Aahat Naad – Madan Mohan – Paperback
आहत नाद – मदन मोहन
आहत नाद एक ऐसा उपन्यास है जो हमारे समय और समाज से सीधे टकराता है। इसके लेखक मदन मोहन ने यथार्थ को वैसा ही पेश किया है जैसा वह वास्तविक दुनिया में नंगी आँखों से दीखता है, हमें घूरता हुआ, ललकारता हुआ।
विकास के ढेरों दावे और भारत के दुनिया का सबसे बड़ा लोकतन्त्र होने की रट हम सुनते ही रहते हैं। लेकिन हकीकत क्या है? लेखक हमें इसी सवाल के रूबरू ला खड़ा करता है। यह उपन्यास समकालीन भारत के खासकर हिन्दी पट्टी के सारे विद्रूप सारी परतों के साथ उघाड़कर रख देता है। चाहे वह विद्रूप राजनीति का हो, पुलिस- प्रशासन का हो या न्यायव्यवस्था का। यह कैसा लोकतन्त्र है जहाँ झूठे मामलों में फँसाया जाना और बरसों-बरस जेल में सड़ने के लिए अभिशप्त कर दिया जाना आम हो चला है। यह उनके साथ खासकर होता है जो अपने या कमजोर तबकों के हक के लिए लड़ते हैं या असहमति की आवाज उठाते हैं। न्यायिक प्रक्रिया उत्पीड़न की प्रक्रिया बन गयी है। बिना किसी कसूर के, किसी को सालों-साल जेल में रखकर उसका और उसके परिवार का जीवन तबाह किया जा सकता है,
उसके सम्मान को धूल में मिलाया जा सकता है, और यह सब सामान्य समझी जाने वाली प्रक्रिया के नाम पर होता है। जबकि रसूखदार लोग हर जाँच और कार्रवाई से बच जाते हैं, उनपर कोई आँच नहीं आती। इस उपन्यास में हम राजनीतिक ताकत, माफिया, पुलिस-प्रशासन और न्यायतन्त्र का गठजोड़ बेपर्दा होते देखते हैं। राजनीति का विद्रूप गाँव, कालेज, विश्वविद्यालय परिसर से लेकर विधायकी-सांसदी तक तमाम स्तरों पर चित्रित है। गाँव-देहात में कच्ची शराब की आसान उपलब्धता और इसके फलस्वरूप घटित होने वाली त्रासदी के जरिये लेखक ने हमारी व्यवस्था पर हावी आपराधिक गठजोड़ को उसकी सारी भयावहता में उजागर किया है। लेकिन इस सब के बरक्स ऐसे चरित्र भी हैं जो आदर्श तथा सरोकार की राजनीति का प्रतिनिधित्व करते हैं। उपन्यास में चित्रित उनकी संघर्ष गाथा रोमांचित करती है।
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