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Anutarit Log: Bhartiya Samkaleen Adivasi Kavita Sanchayan – Edited by Kanji Patel

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अनुत्तरित लोग

भारतीय समकालीन आदिवासी कविता संचयन
सम्पादक: कानजी पटेल


अगर हम आदिवासी कविता को स्वीकार नहीं करते और उसे उसका स्थान नहीं देते, तब हम मृत भविष्य की ओर बढ़ रहे हैं। ऐसा मैं इसलिए कहती हूँ क्योंकि एक कवि के रूप में मेरी विश्वदृष्टि मेरे आसपास के जीवन्त पर्यावरण से निर्मित हुई है-मनुष्यों का नदियों, वृक्षों, बाँस के जंगलों और उनमें बसी अन्तरात्माओं के साथ सह-अस्तित्व इसे आकार देता है। यह विश्वदृष्टि हमें धैर्य के साथ सुनने और परस्पर सम्मान करने की याद दिलाती है।
आदिवासी कविता पाठकों को असहज कर सकती है, क्योंकि यह किसी शुद्धि के लिए अथवा अलंकृत ढाँचे के लिए नहीं बनी है। इसे आपको उपनिवेशवादी सोच से मुक्त करने दें, क्योंकि यह अपनी जड़ों तक ले जाती है और उन दमनकारी तथा साम्राज्यवादी व्यवस्थाओं पर सवाल उठाने के लिए प्रेरित करती है, जिन्होंने सदियों से इसकी शक्ति को मिटाने की कोशिश की है। कविता को उसकी अपनी भाषाओं, प्रतीकों, ध्वनियों और अभिव्यक्तियों में सुनें। यह कविता सद्भाव और संघर्ष से उपजी दृढ़ता की संस्कृति है। एक कवि के रूप में मेरे शब्द उस बोलते हुए ब्रह्माण्ड का हिस्सा हैं, जो मेरे पूर्वजों की अनेक आवाजों के साथ समवेत स्वर में बोलता है। यह धरती से उपजी वह कथा-परम्परा है, जो हमारी कहानियों को साँस लेने और जीवन्त होने का अवसर देती है-उन हाथों में जो मिट्टी से जीवन उगाते हैं, उन स्त्रियों की आवाजों में जो पीढ़ियों से अपने समुदायों की बर्बादी और संघर्ष की साक्षी रही हैं। इस ब्रह्माण्ड को फलने-फूलने दें, शायद तब हम अपने भविष्य को अधिक संवेदनशीलता और जागरूकता के साथ दिशा दे सकें।
– एस्बर सियेम


आदिवासी कविता की जब बात की जाती है तो प्रायः मौखिक परम्परा की समृद्ध धरोहर को रेखांकित किया जाता रहा है, जबकि सैकड़ों आदिवासी भाषाओं में आदिवासी जीवन, परिवेश और वैचारिकी की काव्यात्मक अभिव्यक्ति हुई है। दूसरी बात यह कि आदिवासी कविता को केवल ‘प्रतिरोध का स्वर’ मान लिया जाता रहा है, जबकि उसका केन्द्रीय भाव वैश्विक है, जिसमें मनुष्य, मानवेतर प्राणीजगत और प्रकृति के विविध तत्त्वों के मध्य अपेक्षित व अनिवार्य सामंजस्य को लेकर चिन्ता एवं चिन्तन का समावेश है। हमारे सामने बड़ी चुनौती इस रचनात्मकता को विशेषकर हिन्दी व अँग्रेजी जैसी भाषाओं में अनूदित कर प्रस्तुत करने की है, ताकि कविता के माध्यम से आदिवासी समझ का अधिकाधिक प्रचार-प्रसार हो सके। प्रस्तुत संचयन ‘भारतीय की समकालीन आदिवासी कविता’ के सम्पादक कानजी पटेल ने लगभग डेढ़ सौ आदिवासी भाषाओं के चार सौ कवियों की पाँच सौ के आसपास कविताएँ इसमें संकलित की हैं। साधुवाद कानजी भाई को, सलाम आदिवासी कविता और उसके वैचारिक सन्देश को !
– हरिराम मीणा


यह पृथ्वी के नागरिकों की कविताओं का संग्रह है। ये वे लोग हैं जो शहरों, प्रदेशों या राष्ट्रों के नागरिक होने से कहीं पहले खुद को पृथ्वी का नागरिक मानते हैं। उसी तरह जीवन व्यतीत करते हैं, उसी तरह काव्य रचना करते हैं। ये कविताएँ प्रकृति के प्रति अनुराग और उसे नष्ट करने का प्रयास करने वालों के विरुद्ध चीखें हैं, चेतावनियाँ हैं। मानो पृथ्वी के नागरिक अपनी पृथ्वी को बचाने का आह्वान कर रहे हों। इन कविताओं में प्रार्थना और प्रेम के स्वरों के अलावा अगर प्रतिरोध का स्वर भी है तो उसके मूल में भी करुणा का ही वास है। वे नया संसार बनाने के उपक्रम में नहीं लगे हैं, वे पृथ्वी को, पेड़-पौधों को, पशु-पक्षियों को, मानवीय सम्बन्धों को उनकी खूबसूरती में बचाये रखने का उद्यम कर रहे हैं। इन कविताओं में करुणा की जमीन पर सौन्दर्य का पौधा उगा है, लहलहा रहा है।
– उदयन वाजपेयी


मनुष्य बहुत बाद में आए। उन्होंने प्रकृति में एक अन्तहीन प्रवाह देखा। इस मिश्रण से मन में आदिम काव्य का अंकुरण हुआ। यही तो है ‘आदिवासी कविता’। इसका पहला खिलना शायद एक मधुर गीत था, जो एक समूह द्वारा नृत्य और संगीत के साथ पेश आया, जो पेड़ों, नदियों, पृथ्वी और आकाश की संगति में था। यह आदिवासी जीवन का एक मूलभूत हिस्सा है…
इस कविता में जुल्मों के खिलाफ आवाजें घुली हुई हैं। आदिवासी इसे पूर्वजों का साहित्य या पुरखौती कहते हैं। बैगा कर्मा गीत में सुनाई देती है प्रतिरोध की आवाज-
चारों ओर खूँट चौरासी, गीधन के सम्मान, जहाँ बैठे राजवारे। घोड़न के पहाड़ देखें, कैंटन का अटारी, हाथिन के तो आराम देखें, दोस्त है लाराय, सिंहासने बैठे राजवारे।
लाशों के ढेर लगे, ऊपर राजा अपने सिंहासन पर बैठा है। वहाँ मरे हुए घोड़ों और ऊँटों के पहाड़ हैं। वहाँ हाथियों के कटे हुए पैर पड़े हुए हैं। राजा सिंहासन पर हैं। बैगा आदिवासियों की यह आवाज, इस 150 साल पुराने गीत में उस भयावह कहानी को बयां कर रही है जिसे बैगा आज भी नहीं भूले हैं।
क्या कोई सुनेगा वंचित, असहाय आदिवासियों की हृदय विदारक पीड़ा ?
– वसंत निरगुणे


 

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Description

Anutarit Log: Bhartiya Samkaleen Adivasi Kavita Sanchayan


About the Author
कानजी पटेल
गुजराती लेखक हैं जिनके पाँच कविता संग्रह, तीन उपन्यास
और एक कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। दशकों के बहुभाषी रचनात्मक अनुभव के साथ, कानजी पटेल ने काव्य पत्रिका वही का प्रकाशन और सम्पादन किया, जिसने गुजराती साहित्य के साथ-साथ भारतीय साहित्य में कई नयी आवाजों को जन्म दिया। उन्होंने आदिवासी भाषाओं और संस्कृतियों में अपनी विशेषज्ञता का उपयोग भारतीय भाषा लोक सर्वेक्षण के गुजरात, दीव, दमण और दादरा एवं नगर हवेली खण्ड के सम्पादन में किया। उन्होंने आदिवासी, खानाबदोश और विमुक्त समुदायों के लिए सांस्कृतिक अभिव्यक्ति का एक मंच तैयार करने हेतु गुजरात में कलेश्वरी मेला भी शुरू किया।


An Unanswered People : An Anthology of Contemporary Adivasi Poetry from India

Additional information

Editor

Kanji Patel

Binding

Paperback

Language

Hindi

ISBN

978-93-6201-030-8

Pages

551

Publisher

Setu Prakashan Samuh

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