Vad Se Samvad : Dalit Asmita Vimarsh By Bajrang Bihari Tiwari

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वाद से संवाद : दलित अस्मिता विमर्श


अनुभव, आक्रोश और अधिकारबोध अस्मितामूलक अभिव्यक्ति की विशेषता है। इसे लेखन, आन्दोलन और निजी बातचीत में देखा, महसूस किया जा सकता है। अस्मिताओं को किसी एक भाषा अथवा प्रान्त तक सीमित करके देखना सम्भव नहीं। इनकी उपस्थिति अखिल भारतीय है। भारत की सभी प्रमुख भाषाओं में अस्मितापरक साहित्य रचा गया है, रचा जा रहा है। प्रस्तुत पुस्तक दलित अस्मिता पर केन्द्रित है। इसमें सात भाषाओं के उन्नीस रचनाकारों, आन्दोलनकर्मियों और विमर्शकारों के साथ की गयी बातचीत संकलित है। दलित आन्दोलन, साहित्य और विचारधारा के सम्यक बोध के लिए इस किताब से गुजरना जरूरी है।
अस्मिताएँ सिद्धान्त-निर्माण के बजाय विमर्श का रास्ता चुनती हैं। वे संवाद के सभी विकल्पों को खुला रखती हैं। संवाद के जरिये अस्मिताएँ सम्भावना तलाशती हैं। प्रतिरोध के पुराने रूपों में परिवर्तन करती हैं। नए रूपों की खोज और अनुप्रयोग करती हैं। अपने पूर्ववर्तियों की समीक्षा और समवर्तियों का मूल्यांकन संवाद करते हुए होता है। अस्मिताओं का नेतृत्त्व करने वाले विमर्शकार संवाद के माध्यम से सत्ताधारियों से निगोशिएट करते हैं। सत्ता-संरचना में अपनी अस्मिता के लिए जगह बनाते-बनवाते हैं।
सामाजिक न्याय के संकुचन और विस्तार में संवाद की भूमिका होती है। ‘वाद’ सामान्य अर्थ में विचारधारा है। विचारधारा को रोज अद्यतन होना होता है। इसमें संवाद उसकी सहायता करता है। वाद का पोषण संवाद से भी किया जाता है। ‘अन्य’ को अश्मीभूत करना अस्मिता-विमर्श को भले ही सुहाता हो लेकिन यह उसकी राह में रोड़ा भी बनता है। संवाद से यह बाधा दूर होती है। इससे’ अन्य’ तरल, जीवन्त बना रहता है और अस्मिता वास्तविक चुनौती से मुखातिब रहती है।
यह किताब उन सभी पाठकों को उपयोगी लगेगी जो आंबेडकरी आन्दोलन और दलित साहित्य की व्याप्ति समझना चाहते हैं। जो शिल्प, शैली और सरोकारों के प्रान्तीय वैशिष्ट्य तथा अन्तरप्रान्तीय एकसूत्रता को जानना चाहते हैं। जो अस्मिता निर्माण की प्रक्रिया के बाह्य व आन्तरिक पक्षों को अलग-अलग तथा इनकी अन्तर्क्रिया से निर्मित साझेपन को हृदयंगम करना चाहते हैं। जो दलित चिन्तन की जीवन्तता को, आंबेडकरी विचार की अन्तर्धाराओं को, दृष्टि-बहुलता को, उभरते अन्तर्विरोधों और उनके रचनात्मक शमन को बूझना चाहते हैं। जो जटिल, सैद्धान्तिक और घुमावदार प्रत्ययों, अवधारणाओं, अमूर्त संकल्पनाओं को सीधी, सहज भाषा में, बातचीत की शैली में समझना चाहते हैं।

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Vad Se Samvad : Dalit Asmita Vimarsh By Bajrang Bihari Tiwari


अनुभव, आक्रोश और अधिकारबोध अस्मितामूलक अभिव्यक्ति की विशेषता है। इसे लेखन, आन्दोलन और निजी बातचीत में देखा, महसूस किया जा सकता है। अस्मिताओं को किसी एक भाषा अथवा प्रान्त तक सीमित करके देखना सम्भव नहीं। इनकी उपस्थिति अखिल भारतीय है। भारत की सभी प्रमुख भाषाओं में अस्मितापरक साहित्य रचा गया है, रचा जा रहा है। प्रस्तुत पुस्तक दलित अस्मिता पर केन्द्रित है। इसमें सात भाषाओं के उन्नीस रचनाकारों, आन्दोलनकर्मियों और विमर्शकारों के साथ की गयी बातचीत संकलित है। दलित आन्दोलन, साहित्य और विचारधारा के सम्यक बोध के लिए इस किताब से गुजरना जरूरी है।
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यह किताब उन सभी पाठकों को उपयोगी लगेगी जो आंबेडकरी आन्दोलन और दलित साहित्य की व्याप्ति समझना चाहते हैं। जो शिल्प, शैली और सरोकारों के प्रान्तीय वैशिष्ट्य तथा अन्तरप्रान्तीय एकसूत्रता को जानना चाहते हैं। जो अस्मिता निर्माण की प्रक्रिया के बाह्य व आन्तरिक पक्षों को अलग-अलग तथा इनकी अन्तर्क्रिया से निर्मित साझेपन को हृदयंगम करना चाहते हैं। जो दलित चिन्तन की जीवन्तता को, आंबेडकरी विचार की अन्तर्धाराओं को, दृष्टि-बहुलता को, उभरते अन्तर्विरोधों और उनके रचनात्मक शमन को बूझना चाहते हैं। जो जटिल, सैद्धान्तिक और घुमावदार प्रत्ययों, अवधारणाओं, अमूर्त संकल्पनाओं को सीधी, सहज भाषा में, बातचीत की शैली में समझना चाहते हैं।

SKU: Vad Se Samvad : Dalit Asmita Vimarsh By Bajrang Bihari Tiwari-PB
Category:
Author

Bajrang Bihari Tiwari

Binding

Paperback

Language

Hindi

ISBN

978-93-6201-351-4

Pages

366

Publication date

01-02-2025

Publisher

Setu Prakashan Samuh

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    361.00425.00
  • Ashutosh : Asamay Kaal-kavlit Yoddha (Sansmaran) Edited by Priyankar Paliwal

    आशुतोष

    असमय काल-कवलित योद्धा

    सम्पादक:प्रियंकर पालीवाल


    “फिर आना दोस्त, मिठाई खाने के लिए रानीगंज, पत्नी खरीदकर ले आयी है, शर्मा स्वीट्स से
    आधा किलो काजू बर्फी, वहाँ की मिठाइयाँ अच्छी होती हैं, खत्म भी हो गयी मिठाइयाँ तो क्या ?
    फिर ले आऊँगा तुम्हारी पसन्द का खीर कदम, रसोगुल्ला, सोन्देश और थोड़ा सा गुड़।”


    एक जिन्दादिल बुद्धिजीवी

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    राकेश कुमार सिंह की यह किताब कुछ तिनके, कुछ बातें उनके रचनात्मक वैविध्य का साक्ष्य तो है ही, विधाओं के बहुप्रचलित स्वरूप का अतिक्रमण करने की कोशिश भी इसमें दिखाई देती है।
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    नये घर में अम्मा – योगिता यादव


    चारों तरफ अँधेरा है-जीवन में भी। ऐसे समय में जब हर तरफ निराशा, गाली-गलौच और खून-खच्चर फैला हो, आशा जगाने वाली कहानियाँ महत्त्वपूर्ण हो जाती हैं। यह संग्रह इस घुटन भरे माहौल में भरोसा दिलाता है कि कहीं कुछ जीने लायक बचा हुआ है।
    अम्मा बूढ़ी हो चुकी हैं। खेत-खलिहान, अड़ोस-पड़ोस, सभी की नजर उनकी वृद्ध जर्जर काया पर है। एकमात्र सहारा पति भी दिवंगत हो चुके हैं। ऐसे अँधेरे में भी उजाले ढूँढ़कर लाना, आत्मविश्वास की डगमगाती काया का सहारा, आँखों में रोशनी भरना योगिता यादव जैसी एक कुशल कहानीकार का ही कमाल है। अमूमन चारों तरफ जहाँ दुख ही दुख झरते हैं, वहाँ सुख की हठात् चमक जैसे रात में बिजली काँध गयी हो, जैसे जीवन और जगत् में अब भी बहुत कुछ जीने लायक बचा हुआ है। ऐसी कहानी है’ नये घर में अम्मा’।
    ग्राम्य जीवन की यह कथा आम ग्राम प्रधान और आम महिलाओं से भिन्न है। इस मायने में वह ग्राम प्रधान आमतौर पर है तो अन्य महिला ग्राम प्रधानों की तरह ही, लेकिन शिक्षित और विवेक सम्पन्न होने के नाते अपने कर्तव्य का निर्वाह करती है। और सर्वथा उपेक्षिता बूढ़ी अम्मा को घर, वृद्धावस्था पेंशन और जीवन निर्वाह के अन्य साधन मुहैया कराती है। छल-कपट और अँधेरों, निराशाओं के बीच आशा और सम्बल की ज्योति जगाने वाली यह विरल कहानी है। मानवीय गरिमा से निष्पन्न कहानियों के इस संग्रह में तस्कीन साम्प्रदायिक माहौल में भरोसा बचाये रखती है। साम्प्रदायिकता किस तरह हमारे घर के अभ्यन्तर तक घुसपैठ कर चुकी है, हमारी रगों में, हमारे शैक्षिक संस्थानों और बच्चों तक में नफरत और विभाजन का जहर बोती जा रही है। ऐसे में एक सहृदय विवेक सम्मत श्रीमती वर्मा सब कुछ सँभालने में परेशान हुई जा रही हैं। घर से बाहर तक फैले इस अँधेरे से जूझती महिला की अनोखी कहानी है ‘तस्कीन’। किंचित् लम्बी। सम्भवतः विषय के लिहाज से लम्बा होना लाजमी है।
    प्रारम्भ में अपने प्रतीक और व्यंजना की व्याप्ति में, जबकि सारा स्टाफ, उस अकेली मुस्लिम बालिका तस्कीन को छोड़कर जा चुका है, वह उसकी रक्षा में खड़ी होती है। इस तरह यह एक बेहतरीन कहानी है। कहानी के प्रारम्भ में आया हुआ गड़ासा लेखिका के प्रतिभा कौशल का दिग्दर्शन है।
    इस संग्रह में कुल आठ कहानियाँ हैं और प्रायः कहानियाँ औपन्यासिक विस्तार में पगी हुई हैं। योगिता के इस तीसरे कहानी संग्रह ‘नये घर में अम्मा’ का स्वागत किया जाना चाहिए।

    – संजीव (वरिष्ठ कथाकार)

    170.00200.00
  • Bakri By Vijay Pandit

    बकरी
    (कृति मूल्यांकन : नाटक )

    प्रधान सम्पादक :महेश आनन्द देवेन्द्र राज अंकुर
    सम्पादक : विजय पण्डित


    ‘बकरी’ का कॉण्ट्रिब्यूशन ये था कि जो भी गुस्सा कल्चरली रिफ्लेक्ट होता था… उसको पॉलिटिकल थीम लेकर एक नाटक बनाया… सर्वेश्वर जी ने। लेकिन गांधी का जो ट्रस्टीशिप था गांधियन थॉट जो फेल हो रहा था… उसपर भी तो प्रहार है ये नाटक… सर्वेश्वरदयाल सक्सेना खुद गांधी के विचारों को मानते थे… वे दरअसल नेहरू से नाराज थे… कुछ मुद्दों पर वे गांधी से नाराज़ हो सकते थे बिकॉज गांधी चूजेन नेहरू… नेहरू… हमें डेमोलिश करने की नहीं डीकंस्ट्रक्ट करने की ज़रूरत थी। बिकॉज नेहरू से आगे बढ़ने की ज़रूरत थी, उसको डेमोलिश करने की ज़रूरत नहीं थी। ये डेमोलिश प्रोसेस बाद में एण्टी काँग्रेसिज्म के रूप में आया, जिसमें राजनारायण आदि जुड़ गये… बाद में इस एक्सपेरिमेण्ट को सब जानते हैं।
    मैं ‘बकरी’ को बहुत आइडियालाइज नहीं करना चाहता। ‘बकरी’ की अपनी सीमाएँ हैं। इट्स अ पोलिटिकल सटायर, लेकिन तमाम राजनीतिक व्यंग्य में यह बहुत ही अच्छा राजनीतिक व्यंग्य है… क्योंकि सर्वेश्वर जी के पास सेंस ऑफ़ ह्यूमर है… इसलिए यह लम्बे समय तक सर्वाइव कर गया… लेकिन इसकी लिमिटेशन है।
    – इसी पुस्तक से

    180.00200.00
  • Sanskriti By Alok Tandon

    संस्कृति’ – आलोक टण्डन

    आलोक टण्डन की ‘संस्कृति’, ‘सेतु शब्द श्रृंखला’ की पहली किताब है। इस श्रृंखला में इतिहास, दर्शन, आलोचना सम्बन्धी तकनीकी और पारिभाषिक शब्दों पर पुस्तकों के निर्माण की योजना है। ऐसी पुस्तकें किसी भी भाषा को अकादमिक और बौद्धिक जरूरतों का अनिवार्य हिस्सा होती हैं। आशा है इस पुस्तक और इस श्रृंखला का हिन्दी में स्वागत होगा।

    स्वतन्त्र शोधकर्ता। तीन विषयों में परास्नातक और दर्शनशास्त्र में पो एच.डी.। प्रोजेक्ट’ धर्म और हिंसा’ के लिए आई.सी.एस.एस.आर. जनरल फेलोशिप और आई.सी.पी. आर. रेजिडेण्ट तथा प्रोजेक्ट फेलोशिप प्राप्त। शताधिक सेमिनारों/सम्मेलनों में भागीदारी और पचास से अधिक शोधपत्र प्रकाशित। दर्शनशास्त्र के क्षेत्र में योगदान के लिए अखिल भारतीय दर्शन परिषद् द्वारा ‘नागर पुरस्कार’ से सम्मानित। ‘लिविंग टुगेदर रिथिकिग आइडेण्टिटी एण्ड डिफरेंस इन मॉडर्न कांटेक्स्ट’ को इण्डियन फिलोसोफिकल काँग्रेस 2023 द्वारा सर्वश्रेष्ठ पुस्तक के लिए ‘प्रणवानन्द पुरस्कार’। लेखक की अन्य पुस्तकें ‘मैन एण्ड हिज डेस्टिनी’ (अँग्रेजी में) और शेष तीन हिन्दी में हैं- ‘विकल्प और विमर्श’, ‘समय से संवाद’ एवं अस्मिता और अन्यता’।


     

    135.00150.00
  • Pashchatya Sahityalochan Paribhashavali By Vivek Singh And Anshu Priya

    पाश्चात्य साहित्यालोचना परिभाषावली – विवेक सिंह, अंशु प्रिया


    पाश्चात्य साहित्यालोचना परिभाषावली सामान्य विमशों में प्रयुक्त पारिभाषिक शब्दों, उनके अर्थों तथा संस्कृति और समाज में उनके आयामों और महत्त्व का साझा स्वरूप है।


    विगत वर्षों में देश की राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक अवस्था में काफी परिवर्तन आए हैं। इन परिवर्तनों और उनके आयामों का विस्तृत अध्ययन आवश्यक है। भूमण्डलीकरण के इस दौर में भारतीय परिदृश्य पर वैश्विक पटल का प्रभाव पड़ना कोई आश्चर्य की बात नहीं है। साहित्य, जो समाज का आईना है, उसपर यह बदलाव स्पष्टतः देखा जा सकता है। हिन्दी साहित्य पर उपनिवेशवाद का काफी प्रभाव रहा है, बल्कि यह कहना कि उपनिवेशवाद के प्रभाव को समझे बिना हिन्दी साहित्य का गम्भीर अध्ययन नहीं किया जा सकता, गलत नहीं होगा। प्रो. अवधेश कुमार सिंह का मानना है कि हिन्दी साहित्य के निर्माण में उपनिवेशवाद का असर स्पष्ट परिलक्षित होता है। इसीलिए पाश्चात्य आलोचनात्मक परम्परा को समझना बहुत ही आवश्यक हो जाता है। हमने देखा है कि हिन्दी के बहुत से प्रख्यात विद्वानों ने फ्रायड, और मार्क्स जैसे पश्चिमी विचारकों को समझने और उनके विचारों के प्रयोग का प्रयास किया है।

    — भूमिका से

    254.00299.00
  • Yayavari (Short Stories) By Yugal Joshi

    यायावरी – युगल जोशी


    युगल जोशी ऐसे कहानीकार हैं जिनका अनुभव-फलक बड़ा है और जिनके यहाँ कथा-विन्यास का भरपूर वैविध्य मिलता है। अठारह कहानियों का उनका यह संग्रह यायावरी इसका साक्ष्य है।
    इन कहानियों में जहाँ पहाड़ का एकाकी और कठिन जीवन है, वहीं गाँव-कस्बे और शहर में टूटते-बिगड़ते रिश्तों का तनाव भी। किसी कहानी में एक विधवा के जीवन संघर्ष का चित्रण है जो अपने पति के शहीद होने के बाद, सबकी नजरों से दूर, पहाड़ पर एकाकी जी रही है तो किसी कहानी में एक शातिर अधिकारी द्वारा भ्रष्टाचार के नए स्वरूप अपनाकर अपने को ईमानदार दिखाने की दास्तान है, कोई कहानी एक समलैंगिक डॉक्टर की विडम्बना पर केन्द्रित है जो पारिवारिक दबाव में मजबूरन विवाह तो कर लेता है लेकिन अपनी यौन अस्मिता का इजहार नहीं कर पाता है।
    इसी तरह संग्रह की अन्य कहानियाँ भी किसी न किसी प्रगाढ़ जीवनानुभव को केन्द्र में रखकर बुनी गयी हैं, कहीं-कहीं आंचलिक परिवेश अपनी मोहकता के साथ मौजूद है। कुल मिलाकर इस संग्रह की कहानियाँ एक बड़े अनुभव फलक का एहसास कराती हैं। युगल जोशी के पास जहाँ अनुभव की समृद्धि है वहीं भाषा की भी। इसलिए स्वाभाविक ही उनकी कहानियाँ पाठक को बरबस बाँधे रखती हैं।

    180.00200.00
  • Setu-bandhan (Collected Work) By Sulochana Verma

    सेतु-बन्धन (बांग्ला से अनूदित कविताएँ)

    चयन, सम्पादन और अनुवाद सुलोचना वर्मा


    पुस्तक में इनकी कविताएँ हैं-
    तसलीमा नसरीन, महादेव साहा पूर्णेन्दु पत्री, अल महमूद निर्मलेन्दु गून, बुद्धदेव बसु जाहिद अहमद, रवीन्द्रनाथ टैगोर शक्ति चट्टोपाध्याय, क्राती नजरूल इस्लाम रूद्र मोहम्मद शहीदुल्लाह, सुनील गंगोपाध्याय शंख घोष, मलय रायचौधुरी फ़क़ीर लालन शाह, बिनोदिनी दासी जीवनानन्द दास, सुबोध सरकार पोलियार वाहिद, चंचल बशर महमूद नोमान, बिप्लव चौधुरी बेबी शॉ


    ‘सेतु बन्धन’ बांग्ला के 23 कवियों की 111 कविताओं का संकलन है। इन कवियों में बांग्ला के प्रख्यात से लेकर अल्पज्ञात कवि हैं। संग्रह में शामिल कवियों और उनकी कविताओं का ‘चयन अत्यन्त व्यक्तिगत’ है, जिसकी कसौटी सम्पादक की पसन्द है।
    अनुवाद में भाषा के स्तर पर दो प्रविधियाँ अपनायी जाती हैं। अनुवादक की भाषा या तो मूल भाषा के निकट स्थिर रहती है या उस भाषा के निकट जिसमें अनुवाद हो रहा है। इन अनुवादों में भाषा और मुहावरे को मूल भाषा के निकट रखा गया है।
    बकौल सम्पादक ‘इस संग्रह के लिए कवियों का
    चयन भी बेहद लोकतान्त्रिक ढंग से हुआ है;
    परिणामस्वरूप भारत के साथ-साथ बांग्लादेश के कई
    कवियों की कविता भी इस संग्रह में शामिल है।’ इस
    रूप में यह बांग्ला भाषा का प्रतिनिधि चयन है। साथ
    ही इस संग्रह में कई लोकप्रिय और वरिष्ठ हैं, तो कई
    ऐसे कवि भी हैं जो अपेक्षाकृत नये और अल्पज्ञात हैं।
    संग्रह में 19वीं सदी के पूर्वार्द्ध से लेकर 21वीं सदी तक की कविताएँ सम्मिलित हैं। इसमें विषय, भाषा, काव्य सौन्दर्य की पर्याप्त विविधता के दर्शन होते हैं। आशा है यह चयन हिन्दीभाषी कविता-पाठकों द्वारा सराहा जाएगा।

    212.00249.00
  • Pitrisatta Yaunikta aur Samlaingikta By Sujata

    पितृसत्ता यौनिकता और समलैंगिकता – सुजाता


    अतिवादी विचारों से विमर्शों को सबसे ज्यादा खतरा पैदा होता है जब वे ऐसे तर्कों की ओर ले जाते हैं जो आपको बेसहारा करके समुद्र में फेंक देते हैं। समुद्र-मन्थन हमारा काम नहीं। हमें अनमोल, अदेखे, विस्मयकारी पत्थर नहीं इस दुनिया में काम आने वाले विचार चाहिए।

    वहीं एक जरूरी मिर्श को अतिवादी कहकर कुछ लोग आपत्ति करते हैं कि जिस तेजी से विमर्श वाले लोग यौन-अभिरुचियों पर आधारित अस्मिताएँ हर रोज़ कोई नयी ले आते हैं उससे तो अन्त में भयानक गड़बड़झाला हो जाएगा। कुछ पता ही नहीं चलेगा कि कौन क्या है! (जनसंख्या प्रबन्धन के उद्देश्य से सख्ती करने के लिए सत्ता इसे ही एक तर्क की तरह इस्तेमाल करती आयी है) लेकिन जरा ध्यान से देखिए तो इस विमर्श के पीछे मूल उद्देश्य क्या है? इस बात को स्वीकार करना कि हम सब भिन्न हैं और भिन्न होते हुए भी बराबर हैं इसलिए जगहों और भाषा को ऐसा बनाया जाए जो समावेशी हों। सब अपने खानपान, वेश-भूषा, यौन अभिरुचि और प्रेम पात्र के चयन के लिए स्वतन्त्र हों। समानता और गरिमा से जी सकें।

    सबसे मुश्किल यही है। इसलिए भी इतना भ्रम और धुंधलापन छाया हुआ है कि हम भूल गये कि हमने शुरुआत कहाँ से की थी। इस किताब का खयाल तभी दिमाग में आया था जब कुछ युवाओं को स्त्रीवाद के कुछ आधारभूत सवालों पर बेहद उलझा हुआ पाया। इसी किताब के लिए मैंने भी पहली बार मातृसत्ता के मिथक को ठीक से समझने की कोशिश की।

    – इसी पुस्तक से


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  • HALAFNAME (Novel) by Raju Sharma

    हलफनामे – राजू शर्मा


    साहित्यिक अफवाहों, षड्यन्त्रों, छोटी आकांक्षाओं से सचेत दूरी बनाने वाले राजू शर्मा विरल प्रतिभा के कथाकार हैं। उन्होंने अपनी कहानियों में यथार्थ और उसकी अभिव्यक्ति की प्रचलित रूड़ियों, परिपाटियों को परे हटाते हुए कथन की सर्वथा नयी संरचना अर्जित की है। उनका यह पहला उपन्यास हलफनामे उनकी रचनात्मकता का चमत्कृत कर देने वाला विकास है।
    हलफनामे को समकालीन हिन्दी उपन्यास लेखन की विशिष्ट उपलब्धि के रूप में देखा जा सकता है। एक मुख्यमन्त्री किसानों के वोट बटोरने के इरादे से ‘किसान आत्महत्या योजना’ की घोषणा करता है। इधर मकई राम को सूचना मिलती है कि कर्ज के बोझ से पिस रहे उसके किसान पिता ने खुदकुशी कर ली है। मकई ‘किसान आत्महत्या योजना’ से मुआवजा हासिल करने के लिए हलफनामा दाखिल करता है। कथा के इस घेरे में राजू शर्मा ने भारतीय समाज का असाधारण आख्यान रचा है। यहाँ एक तरफ शासनतन्त्र की निर्दयता और उसके फरेब का वृत्तान्त है तो दूसरी तरफ सामान्यजन के सुख-दुख-संघर्ष की अनूठी छवियाँ हैं। साथ में हलफनामे पानी के संकट की कहानी भी कहता है और इस बहाने वह हमारे उत्तर आधुनिक समाज के तथाकथित विकास के मॉडल का गहन-मजबूत प्रत्याख्यान प्रस्तुत करता है। न केवल इतना, बल्कि हलफनामे में भारत के ग्रामीण विकास की वैकल्पिक अवधारणा का अद्भुत सर्जनात्मक पाठ भी है।
    हलफनामे इस अर्थ में भी उल्लेखनीय है कि इसमें न यथार्थ एकरैखिक है न संरचना। यहाँ यथार्थ के भीतर बहुत सारे यथार्थ हैं, शिल्प में कई-कई शिल्प हैं, कहानी में न जाने कितनी कहानियाँ हैं। इसकी अभिव्यक्ति में व्यंग्य है और काव्यात्मकता भी। वास्तविकता की उखड़ी-रूखी जमीन है और कल्पना की ऊँची उड़ान भी। अर्थ की ऐसी व्यंजना कम कृतियों में सम्भव हो पाती है।
    संक्षेप में कहें, हलफनामे पाठकों की दुनिया को अपनी उपस्थिति से विस्मित कर देने की सामर्थ्य रखता है।
    – अखिलेश

    382.00450.00