Kuchh Tinke, Kuchh Batein By Rakesh Kumar Singh
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कुछ तिनके, कुछ बातें – राकेश कुमार सिंह
राकेश कुमार सिंह की यह किताब कुछ तिनके, कुछ बातें उनके रचनात्मक वैविध्य का साक्ष्य तो है ही, विधाओं के बहुप्रचलित स्वरूप का अतिक्रमण करने की कोशिश भी इसमें दिखाई देती है।
राकेश कुमार सिंह आकांक्षा और प्रेम, अहसास और आत्मान्वेषण के रचनाकार हैं। उनके यहाँ विगत की परछाईं है तो आगत की आहट और अनागत की कल्पना भी। अधीर और जल्दबाज कतई नहीं हैं, बल्कि धीरे रचने में यकीन करते हैं। यह ऐसी रचनाशीलता है जो हलकी आँच पर धीमे-धीमे सीझते हुए अपना आस्वाद तैयार करती है। चाहे इस पुस्तक में संकलित भाव-टिप्पणियाँ हों, कथा के आवरण में लिखा गद्य हो या कविताएँ, सब पर यह बात लागू होती है। इसलिए लेखक का यह कथन एकदम स्वाभाविक लगता है कि ‘यह पुस्तक मेरे एक दशक से भी अधिक के लेखन और दशकों के अनुभवों का निचोड़ है।’
विधागत वैविध्य के साथ ही यह पुस्तक अपनी अन्तर्वस्तु में भी ढेर सारे रंग समेटे हुए है। इनमें प्रेम, वियोग, स्मृति और कल्पना, मनोमन्थन और अन्तर्द्वन्द्व से लेकर जीवन के प्रति रुख और खान-पान तक बहुत सारी बातें समाहित हैं। लेकिन सबसे ज्यादा जो खूबी पाठक को खींचती और बाँधे रखती है वह है अहसासों का प्रवाह। जैसा कि राकेश कुमार सिंह स्वयं कहते हैं “मन की वे बातें, जो कभी किसी से कह नहीं पाया, मेरे अधूरे सपने, जिन्हें जीना चाहता था, और वे कल्पनाएँ, जो मन में उमड़ती-घुमड़ती रहती थीं- इन्हें ही मैंने शब्दों में ढालने का प्रयास किया है।” उनके इस प्रयास ने जिस अभिनवता को रचा है उसका स्वागत किया जाना चाहिए।
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Description
Kuchh Tinke, Kuchh Batein By Rakesh Kumar Singh
कवि-उपन्यासकार राकेश कुमार सिंह ने फिक्शन और नॉन-फिक्शन की दस किताबें लिखी हैं, जिनकी विषय-वस्तु पुलिसिंग के तरीक़ों से लेकर नक्सलवाद तक फैली हुई है। वे हिन्दी और अँग्रेजी दोनों भाषाओं में लिखते हैं। उनके उपन्यासों Colours of Red (2021), Lockdown Love (2022) और Affairs of Deception (2022) को खूब सराहना मिली है। उन्होंने विविध विषयों पर प्रमुख समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में सौ से अधिक लेख भी लिखे हैं।
2011 में उनकी किताब ‘नक्सलवाद और पुलिस की भूमिका’ और 2021 में ‘नक्सलवाद: अनकहा सच’ के लिए उन्हें प्रतिष्ठित गोविन्द बल्लभ पन्त पुरस्कार मिला है। पुलिस की मनोवैज्ञानिक एवं व्यावसायिक पृष्ठभूमि पर आधारित उनकी पुस्तक Behind the uniform: Not just a cop (2023) काफ़ी चर्चित रही है। सम्प्रति, वह केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) में पुलिस उप महानिरीक्षक पद पर कार्यरत हैं। सीआरपीएफ में अपनी तीस साल की सेवा में उन्हें सरकार द्वारा कई पदकों और प्रशस्ति-पत्रों से सम्मानित किया गया है। उन्होंने नक्सलवाद से प्रभावित बस्तर में दन्तेवाड़ा जैसे क्षेत्रों के अलावा कश्मीर और उत्तर-पूर्व जैसे संघर्ष-क्षेत्रों में सेवा की है। वह पुलिस अकादमियों में विशेषज्ञ के रूप में कार्य करते हैं।
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