Pitrisatta Yaunikta aur Samlaingikta By Sujata
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पितृसत्ता यौनिकता और समलैंगिकता – सुजाता
अतिवादी विचारों से विमर्शों को सबसे ज्यादा खतरा पैदा होता है जब वे ऐसे तर्कों की ओर ले जाते हैं जो आपको बेसहारा करके समुद्र में फेंक देते हैं। समुद्र-मन्थन हमारा काम नहीं। हमें अनमोल, अदेखे, विस्मयकारी पत्थर नहीं इस दुनिया में काम आने वाले विचार चाहिए।
वहीं एक जरूरी मिर्श को अतिवादी कहकर कुछ लोग आपत्ति करते हैं कि जिस तेजी से विमर्श वाले लोग यौन-अभिरुचियों पर आधारित अस्मिताएँ हर रोज़ कोई नयी ले आते हैं उससे तो अन्त में भयानक गड़बड़झाला हो जाएगा। कुछ पता ही नहीं चलेगा कि कौन क्या है! (जनसंख्या प्रबन्धन के उद्देश्य से सख्ती करने के लिए सत्ता इसे ही एक तर्क की तरह इस्तेमाल करती आयी है) लेकिन जरा ध्यान से देखिए तो इस विमर्श के पीछे मूल उद्देश्य क्या है? इस बात को स्वीकार करना कि हम सब भिन्न हैं और भिन्न होते हुए भी बराबर हैं इसलिए जगहों और भाषा को ऐसा बनाया जाए जो समावेशी हों। सब अपने खानपान, वेश-भूषा, यौन अभिरुचि और प्रेम पात्र के चयन के लिए स्वतन्त्र हों। समानता और गरिमा से जी सकें।
सबसे मुश्किल यही है। इसलिए भी इतना भ्रम और धुंधलापन छाया हुआ है कि हम भूल गये कि हमने शुरुआत कहाँ से की थी। इस किताब का खयाल तभी दिमाग में आया था जब कुछ युवाओं को स्त्रीवाद के कुछ आधारभूत सवालों पर बेहद उलझा हुआ पाया। इसी किताब के लिए मैंने भी पहली बार मातृसत्ता के मिथक को ठीक से समझने की कोशिश की।
– इसी पुस्तक से
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kanchan yadav –
पितृसत्ता, यौनिकता और समलैंगिकता – एक जरूरी विमर्श
सुजाता की यह पुस्तक पितृसत्ता, यौनिकता और समलैंगिकता के जटिल सवालों को गहराई से समझने की कोशिश करती है। लेखिका तर्क देती हैं कि समानता और समावेशिता की राह में सबसे बड़ा अवरोध अतिवादी विचारधाराएँ हैं, जो समाज में भेदभाव को मजबूत करती हैं।
यह किताब न सिर्फ लिंगभेद और यौनिक पहचान को लेकर बने सामाजिक पूर्वाग्रहों को तोड़ती है, बल्कि यह भी रेखांकित करती है कि हर व्यक्ति को अपनी पहचान और प्रेम के चयन में स्वतंत्रता मिलनी चाहिए। लेखिका मातृसत्ता के मिथक और स्त्रीवाद के बुनियादी सवालों को सरल भाषा में समझाने का प्रयास करती हैं।
prashant panwar –
सुजाता की यह पुस्तक पितृसत्ता, यौनिकता और समलैंगिकता से जुड़े जटिल मुद्दों पर गहन विमर्श प्रस्तुत करती है। लेखिका तर्क देती हैं कि विविधताओं को स्वीकारने की बजाय, समाज ने इन्हें असमंजस और भय का विषय बना दिया है।
Anushka singh –
किताब शुरू से ही अपने साथ जुड़े रहने पर मजबूर कर देती है, एक अच्छी किताब.
Dilsher Mandi –
Super fast delivery and very good printing. product packing is also very good. Knowledgeable book. Awesome product. Every one must read this book.