Description
SHAANI RACHNAWALI (Vol. 1 to 6)
Edited by Janki Prasad Sharma
शानी (मूल नाम गुलशेर खान) का जन्म 16 माां 1933 की जगदलपुर में हुआ। हिन्दी के साहित्य-केन्द्रों से दूर जगदलपुर जैसे छोटे से कस्बे में उनके लेखक होने की जद्दोजहद एक मिसाली हैसियत रखती है। उन्होंने मध्य प्रदेश सूचना एवं प्रकाशन संचालनालय की एक मामुली नौकरी से अपना करियर आरम्भ किया। इसी नौकरी में जगदलपुर से ग्वालियर और फिर भोपाल तबादले पर आए। 1972 ई. में मध्य प्रदेश साहित्य परिषद के सचिव नियुक्त हुए।
‘साक्षात्कार’ पत्रिका उनके प्रपामों का ही
सुपरिणाम है। 1978 ई. में परिषद से सेवामुक्त होने के बाद दिल्ली की राह ली। यहाँ कुछ समय नवभारत टाइम्स के ‘रविवार्ता’ का सम्पादन किया। तदनन्तर 1980 ई. में साहित्य अकादेमी की पत्रिका ‘समकालीन भारतीय साहित्य’ के संस्थापक सम्पादक बने। यहाँ से 1991 में में सेवानिवृत्त हुए। फिर 1993-94 में ‘कहानी’ के पुनर्प्रकाशन के प्रवेशांक का सम्पादन किया। इसी दौरान उनके गुर्दे की बीमारी ने गम्भीर रूप धारण कर लिया जिसके सबब से 10 फरवरी 1995 को उनका देहावसान हो गया।
शानी ने जहाँ 28 वर्ष की अवस्था में ‘काला जल’ लिखकर उपन्यास की एक नयी परम्परा का सूत्रपात किया, वहीं समकालीन कहानी में अनेक ताता कथ्य भी दाखिल किये। कहानी के रुढ़ मुहावरे से बाहर जाकर अपनी सर्वना के लिए एक अलग इलाका निर्मित किया जिसमें निम्न मध्य वर्ग के भारतीय मुस्लिम परिवारों की दुनिया आबाद है। इस दुनिया के यथार्थ को सबसे पहले शानी की कथा-रचनाओं में केन्द्रीयता मिलती है। इस लिहाज से हिन्दी कथा-साहित्य की एक बड़ी रिक्तता को भरने का वेग उन्हें जाता है।
जानकीप्रसाद शर्मा
5 मार्च 1950 को सिरोज (विदिशा) मध्य प्रदेश में जन्म। प्रमुख प्रकाशन आलोचना ‘उर्दू साहित्य की परम्परा’, ‘उर्दू अदब के सरोकार’, ‘रामविलास शमां और उर्दू’, ‘कहानी का बर्तमान’, ‘कहानी एक संवाद’, ‘उपन्यास एक अन्तर्यात्रा’, ‘गाहे चगाहे ‘शानी’ (साहित्य अकादेमी मीनीग्राफ), ‘कविता की नई काहनात’ और ‘मनुष्यता की इबारतें लीलाधर मंडलोई की कविता सम्पादनशानी रचनावली का सम्पादन (छह खण्डों में), उद्भावना पत्रिका के मजारा, मप्टो, इस्मत चुगताई और साहिर लुधियानवी विशेषांकों का सम्पादन। अनुवाद उर्दू से हिन्दी में तीन दर्जन से अधिक किताबों के अनुवाद, जिनमें से चौदह अनुवाद साहित्य अकादेमी से प्रकाशित। सज्जाद तहरीर की ‘रौशनाई, मुहम्मद उमर की ‘हिन्दुस्तानी तहजीब का मुसलमानों पर असर, निदा फाजली की आत्मकथा ‘दीवारों के बाहर, फिराक गोरखपुरी के संग्रह ‘रम्ती किनायात ‘सहे कनात’ काठी अब्दुस्सत्तार के उपन्यास ‘दाराशुकोह’ व ‘गालिब’ के अनुवाद बतौर खास उल्लेखनीय शानी पर लिखे अपने मोनोग्राफ का स्वतः कृत उर्दू अनुवाद साहित्य अकादेमी से प्रकाशित। हिन्दी के साथ-साथ उर्दू में भी लेखन। सम्प्रति लाजपत राय कॉलेज, साहिबाबाद (गाजियाबाद) में हिन्दी विभाग के अध्यक्ष के रूप में सेवानिवृत्त (2012)।
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