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Bhakti Ka Lokvritt Aur Ravidas Ki Kavitayi By Shriprakash Shukla

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भक्ति का लोकवृत्त और रविदास की कविताई — श्रीप्रकाश शुक्ल


रविदास अपने समय, समाज व संस्कृति को सम्पूर्ण गहराई में समझ रहे थे और इसीलिए समता की भावना उनके चिन्तन के केन्द्र में थी। वे सन्त, भक्त और जागरूक नागरिक तो थे ही, सबसे पहले एक संवेदनशील कवि थे जो अपने समय के प्रश्नों को कविता के माध्यम से व्यक्त कर रहे थे। उन्होंने समाज के दलित वर्ग को अपनी जाति के हीनताबोध से मुक्त करने के लिए जहाँ नाम रूप ब्रह्म की बात की, वहीं उनमें आत्मविश्वास को जगाने के लिए उनको श्रम व कर्म के प्रति जागरूक भी बनाया जिससे शिल्पक वर्ग की वे एक प्रतिनिधि आवाज बन सके। अपने धीमे व सन्तुलित स्वर के बावजूद उनकी रचनात्मकता का प्रभाव दूर तक था जिस आधार पर उन्होंने मध्यकालीन लोक जागरण की मूल्यगत आकांक्षाओं को सामाजिक प्रसार का मजबूत आधार दिया। समता, समानता और सेवाभाव के मूल्यों के साथ सामाजिक सद्भाव को श्रम से जोड़कर रविदास ने शोषण को निर्मूल करने का जो अप्रतिम साहस दिखाया है उसने उन्हें लोक चित्त से गहरे जोड़ दिया जिसका परिणाम यह रहा कि उनके इर्द-गिर्द कई कहानियाँ बुनी गयीं।
रविदास ने अपने समय में पोथी संस्कृति की जगह मानुष संस्कृति को बढ़ावा दिया जो उनकी सामाजिकता को आधुनिक आयाम देता है। वे स्वभाव से साधु थे और संस्कार से एक स्वाभिमानी कवि। अपने अनेक पदों में उन्होंने मानवीय समस्याओं का अति मानवीय समाधान खोजने की जगह उनका नितान्त लोकग्राह्य और सहज समाधान सुझाया है। वे ईश्वर की एकता के आधार पर जातिभेद का खण्डन करते हैं और जाति के ऊपर कर्म की भावना की प्रतिष्ठा करते हैं जो उन्हें अत्यन्त आधुनिक बनाता है। वे किसी भी प्रकार की पराधीनता को नहीं मानते और अपने समय के हर पाखण्ड से लड़ते हैं। इसके लिए वे ईश्वर की अवधारणा को खारिज नहीं करते बल्कि उसको बदलने की कोशिश करते हैं। वे पश्चिमी दर्शन के उस अर्थ में आधुनिक नहीं हैं जहाँ ईश्वर की मृत्यु की घोषणा से आधुनिकता का जन्म होता है बल्कि ठेठ भारतीय देशज अर्थ में आधुनिक हैं जहाँ ईश्वर की सत्ता के बावजूद आधुनिक हुआ जा सकता है। ज्ञान यहाँ मुक्तिदाता के रूप में कार्य करता है जहाँ प्रभु से प्रार्थनाएँ तो हैं लेकिन उनका स्वर पीड़ाओं का स्वर है। वे प्रभुता का स्मरण तो करते हैं लेकिन इसी में एक शालीन प्रत्याख्यान भी शामिल होता है जिसके भीतर से सर्जनात्मकता की आधुनिकता प्रस्फुटित होती है ।… इस सन्दर्भ में रोचक बात यह भी है कि रविदास का काव्य बोध जिन बहुत बातों व सामाजिक समस्याओं से बनता है उसमें उनके समय की आपदा और महामारी की भूमिका भी उतनी ही महत्त्वपूर्ण है। जाति पीड़ा व जगत् पीड़ा के बीच वे अपना काव्य विकास करते हैं और तब एक ऐसे जीवट को प्रदर्शित करते हैं जो एक कवि का ही जीवट हो सकता है। आज की शब्दावली में मैं जिसे कोरोजीवी कविता कहता हूँ उसकी परम्परा यूँ रविदास के साथ भक्तिकाल के कवियों से जुड़ती है जिसके बारे में इस पुस्तक में विस्तार से प्रकाश डाला गया है। इन्हें मैं सभ्यता के वायरल इफेक्ट की कविताएँ कहता हूँ।
– भूमिका से


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Description

Bhakti Ka Lokvritt Aur Ravidas Ki Kavitayi By Shriprakash Shukla


About the Author

श्रीप्रकाश शुक्ल
जन्म: 18 मई 1965 को सोनभद्र (उत्तर प्रदेश) के बरवां गाँव में।
शिक्षा: एम.ए., पी-एन.डी. (हिन्दी) (इलाहाबाद विश्वविद्यालय)।
कविता संग्रहः अपनी तरह के लोग, जहाँ सब शहर नहीं होता, बोली बात, रेत में आकृतियाँ, ओरहन और अन्य कविताएँ, कवि ने कहा, क्षीरसागर में नींद, वाया नमी सदी। आलोचना: साठोत्तरी हिन्दी कविता में लोक सौन्दर्य, नामवर की धरती, हजारीप्रसाद द्विवेदी एक जागतिक आचार्य, महामारी और कविता, राग रविदास। यात्रा संस्मरण देस देस परदेस। लेखक पर केन्द्रित पुस्तकें असहमतियों के वैभव के कवि श्रीप्रकाश शुक्ल (सं. कमलेश वर्मा, सुचिता वर्मा), कवि की बात-ओप्रकाश शुक्ल की रचनाओं पर एकाग्र रचनावली पत्रिका का विशेषांक। सम्पादन ‘परिचय’ नाम से एक साहित्यिक पत्रिका का सम्पादन। पुरस्कार : कविता के लिए ‘बोली बात’ संग्रह पर वर्तमान साहित्य का मलखानसिंह सिसोदिया पुरस्कार, ‘रेत में आकृतियाँ’ कविता संग्रह पर उ. प्र. हिन्दी संस्थान का नरेश मेहता कविता पुरस्कार, ‘ओरहन और अन्य कविताएँ’ कविता संग्रह के लिए उ.प्र. हिन्दी संस्थान का ‘विजयदेव नारायण साही कविता पुरस्कार’, शमशेर सम्मान-2020. कई कविताओं का अँग्रेजी, पंजाबी, मराठी भाषा में अनुवाद।
सम्प्रति : बी.एच. यू. के हिन्दी विभाग में प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं तथा भोजपुरी अध्ययन केन्द्र, बी. एच.यू. के समन्वयक रह चुके हैं।


Additional information

Author

Shriprakash Shukla

Binding

Paperback

Language

Hindi

ISBN

978-93-6201-682-9

Pages

415

Publication date

01-02-2025

Publisher

Setu Prakashan Samuh

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