Description
Vad Se Samvad : Dalit Asmita Vimarsh By Bajrang Bihari Tiwari
अनुभव, आक्रोश और अधिकारबोध अस्मितामूलक अभिव्यक्ति की विशेषता है। इसे लेखन, आन्दोलन और निजी बातचीत में देखा, महसूस किया जा सकता है। अस्मिताओं को किसी एक भाषा अथवा प्रान्त तक सीमित करके देखना सम्भव नहीं। इनकी उपस्थिति अखिल भारतीय है। भारत की सभी प्रमुख भाषाओं में अस्मितापरक साहित्य रचा गया है, रचा जा रहा है। प्रस्तुत पुस्तक दलित अस्मिता पर केन्द्रित है। इसमें सात भाषाओं के उन्नीस रचनाकारों, आन्दोलनकर्मियों और विमर्शकारों के साथ की गयी बातचीत संकलित है। दलित आन्दोलन, साहित्य और विचारधारा के सम्यक बोध के लिए इस किताब से गुजरना जरूरी है।
अस्मिताएँ सिद्धान्त-निर्माण के बजाय विमर्श का रास्ता चुनती हैं। वे संवाद के सभी विकल्पों को खुला रखती हैं। संवाद के जरिये अस्मिताएँ सम्भावना तलाशती हैं। प्रतिरोध के पुराने रूपों में परिवर्तन करती हैं। नए रूपों की खोज और अनुप्रयोग करती हैं। अपने पूर्ववर्तियों की समीक्षा और समवर्तियों का मूल्यांकन संवाद करते हुए होता है। अस्मिताओं का नेतृत्त्व करने वाले विमर्शकार संवाद के माध्यम से सत्ताधारियों से निगोशिएट करते हैं। सत्ता-संरचना में अपनी अस्मिता के लिए जगह बनाते-बनवाते हैं।
सामाजिक न्याय के संकुचन और विस्तार में संवाद की भूमिका होती है। ‘वाद’ सामान्य अर्थ में विचारधारा है। विचारधारा को रोज अद्यतन होना होता है। इसमें संवाद उसकी सहायता करता है। वाद का पोषण संवाद से भी किया जाता है। ‘अन्य’ को अश्मीभूत करना अस्मिता-विमर्श को भले ही सुहाता हो लेकिन यह उसकी राह में रोड़ा भी बनता है। संवाद से यह बाधा दूर होती है। इससे’ अन्य’ तरल, जीवन्त बना रहता है और अस्मिता वास्तविक चुनौती से मुखातिब रहती है।
यह किताब उन सभी पाठकों को उपयोगी लगेगी जो आंबेडकरी आन्दोलन और दलित साहित्य की व्याप्ति समझना चाहते हैं। जो शिल्प, शैली और सरोकारों के प्रान्तीय वैशिष्ट्य तथा अन्तरप्रान्तीय एकसूत्रता को जानना चाहते हैं। जो अस्मिता निर्माण की प्रक्रिया के बाह्य व आन्तरिक पक्षों को अलग-अलग तथा इनकी अन्तर्क्रिया से निर्मित साझेपन को हृदयंगम करना चाहते हैं। जो दलित चिन्तन की जीवन्तता को, आंबेडकरी विचार की अन्तर्धाराओं को, दृष्टि-बहुलता को, उभरते अन्तर्विरोधों और उनके रचनात्मक शमन को बूझना चाहते हैं। जो जटिल, सैद्धान्तिक और घुमावदार प्रत्ययों, अवधारणाओं, अमूर्त संकल्पनाओं को सीधी, सहज भाषा में, बातचीत की शैली में समझना चाहते हैं।
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