Buddhijiviyon Ki Jimmedari – RaviBhushan
₹550.00 Original price was: ₹550.00.₹412.50Current price is: ₹412.50.
बुद्धिजीवियों की जिम्मेदारी – रविभूषण
आलोचक के रूप में रविभूषण का नाम काफी जाना-पहचाना है। लेकिन बुद्धिजीवियों की जिम्मेदारी साहित्यिक आलोचना की किताब नहीं है। इस किताब में वह एक बुद्धिजीवी और राजनीतिक विश्लेषक के रूप में सामने आते हैं। अमूमन राजनीतिक घटनाओं पर टीका- टिप्पणी, व्याख्या और विश्लेषण पत्रकारिता का गुणधर्म माना जाता है। वह तो इस पुस्तक में भी आद्योपान्त मिलेगा लेकिन राजनीतिक यथार्थ की पड़ताल करने का उनका तरीका पत्रकारीय यानी पेशेवर तटस्थता का नहीं है। न तो वह कोउ नृप होय हमें का हानी में यकीन करते हैं। पिछले कुछ बरसों समेत भारत के वर्तमान हालात का विश्लेषण उन्होंने कुछ सरोकारों के नजरिये से किया है और वह विश्लेषण तक सीमित नहीं रहते बल्कि यह सवाल भी उठाते हैं कि इन परिस्थितियों में बौद्धिकों की भूमिका क्या होनी चाहिए। यों तो बुद्धिजीवियों की जिम्मेदारी का प्रश्न आधुनिक काल में हमेशा उठता रहा है लेकिन रविभूषण जिस सन्दर्भ में यह सवाल उठा रहे हैं वह 2014 के बाद का भारत है। इस भारत में ऐसी ताकतों की बन आयी है जो पूँजी व प्रचार के खेल में माहिर हैं और जो सहिष्णुता, समता, सर्वधर्म समभाव तथा नागरिक स्वतन्त्रता जैसे संवैधानिक मूल्यों और जनतान्त्रिक आधारों में यकीन नहीं करतीं। यह ऐसा समय है जब स्वतन्त्र चिन्तन और लेखन पर निरन्तर आक्रमण हो रहे हैं। सत्ता आक्रमणकारियों और उत्पीड़कों के साथ खड़ी नजर आती है। ऐसे में बुद्धिजीवियों की जिम्मेदारी क्या बनती है, लेखक का यह सवाल खासकर हिन्दी के लेखकों-बौद्धिकों से वास्ता रखता है क्योंकि लोकतन्त्र विरोधी प्रवृत्तियों की सबसे सघन और सक्रिय मौजूदगी हिन्दी पट्टी में है। इस किताब में भाषा, संस्कृति, धर्म से जुड़े सवाल भी हैं, पर उनके तार उस व्यापक संकट से जुड़े हैं जो प्रस्तुत पुस्तक का परिप्रेक्ष्य है। कहना न होगा कि हमारे समय के सबसे भयावह यथार्थ से टकराते हुए लेखक ने बौद्धिक साहस का परिचय दिया है।
Kindle E-Book Also Available

In stock
Reviews
There are no reviews yet.