Samne Aate Hi Nahin : Ek Sahityik Sansmaran By Ramchandra Guha

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सामने आते ही नहीं – एक साहित्यिक संस्मरण

— रामचन्द्र गुहा
— अनुवाद हृदयेश जोशी


रुकुन और मैं 1970 के दशक में सेंट स्टीफेंस कॉलेज में समकालीन छात्र थे। वह तब तक गम्भीर पुस्तकों में डूब चुके थे जबकि मैं एक खिलाड़ी था जिसका बुद्धिजीवियों से कोई लेना-देना न था। उन दिनों उनके दिल में मेरे प्रति घृणा थी (वह स्वाभाविक रूप से भावी उपन्यासकार अमिताव घोष और दूसरे साहित्यिक सोच वाले लोगों का साथ पसन्द करते थे) लेकिन बाद में, जब मैंने अपनी शैक्षिक यात्रा में बदलाव किया और एक पी-एच.डी. भी की, हम परिचित हो गये और फिर मित्र बने। उन्होंने मेरी सभी शुरुआती किताबें प्रकाशित कर्की और धीरे-धीरे मेरे एक इतिहासकार, एक जीवनी लेखक, एक क्रिकेट लेखक और एक निबन्धकार बनने में उनका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। यह रुकुन ही थे जिन्होंने मुझे ओ.यू.पी. को छोड़कर ट्रेड प्रेस में जाने को उत्साहित किया, जहाँ उन्हें लगता था कि जो पुस्तकें मैं लिखने लगा था, उनके साथ न्याय किया जाएगा। इस बीच उन्होंने खुद भी ओ.यू.पी. छोड़ दी और एक छोटे से हिमालयी क़स्बे से पर्मानेण्ट ब्लैक नाम की प्रेस चलाने लगे, जहाँ वे अपनी पत्नी (उपन्यासकार अनुराधा रॉय) और सड़क से उठाये गये कई कुत्तों की मण्डली के साथ रहते हैं।

– इसी पुस्तक से

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Samne Aate Hi Nahin : Ek Sahityik Sansmaran By Ramchandra Guha (Translated By Hridayesh Joshi)

About The Author

रामचन्द्र गुहा ने पर्यावरण, इतिहास और क्रिकेट पर अब तक दो दर्जन पुस्तकें लिखीं और सम्पादित की हैं। उनकी पहली पुस्तक द अनक्वाइट वुड्स 1989 में प्रकाशित हुई। उन्होंने महात्मा गांधी की सबसे प्रामाणिक जीवनी लिखी है जो दो भागों में प्रकाशित हुई। गुहा ने आज्जादी के बाद भारतीय राजनीति और समाज का ब्योरा (इण्डिया आफ्टर गांधी) और भारतीय क्रिकेट के सामाजिक इतिहास पर एक पुस्तक (ए कॉर्नर ऑफ़ ए फ़ॉरेनफ़ील्ड) लिखी है। अपने लेखन के लिए उन्हें कई पुरस्कारों से नवाजा गया है। वह स्टेनफ़ोर्ड, इण्डियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस और लन्दन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में पढ़ा चुके हैं। गुहा को 2014 में येल विश्वविद्यालय (अमेरिका) ने मानविकी में मानद डॉक्टरेट से सम्मानित किया।
यह पुस्तक लेखक का साहित्यिक संस्मरण है जो अपने सम्पादक के साथ उनके खट्टे-मीठे अनुभवों का समृद्ध संग्रह है।


 

SKU: Samne Aate Hi Nahin By Ramchandra Guha-PB
Category:
Author

Ramchandra Guha

Translation

Hridayesh Joshi

Binding

Paperback

Language

Hindi

ISBN

: 978-93-6201-198-5

Pages

248

Publication date

27-01-2025

Publisher

Setu Prakashan Samuh

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    वेरियर एल्विन
    और
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    – रामचन्द्र गुहा
    – अनुवादक अनिल माहेश्वरी

     

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    यह पुस्तक एक जीवनी है और इस विधा में अपनी विशिष्ट जगह बना चुकी है। समकालीन भारत के सबसे जाने-पहचाने इतिहासकार रामचन्द्र गुहा की लिखी महात्मा गांधी की जीवनी कितनी बार पढ़ी गयी और चर्चित हुई। लेकिन गुहा की कलम से रची गयी पहली जीवनी वेरियर एल्विन (1902- 1964) की थी। यह एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है जो ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से पढ़ाई समाप्त करके ईसाई प्रचारक के रूप में भारत आया। फिर यहीं का होकर रह गया। वह धर्म प्रचार छोड़कर गांधी के पीछे चल पड़ता है। उसने भारतीय आदिवासियों के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। वह उन्हीं में विवाह करता है। भारत की नागरिकता लेता है और अपने समर्पित कार्यों की बदौलत भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पण्डित जवाहरलाल नेहरू का विश्वास जीतता है। साथ ही उस विश्वास पर खरा उतरता है।

    एल्विन का जीवन आदिवासियों के लिए समर्पण की वह गाथा है जिसमें एक बुद्धिजीवी अपने तरीके का ‘एक्टिविस्ट’ बनता है तथा अपनी लेखनी और करनी के साथ आदिवासियों के बीच उनके लिए जीता है। यहाँ तक कि स्वतन्त्रता सेनानियों में भी ऐसी मिसाल कम ही है।

    रामचन्द्र गुहा ने वेरियर एल्विन की जीवनी के साथ पूर्ण न्याय किया है। मूल अँग्रेजी में लिखी गयी पुस्तक आठ बार सम्पादित हुई। मशहूर सम्पादक रुकुन आडवाणी के हाथों और निखरी। जीवनी के इस उत्तम मॉडल में एल्विन के जीवन को उसकी पूर्णता में उभारा गया है और शायद ही कोई पक्ष अछूता रहा है।

    एल्विन एक बहुमुखी प्रतिभा के व्यक्तित्व थे। वे मानव विज्ञानी, कवि, लेखक, गांधीवादी कार्यकर्ता, सुखवादी, हर दिल अजीज दोस्त और आदिवासियों के हितैषी थे। भारत को जानने और चाहने वाले हर व्यक्ति को एल्विन के बारे में जानना चाहिए ! यह पुस्तक इसमें नितान्त उपयोगी है।

    राम गुहा ने इस पुस्तक के द्वितीय संस्करण में लिखा है कि किसी लेखक के लिए उसकी सारी किताबें वैसे ही हैं जैसे किसी माता- पिता के लिए उनके बच्चे। यानी किसी एक को तरजीह नहीं दी जा सकती और न ही कोई एक पसन्दीदा होता है। फिर भी वो अपनी इस किताब को लेकर खुद का झुकाव छुपा नहीं पाये हैं। ऐसा लगता है गुहा अपील करते हैं कि उनकी यह किताब जरूर पढ़ी जानी चाहिए। और क्यों नहीं ?

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