Tumhare Hone Se Subah Hoti hai (Poems) by Ashutosh

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तुम्हारे होने से सुबह होती है – आशुतोष


कोई जीवन पूरा नहीं होता अधूरे रहते हैं स्वप्न अधूरी कहानी छूट जाती है
कविता पूरी पन्नों पर कब हुई है अनेक अधूरे अर्थों में बिखर जाती है आदमी पूरे होने की जिद में थोड़ा कम ही रह जाता है अधूरापन एक गहरा अहसास एक कशिश छोड़ता है यही उसका पूरापन होता है
– इसी संग्रह से


आशुतोष की कविताओं में प्रेम है तो प्रकृति भी है। वर्तमान का बेबाक चित्रण है, तो संघर्ष और जिजीविषा भी है। कवि कभी भी उदासियों और अँधेरों को मंजिल नहीं मानता, वह हर वक्त उसके पार जाने को उत्सुक रहता है। कभी वह धारदार आँखों वाली बहस करती लड़की को शब्द देता है, कभी अपने फेफड़ों में भरपूर ऑक्सीजन भरकर सत्ता से टकराने को उद्यत रहता है। कभी नदियों के लापता होने की खबर लिखता है, तो कभी लड़ने के लिए गीत सिखाता है। कभी मछुआरों की बस्तियों में जाता है, तो कभी बुनकरों के पास। कभी लिखता है-“धरती का पानी / आँखों का पानी / रिश्तों का पानी/ सूख रहा है। नदियों का पानी / रेत पी गया।” कभी वह कोलकाता के कॉलेज स्ट्रीट पर बारिश का इन्तजार करता है, कभी चेन्नई की धरती की चिन्ता करता है, जिसके जल स्तर का पता ही नहीं चलता। कभी उसकी कविता शाहीन बाग पहुँचती है, तो कभी डरे हुए पक्षियों को अभिव्यक्त करती है।
– प्रो. योगेन्द्र (भूमिका से)

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Tumhare Hone Se Subah Hoti hai (Poems) by Ashutosh


About the Author

आशुतोष

जन्म: 06 फरवरी 1958 ।
जन्मभूमि : चटमाग्राम, जिला-बाँका (बिहार)
शिक्षा : स्नातकोत्तर (हिन्दी), पी-एच.डी. भागलपुर विश्वविद्यालय।
शैक्षणिक कार्य: कलकत्ता विश्वविद्यालय के अन्तर्गत विद्यासागर कॉलेज फॉरवीमेन में अध्यापन कार्य।
शोध : निर्देशक, यू.जी. बोर्ड ऑफ स्टडीज के सदस्य।
साहित्यिक कार्य : दस्तक, संवेद, सबलोग, वसुधा, अंगचम्पा, माध्यम आदि में कविता, समीक्षा एवं आलेख का प्रकाशन। 1997 में ‘अपनी भाषा’ के गठन से ही संस्था से जुड़ गये और उपाध्यक्ष बने रहे, पश्चिम बंगाल हिन्दी अकादमी के सदस्य स्थापना से ही बने रहे।
सामाजिक कार्य : 1982 के गंगा मुक्ति आन्दोलन में
सक्रिय भूमिका। महिला अत्याचार के खिलाफ, जंगल बचाने, निजीकरण, मजदूरों का शोषण आदि के खिलाफ मधुपुर, बोधगया, भागलपुर सहित आन्दोलनात्मक कार्य के लिए दिल्ली, पटना, जमशेदपुर, हरसूद आदि जगहों पर गये।
मृत्यु: 14 नवम्बर 2023
स्थान : कोलकाता, पश्चिम बंगाल

SKU: Tumhare Hone Se Subah Hoti hai (Poems) by Ashutosh
Category:
Author

Ashutosh

Binding

Paperback

Language

Hindi

ISBN

978-93-6201-860-1

Pages

242

Publication date

01-02-2025

Publisher

Setu Prakashan Samuh

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    नवले बहुत चुपचाप ढंग से, किसी एकान्त भाषिक सक्रियता में, बहुत अधिक उदाहरणों से परहेज करते हुए, चहुत कम शब्दों की कविता के मिजाज के कवि रहे हैं। उनकी कविताएँ भाषा को बहुत किफायत के साथ धारण करने वाले जीवन भर विस्तृत सन्नाटे को अभिव्यक्तियाँ हैं। एक संकटग्रस्त समय में निरनार ‘बहुत कम आदमी’ और ‘बहुत कम नागरिक’ होते जाते मनुष्य की स्मृत्तियों और विस्मरणों के मध्य उसके घर संसार, स्वप्नों-आकांक्षाओं, उल्लास और हताशा से भरी दिनचर्या को नवल की कविताओं की मूल आसक्ति कह सकते हैं। वे बार-बार वहाँ लौटते हैं जहाँ थोड़े से खुले साफ नीले लाकाश और पृथ्वी के छोटे से अँधेरे में ये जगहें अब भी मौजूद हैं, जहाँ असंख्य आधी-अधूरो, मामूली और असमाप्त इच्छाओं का नन्हे नन्हे नक्षत्रों की तरह वास है। यह सम्भवतः हम सभी के सुदूर अतीत या बचपन का कोई दृश्य है अथवा कभी बहुत पहले देखी गयी किसी फिल्म का कोई दृश्य या फिर यय के किसी और जन्म-काल में सुनी गयी किसी कहानी का कोई टुकड़ा।
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    लेकिन एक सब यह भी है कि ये कविताएँ नवल को कविता के बदलाव या संक्रमण के दौर की कविताएँ हैं। किसी अगली सम्भावना या परिणति की ओर चुपचाप अपनी ही गति और स्वभाव में बढ़ती हुई।

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    वे तय कर रहे थे-
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    फिर करते रहो इनका शिकार
    और कहते रहो – ‘आत्महत्या कोई विकल्प नहीं है।’
    जफर, नौकरी जरूरी थी प्रकाश के लिए लेकिन उससे भी जरूरी था उसकी आँखों
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  • Prem Prakriti Dunia Darshan (Poem) By Nirmala Todi

    प्रेम प्रकृति दुनिया दर्शन – निर्मला तोदी


    निर्मला तोदी की कविताओं ने न सिर्फ मुझे गहरे स्तर पर आश्वस्त किया बल्कि अपने मितकथन की सहज गहनता के द्वारा मेरे मन पर एक अलग इंग का प्रभाव भी डाला।

    – केदारनाथ सिंह, 2013

    इस समय जब हिन्दी कविता में आत्मालोचना का स्वर लगभग विलुप्त सा हो गया है, निर्मला तोदी की कविताओं में इस स्वर का सुनना उम्मीद जगाता है।

    – राजेश जोशी, 2017

    निर्मला तोदी की कविताएँ हमें ज्ञान की फैली दुनिया में न ले जाकर, संवेदना की गहरी दुनिया में ले जाती हैं, जिसकी आज कहीं ज्यादा जरूरत है।

    – मदन कश्यप, 2022


    इस संसार को जो चीजें संसार लायक बनाती हैं, उनको सूक्ष्म रूप में काव्यमय भाषा और बिम्बों के साथ निर्मला जी कविता में उपस्थित कर देती हैं। बूँद में समुन्द्र के समा जाने की बातें मुहावरों में जितनी बार भी हम सुनें, सच तो निर्मला तोदी की ये कविताएँ करती हुई सामने हैं। छोटी, पर सघन अर्थ-विस्तार की कविताएँ हैं यहाँ।
    ‘यह यात्रा मेरी है’ निर्मला तोदी का तीसरा काव्य संग्रह था और यह ‘प्रकृति प्रेम जीवन दर्शन’ चौथा। कवि केदारनाथ सिंह के सान्निध्य में कविताओं की तालीम पायी निर्मला तोदी अभी भी अपने को कविता पथ की यात्री के रूप में चिह्नित करती हैं। वे उसी यात्री की हैसियत से कहती हैं-“जीवन को जी लो/ जीवन सुन्दर है/साथी एक बात कहनी है। ये कविता नहीं है।” कविता और जीवन का द्वैत कबीर की तरह मिट जाता है निर्मला तोदी के यहाँ। पाठक उसे कविता नहीं, जीवन के सार के रूप में लेते हैं। ‘सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय’ वाली परम्परा की यात्री हैं ये कविताएँ। इसलिए ये तुरन्त पाठकों से कनेक्ट हो जाती हैं और उनके दिलों में अपनी जगह बना लेती हैं।
    – निशान्त


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  • Dhoop Ke Hastakshar (Poems) By Panna Trivedi

    धूप के हस्ताक्षर – पन्ना त्रिवेदी


    पन्ना त्रिवेदी का संग्रह ‘धूप के हस्ताक्षर’ कई मायनों में विशिष्ट है। पन्ना त्रिवेदी की कविताओं की केन्द्रीय संवेदना में समय,
    समाज और सत्ता प्रतिष्ठान को नीयत के विरुद्ध एक उत्कट विकलता है जो हमें कवयित्री की मानसिक बुनावट,
    उनकी सादगी के सौन्दर्य, उनकी चिन्ता और भावप्रवणता से अवगत तो कराती ही हैं उनके काव्यशिल्प को, उनकी
    काव्यभाषा को भी तय करती हैं। पन्ना त्रिवेदी यों तो प्रमुख रूप से गुजराती साहित्य की प्रतिष्ठित कहानीकार हैं,
    परन्तु उनकी गुजराती कविताओं ने भी उन्हें अपना एक स्थान दिलाया है। इस दृष्टि से गुजराती के अलावा
    पन्ना त्रिवेदी की हिन्दी में भी सृजनात्मक उपस्थिति हिन्दी के भूगोल की विविधता को और अधिक विस्तार देती हैं।
    कविताओं में प्रतीक, रूपक, बिम्ब-विधान, उपमाये
    और तुलनाएँ सहज ही कविता के पाठक का ध्यान
    आकर्षित करती हैं। इसलिए नहीं कि कवयित्री कोई
    सायाश चमत्कार पैदा करती हैं, बल्कि उनमें
    सौन्दर्यबोध की भव्यता मिलती है।


    वे जानने लगते हैं
    जाति ही नहीं भाषा से भी हो सकती है राजनीति
    जिसमें कोई चुनाव नहीं होता
    जिसमें कोई प्रत्याशी नहीं होता
    खड़ा होता है एक पूरा समूह
    जो जीत जाता है पुरुषत्व के बल पर
    या आभिजात्य के नाम पर
    भाषा धकेल सकती है
    किसी को भी हाशिये के हाशिये पर
    बनाये रखती है स्त्री को मात्र स्त्री
    अछूत को मात्र अछूत सदैव के लिए
    वह नहीं बनने देती मुख्यधारा का इंसान उसे
    – इसी पुस्तक से


     

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  • Zamin Apni Jagah (Poems) By Shankaranand

    जमीन अपनी जगह – शंकरानन्द


    ‘शोक में पल रहा जीवन / इस देश का दूसरा सच है।’ ऐसी पंक्ति लिखने वाले शंकरानन्द अपनी कविताओं में इस देश के उस दूसरे सच को ही जानना-समझना चाहते हैं। शंकरानन्द का यह चौथा संग्रह है और यहाँ तक आते-आते अपनी कविताओं में उन्होंने सिद्धि अर्जित कर ली है। ये कविताएँ सघन अनुभूति की कविताएँ हैं। यहाँ शोर नहीं है। जीवन का अनुभव है। आँखें खुली हैं और समाज के ढेरों अनुभवों से यह अनुभूति सघन हुई है। यहाँ राजनीति को सीधे-सीधे लक्षित करके भले ही कविताएँ ना हों परन्तु यहाँ सामाजिक बदलाव को बहुत तल्खी से परिलक्षित किया गया है। कठिनतर होते समय में प्रतिरोध की आवाज कविता की आत्मा है। ‘बोलने के लिए बहुत जगहें हैं। बशर्ते वह विरोध में नहीं हो।’ जीवन का त्रास यहाँ व्यंग्य पैदा कर रहा है।
    कविता में कैसे विषयों और विचारों को अन्तर्गुम्फित किया जाना चाहिए ये कविताएँ इसकी गवाह हैं। यहाँ राजनीति है, समाज है, दुश्चिन्ताएँ हैं, भूख है, गरीबी है, प्रेम है लेकिन सब घुलमिल कर एक भाव का निर्माण कर रहे हैं। वास्तव में यह भाव मनुष्यता की तलाश है। यहाँ मनुष्य को मनुष्य के रूप में समझने की कवायद है। शंकरानन्द अपनी कविताओं में कवितापन को बहुत महत्त्व देते हैं। चूँकि कविताओं की पंक्तियाँ कवितापन में गुँथी हुई हैं इसलिए वहाँ अर्थ के कई स्तर हैं। ये कविताएँ पाठक से एक खास तरह की बौद्धिकता की माँग करती हैं। इन कविताओं के अर्थ इनके विखण्डन में छिपे हैं। ये कविताएँ सन्दर्भको अपने आसपास से उठाती हैं परन्तु अपने विस्तार में ये बड़े आयतन में विस्तारित हो जाती हैं। शंकरानन्द अपनी कविताओं की मार्फत अपने चारों ओर फैली विद्रूपताओं को पकड़ने की कोशिश करते हैं। यहाँ बहुत सारे रिश्ते हैं जो बिखर रहे हैं, प्यार है जो छूट रहा है। समाज का अपनापन हाथ से रेत की तरह फिसल रहा है। ये कविताएँ दुख को सहेजने की कोशिश हैं। मनुष्य के भीतर गहराती जा रही रिक्तता के अहसास से ये पाठक को भर देना चाहती हैं। ये कविताएँ हमारे समय-समाज का अन्तर्पाठ हैं। अपनी पूरी ताकत से ये कविताएँ इस दुनिया को सुन्दर बनाने के प्रयास में जुटी हुई हैं।
    – उमाशंकर चौधरी

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