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PRITHIVI PRADAKSHINA : VIDESH ME 21 MAAS by Shivprasad Gupta

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पृथिवी-प्रदक्षिणा – शिवप्रसाद गुप्त  सम्पादक मुकुन्दीलाल श्रीवास्तव

(पुनर्सम्पादन : सविता पाण्डेय, प्रमोद कुमार पाण्डेय)


“पराधीन सपनेहूं सुख नाहीं”
“… मैं काशी लौट आया। काशी में तत्कालीन कमिश्नर और गवर्नर से बातचीत हुई। उन्होंने सहानुभूति दिखाने और माफी माँगने की जगह उलटा भला बुरा कहकर दुख, क्षति और नुकसान के साथ अपमान की वृद्धि की। इसका परिणाम मैंने अपने मन में यही निकाला कि पराधीन सपनेहूं सुख नाहीं।”

“शान्ति योर अमरीका की शक्तियों के आपस के समझौते का नाम नहीं है। संसार में उस समय तक शान्ति स्थापित नहीं हो सकती जब तक कि इस जगत् में एक भी मनुष्य मानव नाम को कलंकित करने के लिए दूसरों का दासत्व स्वीकार किये रहेगा।”

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Description

PRITHIVI PRADAKSHINA : VIDESH ME 21 MAAS by Shivprasad Gupta

About The Author


राष्ट्ररत्न श्रद्धेय बाबू शिवप्रसाद गुप्त (28 जून 1883-24 अप्रैल 1944)
प्यारे बापू ने उन्हें राष्ट्ररत्न कहा।
कालान्तर में यह उनकी ‘पदवी’ ही हो गयी! महामना पण्डित मदन मोहन मालवीय के प्रति उनकी अपार श्रद्धा थी। महामना को वे पिता कहते थे। गोविन्द मालवीय को भाई कहते थे। मालवीय जी का भी उनके प्रति अगाध स्नेह-दुलार था।
राष्ट्ररत्न बाबू शिवप्रसाद गुप्त सचमुच विरले व्यक्तित्व थे। रईसी कितनी उदात्त, सरोकार सम्पन्न और परोपकारी हो सकती है- यह उनके सम्पूर्ण व्यक्तित्व और राष्ट्र-निर्माण के अवदान में देखा जा सकता है! समाज, संस्कृति, शिक्षा, स्वतन्त्रता के लिए उन्होंने जीवन समर्पित कर दिया। दैनिक आज, भारत माता मन्दिर, काशी विद्यापीठ, ज्ञानमण्डल और अनेक सेवा, शिक्षा, प्रेरक संस्थाओं, स्थलों की स्थापना की। मनसा-वाचा-कर्मणा और तन-मन-धन से समाज और राष्ट्र की सेवा ही उनका जीवन था।
समाजसेवी, स्वतन्त्रता सेनानी, स्वप्नदर्शी संस्थान निर्माता, परोपकारी-वे गुणों की खान थे। पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ लिखते हैं- “सावन के सघल-घन की तरह शिवप्रसाद जी सहज स्वभाव से सभी के लिए जीवन-मय-सजल थे।”

Additional information

Author

Shivprasad Gupta

Editor

Mukandilal Srivastava

Binding

Paperback

Language

Hindi

ISBN

978-93-6201-714-7

Pages

640

Publisher

Setu Prakashan Samuh

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