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RADA (Novel) by Bhau Padhye

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राड़ा – भाऊ पाध्ये  (हिन्दी अनुवाद डॉ. गोरख थोरात)

मराठी से अनूदित उपन्यास


भाऊ पाध्ये सृजनात्मकता के मुक्त विकास के लिए जरूरी लेकिन वर्जित मानी गयी कई बातें कहने का साहस आखिर तक करते रहे हैं- सफलता की परवाह किये बिना। इसलिए सभी नये लेखक उनका आदर करते हैं।
‘वासूनाका’, ‘वैतागवाड़ी’, ‘बॅ. अनिरुद्ध धोपेश्वरकर’, ‘अग्रेसर’ जैसे एक के बाद एक छपे उपन्यासों के जरिये, भाऊ पाध्ये ने कथा शैली का उच्चतम प्रतिमान स्थापित किया है।
‘राड़ा’ एक ऐसे युवक पर केन्द्रित लघु उपन्यास है, जो हमारी महानगरीय औद्योगिक दुनिया में अपनी सहजता खो चुका है। आर्थिक विकास के चलते सतही तरक्कीपसन्द भोगवादी वर्ग के परिवार में रिश्ते कनकने होते जाते हैं। ऐसे शहरी सम्बन्धों के अनेक उदाहरण भाऊ पाध्ये को पता थे। इस दबाव में बिगड़ी युवा पीढ़ी का उन्हें जबरदस्त अहसास था और यही अहसास उनके लगभग सभी कहानी-उपन्यासों की जड़ों में नजर आता है।
युवाओं की सृजनशीलता इस महानगरीय माहौल में कैसे अपने आप विकृत रूप धारण करती जाती है, यही’ राड़ा’ का केन्द्र बिन्दु है।
– भालचन्द्र नेमाड़े


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Description

RADA (Novel) by Bhau Padhye Translated by Dr. Gorakh Thorat


 

About the Author

भाऊ पाध्ये
मराठी के यथार्थवादी कथाकारों में भाऊ पाध्ये (29 नवम्बर 1926-30 अक्टूबर 1996) का बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान है। उनकी कहानियों और उपन्यासों में हम ऐसे कड़वे यथार्थ से रूबरू होते हैं जिसे समाज छिपाना चाहता है और वहाँ ऐसी आवाजें सुनाई देती हैं जो हमेशा कुचली जाती रही हैं। हाशिये के लोग उनके पात्र हैं। मुम्बई के महानगरीय जीवन के निम्नवर्गीय यथार्थ को बिना किसी आवरण के पेश करना उनकी विशिष्ट शैली और खास पहचान है। दिहाड़ी मजदूर, शराबी, मवाली से लेकर छोटे-मोटे अपराध करने वाले तक, हाशिये पर जीने वाले तमाम लोग भाऊ की कहानियों तथा उपन्यासों में अपनी दारुण सच्चाइयों और अपनी लोक-बोली के साथ आबाद हैं। इस सिलसिले में भाऊ उनकी गालियों तक को जगह देने से परहेज नहीं करते, और इस कारण कई बार विवाद भी उठे। भाऊ कुछ साल श्रमिक आन्दोलन में भी सक्रिय रहे थे और स्वाभाविक है कि तमाम तरह के कामगारों का जीवन उन्होंने बहुत करीब से देखा था। ‘राड़ा’ उनका चर्चित उन्यास है। इसके अलावा उनकी प्रमुख कृतियों में शामिल हैं: ऑपरेशन छक्का (नाटक 1969), एक सुन्हेरे ख्वाब (कथासंग्रह 1980), करंटा (उपन्यास 1981), गुरुदत्त (चरित्र 1990), ‘डोंबाऱ्याचा खेळ’ (कथासंग्रह 1967), पिचकारी (विनोदी कथा 1969), बॅरिस्टर अनिरुद्ध धोपेश्वरकर (उपन्यास 1967), मुरगी (कथासंग्रह 1981), वॉर्ड नम्बर 7 सर्जिकल (उपन्यास 1980)। ‘वैतागवाडी’ उपन्यास पर उन्हें महाराष्ट्र राज्य पुरस्कार 1965, ‘बॅरिस्टर अनिरुद्ध धोपेश्वरकर’ उपन्यास पर ‘ललित’ पुरस्कार 1968 से नवाजा गया।


गोरख थोरात
हिन्दी में अनेक समीक्षात्मक ग्रन्थ प्रकाशित हैं; किन्तु आपकी पहचान बतौर मराठी-हिन्दी अनुवादक के रूप में है। ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता लेखक भालचन्द्र नेमाड़े के उपन्यास ‘हिन्दू-जीने का समृद्ध कबाड़’ से आपने अनुवाद कार्य प्रारम्भकिया। भालचन्द्र नेमाड़े के अलावा अशोक केलकर, चन्द्रकान्त पाटिल, महेश एलकुंचवार, अरुण खोपकर, दत्तात्रेय गणेश गोड़से, रंगनाथ पठारे, राजन गवस, जयन्त पवार, अनिल अवचट, मकरन्द साठे, अभिराम भड़कमकर, नरेन्द्र चपलगांवकर, बाबा भाण्ड, मनोज बोरगांवकर समेत कई साहित्यिकारों की विभिन्न विधाओं की कृतियों का अनुवाद आपने किया है। रजा फाउण्डेशन के लिए आपने साहित्य-संगीत-चित्रकला-स्थापत्य-आलोचना सम्बन्धी कई पुस्तकों का अनुवाद किया है। पत्र-पत्रिकाओं में आपके दर्जनों आलेख तथा अनुवाद प्रकाशित हैं।
आपको महाराष्ट्र राज्य हिन्दी अकादमी का ‘मामा वरेरकर अनुवाद पुरस्कार’, महामहिम राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के करकमलों द्वारा अमर उजाला शब्द सम्मान का ‘भाषा बन्धु’ पुरस्कार, Valley of Words International Literature and Arts Festival, Dehradun 2019 का ‘श्रेष्ठ अनुवाद पुरस्कार’, बैंक ऑफ बड़ौदा का ‘राष्ट्रभाषा सम्मान’ समेत कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है।
सम्प्रति आप हिन्दी विभाग, एस.पी. कॉलेज, पुणे में प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं।


raada-novel in hindi

Additional information

Author

Bhau Padhye

Translation

Gorakh Thorat

Binding

Paperback

Language

Hindi

ISBN

978-93-6201-789-5

Pages

200

Publisher

Setu Prakashan Samuh

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