए ताकि यह संगठन उन देशों के विरुद्ध कार्रवाई कर सके जो आतंकवादियों को शरण दे रहे हैं। अपने देश के स्तर पर हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि आतंकी हमलों के सभी दोषियों को बिना किसी भेदभाव के उनके किये की सजा मिले। हमें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि हमारी राजनीति नैतिक मूल्यों पर आधारित हो। जो तत्त्व व शक्तियाँ यह दावा कर रही हैं कि ये किसी धर्म विशेष या धर्म-आधारित राष्ट्रवाद की रक्षक हैं, उन्हें हमें सिरे से खारिज करना होगा। धर्म एक निजी मसला है और उसका राजनीति से घालमेल किसी तरह भी उचित नहीं कहा जा सकता। हमारी राजनीतिक व्यवस्था का आधार स्वतन्त्रता, समानता व बन्धुत्व के मूल्य होने चाहिए। अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर वैश्विक प्रजातन्त्र की स्थापना की जरूरत है जिससे चन्द देश पूरी दुनिया पर अपनी दादागिरी न चला सकें।
– प्रस्तावना से
Buy This Book with 1 Click Using RazorPay
₹399.00
Be the first to review “Achhoot Kaun Aur Kaise By Bhimrao Ambedkar”
You must be logged in to post a review.