Description
HALAFNAME (Novel) by Raju Sharma
About the Author
राजू शर्मा
जन्म : 1959
शिक्षा : दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफंस कॉलेज से भौतिक विज्ञान में स्नातकोत्तर। लोक प्रशासन में पी-एच.डी.।
1982 से 2010 तक आईएएस सेवा में रहे। उसके बाद से स्वतंत्र लेखन, मुसाफ़रत और यदा-कदा की सलाहनवीसी। लेखन के अलावा रंगकर्म, फिल्म व फिल्म स्क्रिप्ट लेखन में विशेष रुचि।
प्रकाशन : हलफनामे, विसर्जन, पीर नवाज, क़त्ल गैर इरादतन, ऐ मेरे वतन और मतिभ्रम (उपन्यास); शब्दों का खाकरोब, समय के शरणार्थी, नहर में बहती लाशें (कहानी-संग्रह); भुवनपति, मध्यमवर्ग का आत्मनिवेदन या गुब्बारों की रूहानी उड़ान, जंगलवश (नाटक)।
अनेक नाटकों का अनुवाद व रूपान्तरण-पिता (ऑगस्त स्ट्रिनबर्ग)।
मृत्यु आत्महत्या है या हत्या, इसका फैसला करना कभी-कभी असम्भव होता है। और कभी बेमानी। क्योंकि जिन कारणों से आत्महत्या हुई, वही कारण तो हत्यारे हुए।
– उपन्यास से
प्रशासन, शासन और राजनीति की अन्दरूनी बुनावट कितनी बदरंग हो चुकी है उसका प्रामाणिक दस्तावेज है ये किताब और वह बिना किसी लाग-लपेट के, सीधे घोषित सन्दर्भों में। ये बुनावट बहुत बारीकी से लेखक ने कहानी के साथ नत्थी कर दी है। यह समझना जरूर मुश्किल है कि किताब किसको कहानी ज्यादा है, पानी की कमी जैसे किसी गहरे सामाजिक संकट, जो वास्तव में जीवन का संकट बनता जा रहा है, के राजनीतिकरण की, खेती-किसानी की छिन्न-भिन्न हो चुकी आर्थिकी की, अथवा गिरते-भहराते मानवीय मूल्यों की जिसमें आत्महत्या जैसी शर्मनाक चीज को सार्वजनिक तौर से सरकारी उत्सव में तब्दील कर देने और वार्म वेलकम सा ट्रीटमेण्ट मिलने पर भी लोगों में चिन्ता की कोई बात नजर नहीं आती।
एक पाठकीय प्रतिक्रिया –
हलफनामे में कथा का औपन्यासिक विस्तार तो है ही, नये बदलते समाज की भयावह छवियाँ भी हैं।… हलफनामे अपने आप में केवल कथा रस का आनन्द ही नहीं देता उसमें एक गहरी विचारोत्तेजकता है। लेकिन इससे रोचकता में कोई कमी नहीं आ पायी है। लेखक ने भाषा में लोकप्रियता और कलात्मकता के मानकों को साथ-साथ आजमाया है। कथा में विमर्श और कथा भाषा की अन्तर्पाठकीयता के कौशल का भी लेखक ने बखूबी इस्तेमाल किया है।
– प्रभात रंजन
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