Intzaar Mein AA Ki Matra – Naveen Rangiyal

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इंतजार में आ की मात्रा नवीन रांगियाल का कविता-संग्रह है। नवीन रांगियाल की कविताओं की विशेषता है कि वह दुख को दिल और दिमाग से सूत भर हटाते हुए मन पर जमाते हैं जो की कविताओं में सहज रूप से दिखता है।

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    इस पुस्तक में बहादुर शाह ज़फ़र के सम्प्रभु स्तर, भले ही वह नाममात्र का हो, की अन्तरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय और विदेशी कानूनों के परिप्रेक्ष्य में विवेचना की गयी है। अन्य उन कारकों का भी विश्लेषण किया गया है जिससे साबित होता है कि इस भारतीय बादशाह के विरुद्ध फिरंगी शासकों ने मनमानी, गैरकानूनी तथा अवैधानिक कार्यवाहियाँ की थीं, जिसको कोई भी सभ्य विश्व समुदाय सहमति नहीं दे सकता। साथ ही बहादुर शाह ज़फ़र पर चलाये गये इस अवैधानिक मुकदमे – कोर्ट- मार्शल की सरकारी कार्यवाही का पूरा विवरण भी परिशिष्ट के रूप में उपलब्ध कराया गया है। इस कार्यवाही को पढ़ने, सरकारी पक्ष, साक्ष्यों, अभिलेखों और प्रक्रियाओं के अवलोकन से ही ब्रिटिश प्रशासन की नीयत और मंशा आसानी से समझ आ जाती है। उम्मीद है कि 1857 के संघर्ष और पहली व्यापक क्रान्ति के सन्दर्भ में महत्त्वपूर्ण और जरूरी विश्लेषण के इस दस्तावेज को पाठक गम्भीरता से लेंगे।

    – भूमिका से
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    मुहम्मद अली जिन्ना भारत विभाजन के सन्दर्भ में अपनी भूमिका के लिए निन्दित और प्रशंसित दोनों हैं। साथ ही उनकी मृत्यु के उपरान्त उनके इर्द- गिर्द विभाजन से जुड़ी अफवाहें खूब फैलीं।

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    JINNAH: His Successes, Failures and Role in History का हिन्दी अनुवाद
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    जरूरत इस बात की है कि हम केवल आतंकवाद के लक्षणों को न देखें बल्कि उस रोग का पता लगाने की कोशिश करें, जो आतंकवाद के उदय का मूल कारण है। केवल सुरक्षा व्यवस्था को कड़ा करने से काम नहीं चलेगा क्योंकि अधिकतर आतंकवादी अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अपना जीवन खोने के लिए तत्पर रहते हैं। हमने यह भी देखा है कि कुछ वैश्विक ताकतें आतंकवाद को प्रोत्साहन देती हैं और आतंकी संगठनों की मदद करती हैं। इसलिए यह आवश्यक है कि वैश्विक स्तर पर संयुक्त राष्ट्र संघ को और मजबूत बनाया जाए ताकि यह संगठन उन देशों के विरुद्ध कार्रवाई कर सके जो आतंकवादियों को शरण दे रहे हैं। अपने देश के स्तर पर हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि आतंकी हमलों के सभी दोषियों को बिना किसी भेदभाव के उनके किये की सजा मिले। हमें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि हमारी राजनीति नैतिक मूल्यों पर आधारित हो। जो तत्त्व व शक्तियाँ यह दावा कर रही हैं कि ये किसी धर्म विशेष या धर्म-आधारित राष्ट्रवाद की रक्षक हैं, उन्हें हमें सिरे से खारिज करना होगा। धर्म एक निजी मसला है और उसका राजनीति से घालमेल किसी तरह भी उचित नहीं कहा जा सकता। हमारी राजनीतिक व्यवस्था का आधार स्वतन्त्रता, समानता व बन्धुत्व के मूल्य होने चाहिए। अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर वैश्विक प्रजातन्त्र की स्थापना की जरूरत है जिससे चन्द देश पूरी दुनिया पर अपनी दादागिरी न चला सकें।

    – प्रस्तावना से

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  • Sabhyata Ke Kone By Ramachandra Guha

    संशोधित-परिवर्द्धित हिन्दी संस्करण

    सभ्यता के कोने

    वेरियर एल्विन
    और
    भारतीय आदिवासी समाज

    – रामचन्द्र गुहा
    – अनुवादक अनिल माहेश्वरी

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    यह पुस्तक एक जीवनी है और इस विधा में अपनी विशिष्ट जगह बना चुकी है। समकालीन भारत के सबसे जाने-पहचाने इतिहासकार रामचन्द्र गुहा की लिखी महात्मा गांधी की जीवनी कितनी बार पढ़ी गयी और चर्चित हुई। लेकिन गुहा की कलम से रची गयी पहली जीवनी वेरियर एल्विन (1902- 1964) की थी। यह एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है जो ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से पढ़ाई समाप्त करके ईसाई प्रचारक के रूप में भारत आया। फिर यहीं का होकर रह गया। वह धर्म प्रचार छोड़कर गांधी के पीछे चल पड़ता है। उसने भारतीय आदिवासियों के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। वह उन्हीं में विवाह करता है। भारत की नागरिकता लेता है और अपने समर्पित कार्यों की बदौलत भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पण्डित जवाहरलाल नेहरू का विश्वास जीतता है। साथ ही उस विश्वास पर खरा उतरता है।

    एल्विन का जीवन आदिवासियों के लिए समर्पण की वह गाथा है जिसमें एक बुद्धिजीवी अपने तरीके का ‘एक्टिविस्ट’ बनता है तथा अपनी लेखनी और करनी के साथ आदिवासियों के बीच उनके लिए जीता है। यहाँ तक कि स्वतन्त्रता सेनानियों में भी ऐसी मिसाल कम ही है।

    रामचन्द्र गुहा ने वेरियर एल्विन की जीवनी के साथ पूर्ण न्याय किया है। मूल अँग्रेजी में लिखी गयी पुस्तक आठ बार सम्पादित हुई। मशहूर सम्पादक रुकुन आडवाणी के हाथों और निखरी। जीवनी के इस उत्तम मॉडल में एल्विन के जीवन को उसकी पूर्णता में उभारा गया है और शायद ही कोई पक्ष अछूता रहा है।

    एल्विन एक बहुमुखी प्रतिभा के व्यक्तित्व थे। वे मानव विज्ञानी, कवि, लेखक, गांधीवादी कार्यकर्ता, सुखवादी, हर दिल अजीज दोस्त और आदिवासियों के हितैषी थे। भारत को जानने और चाहने वाले हर व्यक्ति को एल्विन के बारे में जानना चाहिए ! यह पुस्तक इसमें नितान्त उपयोगी है।

    राम गुहा ने इस पुस्तक के द्वितीय संस्करण में लिखा है कि किसी लेखक के लिए उसकी सारी किताबें वैसे ही हैं जैसे किसी माता- पिता के लिए उनके बच्चे। यानी किसी एक को तरजीह नहीं दी जा सकती और न ही कोई एक पसन्दीदा होता है। फिर भी वो अपनी इस किताब को लेकर खुद का झुकाव छुपा नहीं पाये हैं। ऐसा लगता है गुहा अपील करते हैं कि उनकी यह किताब जरूर पढ़ी जानी चाहिए। और क्यों नहीं ?

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  • Avsaad Ka Anand – Satyadev Tripathi (Paperback)

    Avsad Ka Anand – Satyadev Tripathi

    अवसाद का आनन्द -सत्यदेव त्रिपाठी

    बनारस-रमे विद्वान और सजग रंग-समीक्षक सत्यदेव त्रिपाठी ने जयशंकर प्रसाद की यह जीवनी लिखी है। एक मूर्धन्य कवि, उसके निजी और सर्जनात्मक-बौद्धिक संघर्ष, उनकी जिजीविषा और दुखों आदि के बारे में जानकार हम प्रसाद की महिमा और अवदान को बेहतर समझ-सराह पाएँगे।

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  • Rajneetik Safar Ke Panch Dashak by Sushil Kumar Shinde

    श्री सुशील कुमार शिन्दे की आत्मकथा का प्रकाशन बड़ी ख़ुशी की बात है। मुझे यक़ीन है कि यह पिछली आधी सदी और उससे भी ज्यादा के राजनीतिक एवं सामाजिक इतिहास को समझने में हमारी मदद करेगी।

    इनका जीवन संघर्ष की एक गाथा है। इनकी राह में अनेक मुश्किलें आयीं, लेकिन इन्होंने उन सभी पर विजय प्राप्त की। ये कई उच्च पदों पर आसीन हुए, जिनका इन्होंने बड़ी कर्मठता और उद्देश्यपूर्ण तरीक़ों से इस्तेमाल कर महत्त्वपूर्ण स्थायी योगदान दिये। अपने लम्बे सियासी कॅरियर के दौरान ये एक निष्ठावान काँग्रेसी रहे हैं, जो पार्टी के बुनियादी मूल्यों, ख़ासतौर पर धर्मनिरपेक्षता, समाज के कमज़ोर वर्गों के प्रति चिन्ता और सामाजिक न्याय एवं सशक्तीकरण के प्रतीक हैं।
    इनके साथ अपनी सियासी यात्रा के दौरान जिस बात ने मुझे सबसे ज़्यादा प्रभावित किया, वह है इनका व्यक्तित्व। हमेशा मुस्कराता, शान्त एवं स्थिर चेहरा। उत्कृष्ट भारतीय परम्पराओं के अनुसार अलग-अलग दृष्टिकोणों को सुनकर मध्य की राह निकालने की इनमें अद्भुत क्षमता रही है।
    मैं श्री शिन्दे की कुशलता, दीर्घायु जीवन और अच्छे स्वास्थ्य की कामना करती हूँ।
    – सोनिया गांधी

    श्री सुशील कुमार शिन्दे मेरे सम्मानित कैबिनेट सहयोगी और बीते कई वर्षों से मेरे मित्र रहे हैं। मैं भारतीय राजनीति की जटिलताओं के बारे में उनकी राय और गहरी समझ का क़ायल हूँ। इस रोचक वृत्तान्त में वर्णित श्री शिन्दे का जीवन अनेकानेक चुनौतियों के बीच उनकी उपलब्धियों, उनकी उत्कृष्टता और उनके लचीलेपन की एक असाधारण कहानी है।
    – डॉ. मनमोहन सिंह पूर्व प्रधानमन्त्री

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  • Meri Yatna Ke Ant Main Ek Darwaza Tha – Rashmi Bhardwaj

    विश्व की बारह स्त्री कवियों द्वारा लिखी गयी चुनिन्दा कविताओं के अनुवाद का प्रस्तुत संचयन हिन्दी में अपनी तरह का पहला संग्रह है। यहाँ प्रत्येक कवि अपने काव्य की चारित्रिक विशेषताओं के साथ उपस्थित है, और समग्रतः स्त्री-विश्व का ऐसा दृश्यालेख भी, जो मनुष्यत्व से अभिन्न व जीवनमय है।

    रश्मि भारद्वाज ने पहले कवि और उपन्यासकार के रूप में अपनी सार्थक व सफल पहचान बनायी और अब इस संचयन से वे एक अनुपम अनुवादक की तरह भी जानी जाएँगी; उन्होंने अनूदित कविताओं को हिन्दी में नया जीवन प्रदान किया है।
    – पीयूष दईया

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  • Bharat Se Kaise Gaya Buddh Ka Dharm By Chandrabhushan

    औपनिवेशिक भारत में स्तूपों की खुदाई, शिलालेखों और पाण्डुलिपियों के अध्ययन ने बुद्ध को भारत में पुनर्जीवित किया। वरना एक समय यूरोप उन्हें मिस्त्र या अबीसीनिया का मानता था। 1824 में नियुक्त नेपाल के ब्रिटिश रेजिडेण्ट हॉजसन बुद्ध और उनके धर्म का अध्ययन आरम्भ करने वाले पहले विद्वान थे। महान बौद्ध धर्म भारत से ऐसे लुप्त हुआ जैसे वह कभी था ही नहीं। ऐसा क्यों हुआ, यह अभी भी अनसुलझा रहस्य है। चंद्रभूषण बौद्ध धर्म की विदाई से जुड़ी ऐतिहासिक जटिलताओं को लेकर इधर सालों से अध्ययन-मनन में जुटे हैं। यह पुस्तक इसी का सुफल है। इस यात्रा में वह इतिहास के साथ-साथ भूगोल में भी हैं। जहाँ वेदों, पुराणों, यात्रा-वृत्तान्तों, मध्यकालीन साक्ष्यों तथा अद्यतन अध्ययनों से जुड़ते हैं, वहीं बुद्धकालीन स्थलों के सर्वेक्षण और उत्खनन को टटोलकर देखते हैं। वह विहारों में रहते हैं, बौद्ध भिक्षुओं से मिलते हैं, उनसे असुविधाजनक सवाल पूछते हैं और इस क्रम में समाज की संरचना नहीं भूलते। जातियाँ किस तरह इस बदलाव से प्रभावित हुई हैं, इसकी अन्तर्दृष्टि सम्पन्न विवेचना यहाँ आद्योपान्त है।


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  • RACHANA PRAKRIYA KE PADAV (Thought on Theatre Work) by Devendra Raj Ankur

    रचना प्रक्रिया के पड़ाव – देवेन्द्र राज अंकुर

    Rachna Prakriya Ke Padav (Thought on Theatre Work) By Devendra Raj Ankur

    ‘रचना प्रक्रिया के पड़ाव’ प्रसिद्ध रंगकर्मी और विद्वान् श्री देवेन्द्र राज अंकुर की नव्यतम पुस्तक है। रंगमंच को मुख्यतः और प्राथमिक रूप से नाटकों के मंचन से सन्दर्भित माना गया है। नाटकों और एकांकियों की सफलता का एक आधार उनके मंचन की अनुकूलता भी है। इसके अतिरिक्त महाकाव्यों के मंचन की भी सुदीर्घ और समृद्ध परम्परा भारत में रही है। परन्तु प्रस्तुत पुस्तक का सन्दर्भ कहानी के रंगमंच से है। ‘कहानी का रंगमंच’ नामक पुस्तक इस सन्दर्भ की पहली व्यवस्थित पुस्तक थी जिसका सम्पादन महेश आनन्द ने किया था। इसके बावजूद यह पुस्तक उस पुस्तक से कई मायनों में विशिष्ट है। पहली तो यह एक लेखक द्वारा रचित है। दूसरे इसको पहली पुस्तक से लगभग 50 वर्ष बाद लिखा गया है। तो इस लम्बी समयावधि में रंगमंच, ज्ञान-सरणी और कहानी विधा में जो विस्तार हुआ, उसे पुस्तक समेटती है।

    प्रस्तुत पुस्तक को छह हिस्सों में बाँटा गया है- प्रस्तुति, विचार, प्रक्रिया, संवाद, दृश्यालेख और कथासूची। यह बँटवारा अध्ययन की सुविधा के लिए तो है ही, साथ ही यह रचनाकार की उस दृष्टि का महत्तम समापवर्तक भी है जिससे वह चीजों को देखता- जाँचता है।
    इस पुस्तक से रंगमंच के दर्शन का ज्ञान तो होगा ही साथ ही ‘छात्रों, शोधार्थियों और रंगकर्मियों के लिए एक ही दिशा में किये गये काम कहानी का रंगमंच से सम्बद्ध लगभग सारी जानकारियाँ’ भी मुहैया हो सकेंगी। ऐसा हमें विश्वास है।
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  • Prem Ke Paksh Mein Prarthana By Kundan Siddhartha

    कुंदन सिद्धार्थ की कविता कम शब्दों में अपने तरक़्क़ीपसन्द मन्तव्यों की स्पष्ट, मार्मिक एवं सार्थक अभिव्यक्ति है। इन कविताओं के मूल में मानवीय संवेदन और उपचार में मानवीय सरोकार हैं। कवि के इस पहले संग्रह का हिन्दी जगत् में इसलिए भी स्वागत किया जाना चाहिए क्योंकि ये कविताएँ वे आँखें हैं जो जितना देखती हैं उससे कहीं अधिक हैं।

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  • Purkha Patrkaar Ka Bioscope By Nagendra Nath Gupta

    पुरखा पत्रकार का बाइस्कोप

    यह एक अद्भुत किताब है. इतिहास, पत्रकारिता, संस्मरण, महापुरुषों की चर्चा, शासन, राजनीति और देश के विभिन्न हिस्सों की संस्कृतियों का विवरण यानि काफी कुछ. लेकिन सबसे महत्वपूर्ण है इसका कालखंड. पढ़ने की सामग्री के लिहाज से 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद से देश के राजनैतिक क्षितिज पर गांधी के उदय तक का दौर बहुत कुछ दबा-छुपा लगता है. अगर कुछ उपलब्ध है तो उस दौर के कुछ महापुरुषों के प्रवचन, उनसे जुड़ा साहित्य और उनके अपने लेखन का संग्रह. लेकिन उस समय समाज मेँ, खासकर सामाजिक जागृति और आध्यात्मिक विकास के क्षेत्र में काफी कुछ हो रहा था. अंग्रेजी शासन स्थिर होकर शासन और समाज में काफी कुछ बदलने में लगा था तो समाज के अन्दर से भी जवाबी शक्ति विकसित हो रही थी जिसका राजनैतिक रूप गांधी और कांग्रेस के साथ साफ हुआ. यह किताब उसी दौर की आंखों देखी और भागीदारी से भरे विवरण देती है. इसीलिए इसे अद्भुत कहना चाहिए.

    एक साथ तब का इतना कुछ पढ़ने को मिलता नहीं. कुछ भक्तिभाव की चीजें दिखती हैं तो कुछ सुनी सुनाई. यह किताब इसी मामले में अलग है. इतिहास की काफी सारी चीजों का आंखों देखा ब्यौरा, और वह भी तब के एक शीर्षस्थ पत्रकार का, हमने नहीं देखा-सुना था. इसमें 1857 की क्रांति के किस्से, खासकर कुँअर सिंह और उनके भाई अमर सिंह के हैं, लखनऊ ने नवाब वाजिद अली शाह को कलकता की नजरबन्दी के समय देखने का विवरण भी है और उसके बाद की तो लगभग सभी बडी घटनाएं कवर हुई हैं. स्वामी रामकृष्ण परमहंस की समाधि का ब्यौरा हो या ब्रह्म समाज के केशव चन्द्र सेन के तूफानी भाषणों का, स्वामी विवेकानन्द की यात्रा, भाषण और चमत्कारिक प्रभाव का प्रत्यक्ष ब्यौरा हो या स्वामी दयानन्द के व्यक्तित्व का विवरण. ब्रिटिश महाराजा और राजकुमार के शासकीय दरबारों का खुद से देखा ब्यौरा हो या कांग्रेस के गठन से लगातार दसेक अधिवेशनों में भागीदारी के साथ का विवरण- हर चीज ऐसे लगती है जैसे लेखक कोई पत्रकार न होकर महाभारत का संजय हो.


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  • Geeta Press Aur Hindu Bharat Ka Nirman by Akshay Mukul

    गीता प्रेस और हिन्दू भारत का निर्माण – अक्षय मुकुल
    अनुवाद : प्रीती तिवारी

    पुस्तक के बारे में…

    अक्षय मुकुल हमारे लिए अमूल्य निधि खोज लाए हैं। उन्होंने गोरखपुर स्थित गीता प्रेस के अभिलेखों तक अपनी पहुँच बनाई। इसमें जन विस्तार वाली पत्रिका कल्याण के पुराने अंक थे। लेकिन सबसे महत्त्वपूर्ण कई दशकों तक कल्याण के संपादक और विचारक रहे हनुमान प्रसाद पोद्दार के निजी कागजात तक पहुँचना था। इन कागजात के जरिये मुकुल हमें हिन्दुत्व परियोजना के बीजारोपण से लेकर जनमानस में उसे मजबूत किए जाने के पूरे वाकये से रूबरू करवाते हैं। इससे भी आगे वे इसकी जड़ में मौजूद जटिलता तक पहुँचते हैं जहाँ रूढ़िग्रस्त ब्राह्मणवादी हिन्दुओं और मारवाड़ी, अग्रवाल और बनिया समुदाय के अग्रणी पंरॉय
    मदन मोहन मालवीय, गांधी, बिड़ला बंधुओं और गीता प्रेस के बीच की सहयोगी अंतरंगता, किंतु कभी मधुर कभी तिक्त संबंध बिखरे दिखाई देते हैं। यह किताब हमारी जानकारी को बहुत समृद्ध करेगी और आज जिन सूरत-ए-हालों में भारत उलझा है उसे समझने में मददगार साबित होगी।
    – अरुंधति रॉय
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  • Lucknow : Nawabi-badshahi Kaal Aur 1857 Ki Kranti Ki Gatha By Rajgopal Singh Verma

    नवाबी-बादशाही काल और 1857 की क्रान्ति की गाथा – लखनऊ – राजगोपाल सिंह वर्मा

    अवध का इतिहास एक वृहद् विषय है। यह शून्य से शुरू होकर उत्कर्ष और ईस्ट इण्डिया कम्पनी से ब्रिटिश साम्राज्य के महत्त्वपूर्ण प्रक्षेत्र में बदलने की कहानी है तो शेखजादाओं से आरम्भ होकर नवाबी युग और फिर बादशाहत, 1857 के लम्बे चले संघर्ष का घटनाक्रम भी है। यह उत्तर भारत की उस ऐतिहासिक विरासत, संस्कृति और तहजीब का जीवन्त और विशद आख्यान है, जिसे इतिहास के किसी कालखण्ड में अनदेखा नहीं किया जा सकता। यह पुस्तक अवध के पूरे इतिहास को समेटने का प्रयास न होकर उसके बनने, बिगड़ने, सँभलने और नवाबी युग से बादशाहत के साम्राज्य में फैलने/संकुचित होने की वह कहानी है, जिसे हम जानने की उत्कण्ठा रखते हैं। इस पुस्तक में शेखजादाओं के बाद से सआदत खान और सफदरजंग के गौरवशाली इतिहास का वर्णन है, उनके शून्य से शिखर तक पहुँचने और चर्चित आखिरी बादशाह वाजिद अली शाह के शासन काल तक दरक कर विस्मृत हो जाने के समय की कथा के मुख्य बिन्दुओं का लेखन किया गया है। सन् 1801 के बाद से, जब ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी अपनी निश्चितता के साथ उत्तर भारत की प्रमुख रियासतों में पाँव पसार रही थी तो अवध पर उनकी सतर्क निगाह शुरू से ही बनी हुई थी। ऐसा एक तो इस प्रान्त की सामरिक स्थिति के कारण था, तो यहाँ की समृद्धि, सामरिक स्थिति और दिल्ली से निकटता के कारण। इसीलिए यह किताब उन घटनाक्रमों का अनायास ही इतिहास सम्मत विश्लेषण करने की कोशिश भी करती है, जिनके माध्यम से ईस्ट इण्डिया कम्पनी की सत्ता अवध को अपने साम्राज्य का अभिन्न अंग बनाने को बेचैन थी।


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  • Kabhi Purniya Mein (History) By Dr. Ashok Kumar Jha

    कभी पूर्णिया में” डॉ. आशोक कुमार झा,

    एक महत्त्वपूर्ण किताब है जो केवल पूर्णिया क्षेत्र में रहने वाले ब्रिटिश नागरिकों के जीवन के दस्तावेजीकरण तक सीमित नहीं है बल्कि इसकी वास्तविक प्रासंगिकता औपनिवेशिक भारत में यूरोपीय आबादी और स्थानीय समाज के मध्य बुने गये सम्बन्धों के उस जटिल ताने-बाने को उजागर करने में है जिसके स्रोत आज भी पूर्णिया क्षेत्र में देखे जा सकते हैं।

    -देवेन्द्र चौबे,
    भारतीय भाषा अध्ययन केन्द्र,
    जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय
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  • RSS Aur Hindutva Ki Rajneeti By Ram Puniyani

    आरएसएस और हिन्दुत्व की राजनीति – राम पुनियानी  (सम्पादक रविकान्त)


    आरएसएस जितना साम्प्रदायिक है, उससे भी ज्यादा वर्ण और जातिवादी है। आरएसएस का हिन्दुत्व दरअसल नया ब्राह्मणवाद है। गोलवलकर ने एक तरफ मुसलमानों और ईसाइयों को भारत से बाहर निकालने की बात की तो दूसरी तरफ वर्ण व्यवस्था की प्रशंसा करते हुए इसे कठोरता से लागू करने का सन्देश दिया। संघ के मुखपत्र ऑर्गनाइजर (2 जनवरी 1961) के अनुसार गोलवलकर ने अपने एक सम्बोधन में कहा था कि, ‘आज हम अपनी नासमझी की वजह से वर्ण व्यवस्था को नीचा दिखाने की कोशिश कर रहे हैं। जबकि यही वह व्यवस्था है जिसकी वजह से अधिकारात्मकता पर नियन्त्रण करने की महान् कोशिश की गयी है… हमारे समाज में कुछ लोग बौद्धिक, कुछ लोग पैदावार में माहिर, कुछ लोग दौलत कमाने में और कुछ मेहनत करने की क्षमता रखते हैं। हमारे पूर्वजों ने मोटे तौर पर ये चार विभाजन किये थे। वर्ण व्यवस्था कुछ और नहीं बल्कि उन चार विभाजनों के बीच सन्तुलन स्थापित करना है, इसके जरिये हर आदमी समाज की सेवा अपनी बेहतरीन क्षमता द्वारा कर सकता है जो उसने वंशानुगत रूप से विकसित की है। अगर यह व्यवस्था जारी रहती है तो हर व्यक्ति के जीवनयापन के लिए उसके जन्म से ही कार्य सुरक्षित रहेगा।’
    – भूमिका से

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  • Chinhat 1857 : Sangharsh Ki Gourav Gatha – Rajgopal Singh Verma

    Chinhat 1857 : Sangharsh Ki Gourav Gatha – Rajgopal Singh Verma

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  • Janrav Edited by Vishal Srivastava

    जनरव

    (जनवादी लेखक संघ, उत्तर प्रदेश के कवियों की कविताओं का साझा संग्रह)

    इस पूरे संग्रह में हिन्दी के समकालीन परिदृश्य में मौजूद प्रतिबद्ध कवियों के काव्य-वैविध्य का एक व्यापक जायज़ा मिलता है। न केवल वय की दृष्टि से बल्कि जीवनानुभवों और अभिव्यक्ति के दृष्टिकोण से भी एक विपुल वैविध्य यहाँ उपस्थित है। आशा है कि यह संग्रह अपनी कविताओं के माध्यम से समकालीन हिन्दी कविता के व्यापक परिदृश्य में एक सार्थक हस्तक्षेप करने में समर्थ होगा। – भूमिका से


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