Rundhe Kanth Ki Abhyarthana (Poems) By Smita Sinha

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रुँधे कण्ठ की अभ्यर्थना — स्मिता सिन्हा


स्मिता सिन्हा की कविताएँ यथार्थ का सामना करती हैं। वे किसी प्रकार के नास्टेल्जिया में नहीं डूबीं। उनकी कविता ‘निस्तारण’ इस बात का उदाहरण है कि किस तरह वे जीवन की सच्चाइयों को निरन्तर उधेड़ती और उनसे निपटने का साहस करती हैं।
उनकी कविताएँ इस बात की पुष्टि करती हैं कि स्त्री केवल ‘स्त्री’ नहीं, बल्कि एक स्वतन्त्र मनुष्य है। यह स्वतन्त्रता ही उनकी कविताओं को प्रासंगिक और प्रभावी बनाती है।
स्मिता की कविता ‘अधूरी कविता की स्त्री’ में स्त्री का संघर्ष और उसकी अपूर्णता को बखूबी उभारा गया है। यह अधूरी स्त्री अपनी अपूर्णता के बावजूद पूर्णता की ओर अग्रसर है। वह अपनी चुप्पी को तोड़ने और अपने निर्णयों की बागडोर खुद थामने के लिए तत्पर है।
स्मिता सिन्हा की कविताएँ एक नये युग की दस्तक हैं। उनकी लेखनी में वह गहराई और संवेदनशीलता है, जो उन्हें साहित्यिक जगत में एक विशेष स्थान दिलाती है। ‘रुँधे कण्ठ की अभ्यर्थना’ उनके उज्ज्वल भविष्य का संकेत है। यह संग्रह न केवल स्त्री जीवन की जटिलताओं का दस्तावेज होगा, बल्कि साहित्य में स्त्री के संघर्ष और उसको सृजनशीलता का उत्सव भी।
स्मिता सिन्हा की कविताएँ स्त्री की यात्रा को एक नये आयाम में प्रस्तुत करती हैं। उनकी कविताओं में प्रेम, संघर्ष, संवेदना, और अधिकार की ध्वनियाँ गहराई से महसूस की जा सकती हैं। ‘रुधे कण्ठ की अभ्यर्थना’ केवल एक कविता संग्रह नहीं है, बल्कि स्त्री के अस्तित्व और सृजनशीलता का उत्सव है।
– अष्टभुजा शुक्ल (भूमिका से)


वह अपनी प्रतिच्छाया सी ओढ़ता, बिछाता रहा हँसाता, रुलाता रहा फिर छोड़ आया मुझे अपने मन के किसी उदास कोने में उसी ढलती साँझ में मैंने देखा वह ताक रहा था अपलक पुच्छल तारों को…
जबकि सुदूर कहीं टूट रही थी एक अधूरी प्रार्थना
अपने ईश्वर के इस बेबस मौन पर
– इसी पुस्तक से


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Rundhe Kanth Ki Abhyarthana (Poems) By Smita Sinha


About the Author

स्मिता सिन्हा
समकालीन हिन्दी साहित्य की एक सशक्त आवाज हैं। उनका पहला काव्य-संग्रह ‘बोलो न दरवेश’ (सेतु प्रकाशन, 2021) पाठकों और आलोचकों के बीच समान रूप से सराहा गया।
शिक्षा और कार्य अनुभवः
अर्थशास्त्र (एम.ए., पटना), पत्रकारिता (आईआईएमसी, नयी दिल्ली) और बी. एड. (कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय) की शिक्षा प्राप्त स्मिता ने पत्रकारिता के क्षेत्र में 15 से अधिक वर्षों का अनुभव अर्जित किया है। वे विश्वविद्यालय स्तर पर एम.बी.ए. फैकल्टी के रूप में भी कार्यरत रही हैं।
साहित्यिक योगदान :
स्मिता की कविताएँ नया ज्ञानोदय, कथादेश, वागर्थ, पाखी, बनास जन सहित अनेक प्रतिष्ठित पत्रिकाओं और जानकीपुल, शब्दांकन, पहली बार जैसे ब्लॉग्स पर प्रकाशित हुई हैं। उनकी रचनाएँ हिन्दवी और कविता कोश पर भी उपलब्ध हैं।
सम्मान और मंच :
रफा फाउण्डेशन के युवा 21, युवा 22 और समवाय 23 जैसे प्रतिष्ठित आयोजनों में भागीदारी के साथ वे भारत भवन जैसे मंच पर कविता पाठ कर चुकी हैं।


SKU: Rundhe Kanth Ki Abhyarthana By Smita Sinha-PB
Category:
Author

Smita Sinha

Binding

Paperback

Language

Hindi

ISBN

978-93-6201-016-2

Pages

176

Publication date

01-02-2025

Publisher

Setu Prakashan Samuh

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    कविता पूरी पन्नों पर कब हुई है अनेक अधूरे अर्थों में बिखर जाती है आदमी पूरे होने की जिद में थोड़ा कम ही रह जाता है अधूरापन एक गहरा अहसास एक कशिश छोड़ता है यही उसका पूरापन होता है
    – इसी संग्रह से


    आशुतोष की कविताओं में प्रेम है तो प्रकृति भी है। वर्तमान का बेबाक चित्रण है, तो संघर्ष और जिजीविषा भी है। कवि कभी भी उदासियों और अँधेरों को मंजिल नहीं मानता, वह हर वक्त उसके पार जाने को उत्सुक रहता है। कभी वह धारदार आँखों वाली बहस करती लड़की को शब्द देता है, कभी अपने फेफड़ों में भरपूर ऑक्सीजन भरकर सत्ता से टकराने को उद्यत रहता है। कभी नदियों के लापता होने की खबर लिखता है, तो कभी लड़ने के लिए गीत सिखाता है। कभी मछुआरों की बस्तियों में जाता है, तो कभी बुनकरों के पास। कभी लिखता है-“धरती का पानी / आँखों का पानी / रिश्तों का पानी/ सूख रहा है। नदियों का पानी / रेत पी गया।” कभी वह कोलकाता के कॉलेज स्ट्रीट पर बारिश का इन्तजार करता है, कभी चेन्नई की धरती की चिन्ता करता है, जिसके जल स्तर का पता ही नहीं चलता। कभी उसकी कविता शाहीन बाग पहुँचती है, तो कभी डरे हुए पक्षियों को अभिव्यक्त करती है।
    – प्रो. योगेन्द्र (भूमिका से)

    297.50350.00
  • Dhoop Ke Hastakshar (Poems) By Panna Trivedi

    धूप के हस्ताक्षर – पन्ना त्रिवेदी


    पन्ना त्रिवेदी का संग्रह ‘धूप के हस्ताक्षर’ कई मायनों में विशिष्ट है। पन्ना त्रिवेदी की कविताओं की केन्द्रीय संवेदना में समय,
    समाज और सत्ता प्रतिष्ठान को नीयत के विरुद्ध एक उत्कट विकलता है जो हमें कवयित्री की मानसिक बुनावट,
    उनकी सादगी के सौन्दर्य, उनकी चिन्ता और भावप्रवणता से अवगत तो कराती ही हैं उनके काव्यशिल्प को, उनकी
    काव्यभाषा को भी तय करती हैं। पन्ना त्रिवेदी यों तो प्रमुख रूप से गुजराती साहित्य की प्रतिष्ठित कहानीकार हैं,
    परन्तु उनकी गुजराती कविताओं ने भी उन्हें अपना एक स्थान दिलाया है। इस दृष्टि से गुजराती के अलावा
    पन्ना त्रिवेदी की हिन्दी में भी सृजनात्मक उपस्थिति हिन्दी के भूगोल की विविधता को और अधिक विस्तार देती हैं।
    कविताओं में प्रतीक, रूपक, बिम्ब-विधान, उपमाये
    और तुलनाएँ सहज ही कविता के पाठक का ध्यान
    आकर्षित करती हैं। इसलिए नहीं कि कवयित्री कोई
    सायाश चमत्कार पैदा करती हैं, बल्कि उनमें
    सौन्दर्यबोध की भव्यता मिलती है।


    वे जानने लगते हैं
    जाति ही नहीं भाषा से भी हो सकती है राजनीति
    जिसमें कोई चुनाव नहीं होता
    जिसमें कोई प्रत्याशी नहीं होता
    खड़ा होता है एक पूरा समूह
    जो जीत जाता है पुरुषत्व के बल पर
    या आभिजात्य के नाम पर
    भाषा धकेल सकती है
    किसी को भी हाशिये के हाशिये पर
    बनाये रखती है स्त्री को मात्र स्त्री
    अछूत को मात्र अछूत सदैव के लिए
    वह नहीं बनने देती मुख्यधारा का इंसान उसे
    – इसी पुस्तक से


     

    213.00250.00
  • Jab Chije Der Se Aati Hain Jeevan Mei (Poems) by Nishant

    जब चीजें देर से आती हैं जीवन में  – निशान्त
    (कविताएँ : 2009-2018)


    वे तय कर रहे थे-
    ‘व्यवस्था को जंगल में बदल दो इन्हें आदिवासियों में।’
    विकास का झुनझुना पकड़ा दो इनके हाथों
    में और
    फिर करते रहो इनका शिकार
    और कहते रहो – ‘आत्महत्या कोई विकल्प नहीं है।’
    जफर, नौकरी जरूरी थी प्रकाश के लिए लेकिन उससे भी जरूरी था उसकी आँखों
    का बदलना
    वे बदल गयी होतीं तो
    एक दोस्त और जिन्दा रहता हमारे बीच।

    – इसी पुस्तक

    149.00175.00
  • SARI PRITHVI MERA GHAR HAI (Poem) by Vinod Padraj

    सारी पृथ्वी मेरा घर है – विनोद पदरज


    आजकल मैं भी
    उसी बुढ़िया की तरह हो गया हूँ
    प्रतीक्षा करता हुआ कि सब लौटें
    एक भी कम नहीं
    सब लौटें
    प्रसव को अस्पताल गयी स्त्रियाँ जरूर लौटें
    नवजातों को लिये
    लाम पर गये सैनिक जरूर लौटें
    स्कूल गये बच्चे बड़ी कक्षाओं के विद्यार्थी
    रोजगार की तलाश में गये युवक युवतियाँ
    कामकाजी आदमी औरतें कृषक मजूर
    गोधूलि में धूल उड़ाते हुए पशु लौटें
    पक्षी लौटें नीड़ों में
    चहचहाते हुए
    मेरे पेट के तो सभी हैं
    सारी पृथ्वी मेरा घर है
    – इसी पुस्तक से

    225.00250.00
  • SAWAL TO HONGE HI (Poem) by Asangghosh

    सवाल तो होंगे ही – असंगयोष


    वरिष्ठ कवि असंगघोष का यह 11वाँ कविता संग्रह है। उनके पिछले कविता संग्रह उनके दाहक अनुभवों के समुच्चय हैं। प्रस्तुत कविता संग्रह ‘सवाल तो होंगे ही’ नये प्रतीकों, नये शिल्प और प्रमाणित कथ्यों से परिपूर्ण है। कवि जीवन में इतनी नफरत, भेदभाव से झुलसा दिया गया है कि उनके शब्द-शब्द से चिंगारियाँ सी फूटती दिखाई देती हैं। कुछ जाति जमात वालों के झूठे/खोखले श्रेष्ठता बोध के तले उनकी अस्मिता जैसे बार-बार रौंदी गयी है जो उनकी अधिकांश कविताओं में मुखरित हुई है। लेकिन इतनी बेतहाशा खराशें जो उनके अति संवेदनशील मन पर पड़ी है उनमें उनके द्वारा वर्णित प्रकृति के कोमल और सुन्दर दृश्य एक ‘बाम’ का काम करते हैं। उदाहरणस्वरूप नदी (जो अविरल बहती जीवनधारा का प्रतीक है) पर उनकी छह कविताएँ हैं। साथ-साथ पहाड़, पेड़-पौधे, उनमें बसेरा करने वाले पक्षी आदि प्रतीकों के प्रचुर चित्र उकेरे गये हैं। जो बहुत सुकून और शान्ति से भर देते हैं। लेकिन यह चन्द घड़ियों तक है। ऐसे वर्तमान कठिन समय में जब हमारी हर साँस पर सख्त पहरे बिठाये गये हैं; जब एक आतंक सा छाया हुआ है; व्यवस्था में भेदभाव, सन्त्रास और विद्रूपता क्यों व्याप्त है’ सवाल तो होंगे ही’।

                                                                                          – शिवनाथ चौधरी ‘आलम’


    149.00175.00
  • Setu-bandhan (Collected Work) By Sulochana Verma

    सेतु-बन्धन (बांग्ला से अनूदित कविताएँ)

    चयन, सम्पादन और अनुवाद सुलोचना वर्मा


    पुस्तक में इनकी कविताएँ हैं-
    तसलीमा नसरीन, महादेव साहा पूर्णेन्दु पत्री, अल महमूद निर्मलेन्दु गून, बुद्धदेव बसु जाहिद अहमद, रवीन्द्रनाथ टैगोर शक्ति चट्टोपाध्याय, क्राती नजरूल इस्लाम रूद्र मोहम्मद शहीदुल्लाह, सुनील गंगोपाध्याय शंख घोष, मलय रायचौधुरी फ़क़ीर लालन शाह, बिनोदिनी दासी जीवनानन्द दास, सुबोध सरकार पोलियार वाहिद, चंचल बशर महमूद नोमान, बिप्लव चौधुरी बेबी शॉ


    ‘सेतु बन्धन’ बांग्ला के 23 कवियों की 111 कविताओं का संकलन है। इन कवियों में बांग्ला के प्रख्यात से लेकर अल्पज्ञात कवि हैं। संग्रह में शामिल कवियों और उनकी कविताओं का ‘चयन अत्यन्त व्यक्तिगत’ है, जिसकी कसौटी सम्पादक की पसन्द है।
    अनुवाद में भाषा के स्तर पर दो प्रविधियाँ अपनायी जाती हैं। अनुवादक की भाषा या तो मूल भाषा के निकट स्थिर रहती है या उस भाषा के निकट जिसमें अनुवाद हो रहा है। इन अनुवादों में भाषा और मुहावरे को मूल भाषा के निकट रखा गया है।
    बकौल सम्पादक ‘इस संग्रह के लिए कवियों का
    चयन भी बेहद लोकतान्त्रिक ढंग से हुआ है;
    परिणामस्वरूप भारत के साथ-साथ बांग्लादेश के कई
    कवियों की कविता भी इस संग्रह में शामिल है।’ इस
    रूप में यह बांग्ला भाषा का प्रतिनिधि चयन है। साथ
    ही इस संग्रह में कई लोकप्रिय और वरिष्ठ हैं, तो कई
    ऐसे कवि भी हैं जो अपेक्षाकृत नये और अल्पज्ञात हैं।
    संग्रह में 19वीं सदी के पूर्वार्द्ध से लेकर 21वीं सदी तक की कविताएँ सम्मिलित हैं। इसमें विषय, भाषा, काव्य सौन्दर्य की पर्याप्त विविधता के दर्शन होते हैं। आशा है यह चयन हिन्दीभाषी कविता-पाठकों द्वारा सराहा जाएगा।

    212.00249.00
  • Nami Bachi Rahti Hai Aakhiri Tal mein (Poems) by Rajeev Kumar

    नमी बची रहती है आखिरी तल में – राजीव कुमार

    कवि राजीव कुमार का नया संग्रह ‘नमी बची रहती है आखिरी तल में’ संवेदना की उन दो दिशाओं को प्रस्तावित करता है, जहाँ मनुष्य का आत्म और उसका परिवेश जीवन की बहुस्तरीयता प्रस्तावित करते हैं- ‘सपने खुद से जुड़ना आसान कर देते हैं/ परिवेश से उतना ही कठिन।’
    कल्पना और यथार्थ से निर्मित यह काव्यभूमि अपने वर्तमान से निर्मित है। इस वर्तमान में कवि का आस-पड़ोस भी है, घर-परिवार भी और जीवन-जगत् भी। साथ ही जीवन और समाज के वे प्रसंग भी हैं जो हमारे अस्तित्व के किसी कोण से डूबे लगते हैं। इस काव्यात्मक युक्ति के सहारे ये आत्म से बाहर निकल समाज की वृहतर सरणियों को भी छूते हैं।
    इन कविताओं को कवि ने अपनी सहज भाषा से सँजोया है। इस भाषा में कहीं तात्समिकता है तो कहीं तद्भवता साथ ही उर्दू, अरबी-फारसी के शब्द भी हैं। यह मात्र कवि का शब्दलाघव नहीं है। इससे कविता में व्यंजना आती है।


     

    196.00230.00