Janrav Edited by Vishal Srivastava

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जनरव

(जनवादी लेखक संघ, उत्तर प्रदेश के कवियों की कविताओं का साझा संग्रह)

इस पूरे संग्रह में हिन्दी के समकालीन परिदृश्य में मौजूद प्रतिबद्ध कवियों के काव्य-वैविध्य का एक व्यापक जायज़ा मिलता है। न केवल वय की दृष्टि से बल्कि जीवनानुभवों और अभिव्यक्ति के दृष्टिकोण से भी एक विपुल वैविध्य यहाँ उपस्थित है। आशा है कि यह संग्रह अपनी कविताओं के माध्यम से समकालीन हिन्दी कविता के व्यापक परिदृश्य में एक सार्थक हस्तक्षेप करने में समर्थ होगा। – भूमिका से


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Janrav Edited by Vishal Srivastava

 

विशाल श्रीवास्तव
शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी साहित्य); पी-एच.डी. (हिन्दी साहित्य) पुस्तकें : 1. ‘पीली रोशनी से भरा काग़ज़ ‘ (2016) (कविता संग्रह), नयी दिल्ली; 2. उत्तर औपनिवेशिक वैचारिकता के दायरे में सत्ता, समाज और संस्कृति (आलोचना एवं विमर्श); 3. समकालीन भारतीय परिदृश्य में उच्च शिक्षा (आलोचना एवं विमर्श), हिन्दी की विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं में कविताएँ और लेख प्रकाशित । पुरस्कार : अंकुर मिश्र स्मृति पुरस्कार, नयी दिल्ली (2005); वेणु गोपाल स्मृति सम्मान, नयी दिल्ली (2014); मीरा मिश्र स्मृति पुरस्कार, लखनऊ (2018); मलखान सिंह सिसौदिया कविता पुरस्कार, लखनऊ (2018)। सम्प्रति : विभागाध्यक्ष हिन्दी विभाग, राजकीय महाविद्यालय, पचवस-बस्ती (उ.प्र.) (सिद्धार्थ विश्वविद्यालय, कपिलवस्तु, सिद्धार्थनगर) ।

SKU: Janrav -Paperback
Category:
Editor

Vishal Srivastava

Binding

Paperback

ISBN

978-93-6201-418-4

Language

Hindi

Pages

224

Publisher

Setu Prakashan Samuh

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    पुस्तक के बारे में…

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    – अरुंधति रॉय

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    रवीन्द्र कालिया के इस संस्मरण-संग्रह का शीर्ष आलेख छूटी सिगरेट भी कमबख्त आज पढ़कर वे दिन याद आते हैं जब कई मौकों पर उन्होंने सिगरेट छोड़नी चाही मगर नाकामयाब रहे। हर सिगरेट-प्रेमी की दिक्कत यही है की वह सोचता है-वह कल से सिगरेट पिन छोड़ देगा। कभी होंठ जले तो कभी उँगलियाँ, कभी दृ जली तो कभी बिस्तर लेकिन छूटी वह तब जब शरीर ने बगावत करनी शुरू की।

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