Khalal (Novel) By Santosh Dixit

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ख़लल – संतोष दीक्षित

संतोष दीक्षित की गिनती हिन्दी के उन समकालीन कथाकारों में होती है जो हमारे समय और समाज के यथार्थ से सीधी मुठभेड़ करते हैं। उनका नया उपन्यास खलल उनको इस खूबों और पहचान की नये सिरे से पुष्टि करता है। मुर्तियाचक नामक एक इलाका उपन्यास की कथाभूमि है। लेकिन किसी आंचलिक सम्मोहन में बंधने या बाँधने के बजाय यह उपन्यास आज की एक विकट समस्या की शिनाख्त करता है। मुर्तियाचक धार्मिक लिहाज से मिश्रित आबादी वाला इलाका है, यहाँ पीढ़ियों से हिन्दू भी रहते हैं और मुसलमान भी, और उनके बीच मजबूत भाईचारा है। लेकिन राजनीतिक स्वार्थ से प्रेरित तत्त्व इस सौहार्द को बिगाड़ने पर तुले रहते हैं। उपन्यास इस साजिश को बेपर्दा करने के साथ ही सियासत और पूँजी के गठजोड़ को भी उजागर करता है। गरीबों को विस्थापित कर बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ होटल, मॉल तथा कारीडोर बनाना चाहती हैं और जैसे-जैसे उपन्यास आगे बढ़ता है, हम देखते हैं कि भाई-चारा बिगाड़ने में लगी ताकतें किस तरह बाजारवाद के न्यस्त स्वार्थ साधने में सहायक बनी हुई हैं। गरीबों को यह सब्जबाग दिखाया जाता है कि उन्हें उनकी जमीन के बदले आकर्षक मुआवजा तो मिलेगा ही, कम्पनियों में नौकरी भी मिलेगी। लेकिन ये सारे आश्वासन एक दिन छलावा साबित होते हैं। इस तरह यह उपन्यास दोहरे विस्थापन की दास्तान पेश करता है जिसमें लोग अपनी जमीन जायदाद भी गंवा बैठते हैं और आपसी सौहार्द भी। उपर्युक्त त्रासदी को परत दर परत कथा-विन्यस्त करते हुए यह उपन्यास अपनी पठनीयता में भी वृद्धि करता जाता है।

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Khalal (Novel) By Santosh Dixit


About the Author:-

संतोष दीक्षित

जन्म: 08 दिसम्बर 1958, ग्राम लालूचक, भागलपुर, बिहार।
शिक्षा लेखन: भागलपुर, पटना एवं राँची में।
लेखन:1994-95 से कथा क्षेत्र में लगातार सक्रिय। देश की शीर्षस्थ पत्रिकाओं में कहानियाँ प्रकाशित, चर्चित एवं विभिन्न भारतीय भाषाओं में अनूदित।
प्रकाशन: कहानी संग्रह’ आखेट’ (1997), ‘शहर में लछमिनियाँ’ (2001), ‘ललस’ (2004), ‘ईश्वर का जासूस’ (2008) एवं ‘भूप में सीधी सड़क’ (2014) प्रकाशित। इसके अतिरिक्त तीन व्यंग्य संग्रह एवं व्यंग्य कहानियों का एक संग्रह ‘बुलडोजर और दीमक’ तथा चयनित व्यंग्य 2022 में प्रकाशित। उपन्यास ‘केलिडोस्कोप’ 2010 में, ‘घर बदर’ वर्ष 2020, बगलगीर 2022 एवं ‘बैल को आँख 2023 में प्रकाशित।
सम्मान बनारसी प्रसाद भोजपुरी सम्मान।
सम्पादन: बिहार के कथाकारों पर के न्द्रित एक कथा संग्रह’ कथा बिहार’ का सम्पादन।
सम्प्रति स्वतन्त्र लेखन।

SKU: Khalal (Novel) By Santosh Dixit-PB
Categories:, ,
Author

Santosh Dixit

Binding

Paperback

Language

Hindi

ISBN

978-93-6201-608-9

Pages

360

Publication date

27-01-2025

Publisher

Setu Prakashan Samuh

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  • Kit Kit By Anu Shakti Singh

    Kit Kit By Anu Shakti Singh
    कित कित – अणुशक्ति सिंह

    मन की नदियों, हवाओं, चुप्पियों, कथाओं को रचना
    में रूप देने के लिए रियाज़ के साथ आत्मसंयम व
    कलात्मक अभिव्यक्ति का सन्तुलन वांछित होता है,
    तब एक रचना अपना प्रसव ग्रहण करने को उन्मुख
    होती है। जो कलाकार इस गहरे बोध से परिचित होते हैं
    वे गति से अधिक लय को भाषा में समाने का इन्तज़ार
    करते उसे अपना रूप लेने देते हैं। लय, जो अपनी
    लयहीनता में बेहद गहरे और अकथनीय अनुभव ग्रहण
    करती है उसे भाषा में उतार पाना ही कलाकार की
    असल सिद्धि है। अणु शक्ति ने अपने इस नॉवल में
    टीस की वह शहतीर उतरने दी है। यह उनके कथाकार
    की सार्थकता है कि नॉवल में तीन पात्रों की घुलनशील
    नियति के भीतर की कशमकश को उन्होंने दृश्य बन
    कहन होने दिया है। स्त्री, पर-स्त्री, पुरुष, पर-पुरुष,
    इनको हर बार कला में अपना बीहड़ जीते व्यक्त करने
    का प्रयास होता रहा। हर बार रचना में कुछ अनकही
    अनसुनी कतरनें छितराती रही हैं। वहाँ प्रेम और
    अकेलापन अपने रसायन में कभी उमड़ते हैं कभी
    घुमड़कर अपनी ठण्ड में किसी अन्त में चुप समा जाते
    हैं। अणु शक्ति इन मन:स्थितियों को बेहद कुशलता से
    भाषा में उतरने देती हैं व अपनी पकड़ को भी अदृश्य
    रखने में निष्णात साबित हुई हैं।

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  • Hua Karte the Raadhe by Meena Gupta


    हुआ करते थे राधे – मीना गुप्ता


    कई कथाकृतियाँ अपने समय के यथार्थ को बुनने और सामान्य जीवन का अक्स बन जाने की कामयाबी के कारण ही महत्त्वपूर्ण हो उठती हैं। मीना गुप्ता का उपन्यास ‘हुआ करते थे राधे’ भी इसी सृजनात्मक सिलसिले की एक कड़ी है। जैसा कि नाम से ही संकेत मिलता है, उपन्यास के केन्द्र में राधे नामक चरित्र है। उपन्यास शुरू से आखीर तक उसकी जिजीविषा और जद्दोजहद की दास्तान है। एक साधारण वैश्य परिवार में जन्मे राधे को, पिता की असामयिक मृत्यु हो जाने के कारण, बचपन से ही घर-परिवार का बोझ उठाना पड़ा। लेकिन राधे का जीवन संघर्ष यहीं तक सीमित नहीं है। अपने जीवन की दुश्वारियों के साथ-साथ उसे समाज के संकुचित व प्रगतिविरोधी मानसिकता वाले लोगों से भी जूझना पड़ता है। मसलन, घर में शौचालय बनवाने का राधे का निर्णय कुछ उच्चवर्णीय लोगों को रास नहीं आता। उनके विरोध के आगे झुकने के बजाय राधे गाँव छोड़ देता है। नयी जगह उसकी मेहनत और लगन रंग लाती है, परिवार में समृद्धि आती है। लेकिन यह समृद्धि टिकाऊ साबित नहीं होती, बेटे की गैरजिम्मेवारियों की भेंट चढ़ जाती है। उसकी हरकतों से आजिज आकर राधे सारी वसीयत पुत्रवधू के नाम कर देता है। वह पढ़ने- लिखने के लिए अपनी पोतियों को बराबर प्रेरित करता रहता है। बेटे की नालायकी से टूट चुके राधे की निगाह में लड़कियाँ ज्यादा जिम्मेदार और भरोसे के काबिल हैं। उपन्यास में व्यक्ति और समाज के द्वन्द्व को जितने तीखे ढंग से उकेरा गया है उतनी ही शिद्दत से परिवार के भीतर के द्वन्द्व को भी। कथ्य के साथ-साथ कहन शैली के लिहाज से भी यह उपन्यास महत्त्वपूर्ण बन पड़ा है।


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