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PRITHIVI PRADAKSHINA : VIDESH ME 21 MAAS by Shivprasad Gupta
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राष्ट्ररत्न श्रद्धेय बाबू शिवप्रसाद गुप्त (28 जून 1883-24 अप्रैल 1944)
प्यारे बापू ने उन्हें राष्ट्ररत्न कहा।
कालान्तर में यह उनकी ‘पदवी’ ही हो गयी! महामना पण्डित मदन मोहन मालवीय के प्रति उनकी अपार श्रद्धा थी। महामना को वे पिता कहते थे। गोविन्द मालवीय को भाई कहते थे। मालवीय जी का भी उनके प्रति अगाध स्नेह-दुलार था।
राष्ट्ररत्न बाबू शिवप्रसाद गुप्त सचमुच विरले व्यक्तित्व थे। रईसी कितनी उदात्त, सरोकार सम्पन्न और परोपकारी हो सकती है- यह उनके सम्पूर्ण व्यक्तित्व और राष्ट्र-निर्माण के अवदान में देखा जा सकता है! समाज, संस्कृति, शिक्षा, स्वतन्त्रता के लिए उन्होंने जीवन समर्पित कर दिया। दैनिक आज, भारत माता मन्दिर, काशी विद्यापीठ, ज्ञानमण्डल और अनेक सेवा, शिक्षा, प्रेरक संस्थाओं, स्थलों की स्थापना की। मनसा-वाचा-कर्मणा और तन-मन-धन से समाज और राष्ट्र की सेवा ही उनका जीवन था।
समाजसेवी, स्वतन्त्रता सेनानी, स्वप्नदर्शी संस्थान निर्माता, परोपकारी-वे गुणों की खान थे। पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ लिखते हैं- “सावन के सघल-घन की तरह शिवप्रसाद जी सहज स्वभाव से सभी के लिए जीवन-मय-सजल थे।”
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