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Prak Cinema By Arun Khopkar

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प्राक्-सिनेमा अरुण खोपकर अनुवाद रेखा देशपाण्डे

सिने-निर्देशक, सिनेविद्, सिने अध्यापक, लेखक अरुण खोपकर की पुस्तक ‘प्राक्- सिनेमा’ उनकी कला-विचार त्रयी में से ‘अनुनाद’ और ‘कालकल्लोल’ के बाद की तीसरी कड़ी है। सिनेमा ने केवल सवा सौ साल की अपनी उम्र में मानव जीवन पर बहुत गहरा प्रभाव डाला है। हजारों वर्षों की अवधि में विकसित होती चली गयी मानव की कलाओं और विज्ञान को अपने आप में समो लेने की शक्ति उसने हासिल की है। आदि मानव के बनाये गुफाचित्रों, जादूटोने, पाषाणशिल्पों, प्राचीन वास्तुओं, लोक कलाओं, धार्मिक विधियों, नृत्य, नाट्य, संगीत, साहित्य आदि के प्राचीन से आधुनिकोत्तर काल तक के प्रयोगों के सार-तत्त्व सिनेमा में उतरे हुए हैं। उन्हें आसान सी सुलझी हुई भाषा में उजागर करते हुए सिनेमा के इन अवतारों को आपस में जोड़ने वाली पुस्तक है’ प्राक्-सिनेमा’। फ़िल्म-निर्माण के अपने अनुभव और दुनिया भर की घुमक्कड़ी के दौरान अभिजात इमारतों, कलाकृतियों के किये संवेदनशील अवलोकन के चिन्तन के सम्पुट में जड़े जाने की वजह से इस कथ्य का रचना-विन्यास ठोस और तर्कसिद्ध बन गया है। चर्चित वास्तुओं और वस्तुओं में अजन्ता-घारापुरी की गुफाओं, दक्षिण भारत के मन्दिरों, मध्य एशियाई मस्जिदों, यूरोप के प्राचीन और आधुनिक गिरजाघरों और अत्याधुनिक दृक्-कलाओं के उदाहरण हैं। लेओनार्दों के साथ-साथ पर्शियन और मुग़ल मिनिएचर्स हैं। मातिस और पिकासो हैं। कथकली और भरतनाट्यम् के साथ-साथ अलग-अलग भाषाओं की साहित्य-कृतियों का विश्लेषण भी है। अभिजात सिनेमा के विकास में सभी कलाओं और शास्त्रों का जो सहयोग मिला है उसे यहाँ बड़ी नजाकत से पेश किया गया है। अरुण खोपकर की जीवन भर की खोजी प्रवृत्ति और समग्र विचार को लेकर उनके आग्रह की वजह से सिनेमा के पीछे खड़े सिनेमा के रहस्य को खोलकर पेश करने का उनका यह प्रयास सम्पन्न हुआ है। इस तरह की कोई पुस्तक भारतीय तो क्या विश्व साहित्य में भी अनन्य होगी।

– चन्द्रकान्त पाटील


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Description

Prak Cinema By Arun Khopkar

अरुण खोपकर

मणि कौल द्वारा निर्देशित फ़िल्म ‘आषाढ़ का एक दिन’ में प्रमुख भूमिका के जरिए फ़िल्म जगत में प्रवेश कर चुके अरुण खोपकर ने फ़िल्म एण्ड टेलीविज़न इंस्टीट्यूट ऑफ़ इण्डिया, पुणे में निर्देशन का प्रशिक्षण पूरा किया। प्रसिद्ध फ़िल्म-निर्देशक, सिनेमा के मेधावी छात्र एवं अध्यापक अरुण खोपकर की समकालीन कलाओं पर बनीं फ़िल्मों के प्रदर्शन कई राष्ट्रीय एवं अन्तरराष्ट्रीय फ़िल्म समारोहों में होते रहे हैं और उन्होंने अब तक तेरह राष्ट्रीय एवं अन्तरराष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त किये हैं। इनमें से तीन स्वर्णकमल अर्थात सर्वोच्च राष्ट्रीय पुरस्कार हैं। होमी भाभा फ़ेलो रह चुके अरुण खोपकर उतने ही प्रसिद्ध लेखक भी हैं; अन्तरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में सौन्दर्यशास्त्र पर उनके सारगर्भित आलेख छपते रहे हैं। कला से सम्बन्धित उनकी छह पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। फ़िल्मकार गुरुदत्त पर लिखी उनकी पुस्तक सिनेमा पर लिखी सर्वश्रेष्ठ पुस्तक के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार की विजेता रही है। उनका लेख- संग्रह ‘चलत-चित्रव्यूह’ साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित हो चुका है। उनकी अन्य दो पुस्तकों को महाराष्ट्र राज्य पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं। फ़िल्म ऐण्ड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ़ इण्डिया, नेशनल फ़िल्म आर्काइव ऑफ़ इण्डिया, नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा, द मॉस्को स्कूल फ़ॉर हायर स्टडीज इन फ़िल्म स्क्रिप्टिंग ऐण्ड डाइरेक्शन, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, सेण्ट्रल यूनिवर्सिटी हैदराबाद, ऑक्सफर्ड म्यूजियम ऑफ़ मॉडर्न आर्ट, द वेनिस बिएनाले आदि संस्थानों में वे व्याख्यान देते आए हैं। अरुण खोपकर सत्यजित राय जीवनगौरव पुरस्कार एवं पद्मपाणि जीवनगौरव पुरस्कार से भी सम्मानित हो चुके हैं। वे पाँच यूरोपीय और छह भारतीय भाषाओं के जानकार हैं।

Additional information

Author

Arun Khopkar

Binding

Paperback

Language

Hindi

ISBN

978-93-6201-764-2

Pages

464

Publication date

14-01-2025

Publisher

Setu Prakashan Samuh

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