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Ramcharitmanas Ki Lokvyapkta By Ravishankar Pandey

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रामचरितमानस की लोकव्यापकता * रविशंकर पाण्डेय

भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास, भूगोल से लेकर साहित्य, संस्कृति, ज्ञान-विज्ञान, धर्म और दर्शन के अलावा भी ऐसा कौन सा क्षितिज है जिसे आजानुबाहु राम ने न बाँध रखा हो। आदिकवि महर्षि वाल्मीकि से लेकर गोस्वामी तुलसीदास तक न जाने कितने कवि इन पर अपनी लेखनी चलाकर अमर हो गये किन्तु सिलसिला है कि आज भी थमने का नाम नहीं ले रहा है। यदि हम बात करें गोस्वामी तुलसीदास की तो उन्होंने संवत् 1631 में राम की कथा पर आधारित रामचरितमानस का लेखन प्रारम्भ किया और इसे दो साल सात माह में पूरा किया। आज तुलसीकृत रामचरितमानस के लगभग साढ़े चार सौ साल पूरे हो चुके हैं। किन्तु महर्षि वाल्मीकि से लेकर आज तक रामायण के बाद जो लोकप्रियता रामचरितमानस को मिली वह अद्भुत और अद्वितीय है। अब तो रामचरितमानस भारतीय लोकजीवन और लोकमानस में इतने गहरे रच-बस गया है कि साहित्य, संस्कृति, धर्म, दर्शन, ज्ञान-विज्ञान जैसे जीवन के सभी क्षेत्र बिना इसके सन्दर्भ के अधूरे लगते हैं। यद्यपि इस ग्रन्थ के धार्मिक, आध्यात्मिक, साहित्यिक और सांस्कृतिक विमर्श को लेकर बहुत कुछ लिखा गया है किन्तु लोकजीवन में इसके इस रचाव बसाव और लोकव्यापकता के कारणों पर बहुत कम विचार किया गया है। क्या कारण हैं कि मुगल बादशाह अकबर के राज से लेकर आज के आधुनिक लोकतन्त्र तक विभिन्न ऐतिहासिक, राजनीतिक और सामाजिक विभिन्नताओं और विरोधाभासों के बीच रामचरितमानस निरन्तर लोकप्रियता और लोकव्यापकता की सीढ़ियों को लाँघता हुआ देश-काल की सीमा से परे आज सम्पूर्ण मानवीय सभ्यता और संस्कृति का कण्ठहार बन चुका है। प्रस्तुत अध्ययन में एक क्षुद्र प्रयास करते हुए इस विषय की पड़ताल की गयी है कि रामचरितमानस के अन्दर ऐसी कौन सी विशेषताएँ हैं जो उसे इतना लोकप्रिय और लोकव्यापक बनाने के लिए जिम्मेदार हैं… आज यदि हम तुलसी के इस कार्य का मूल्यांकन पूर्वग्रह मुक्त होकर करें तो पाएँगे कि समाज में कोई परिवर्तन केवल उखाड़-पछाड़ के बल पर नहीं बल्कि साहित्य के सहारे शान्ति से ही सम्भव हो सकता है। तत्कालीन समय और शासन की वक्री गति के दृष्टिगत तुलसी अपने लेखन में प्रकटतः परम्पराओं का निर्वाह करते दीखते हैं किन्तु वे जड़ हो चुके तत्कालीन समाज में चुपचाप एक ऐसी हलचल पैदा कर रहे थे जिसकी लहरें आज भी दीख रही हैं।

– प्राक्कथन से


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Description

Ramcharitmanas Ki Lokvyapkta By Ravishankar Pandey

Additional information

Author

Ravishankar Pandey

Binding

Paperback

Language

Hindi

ISBN

978-93-6201-814-4

Pages

400

Publisher

Setu Prakashan Samuh

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