मनुष्य का अवकाश’ मुख्यतः श्रम, धर्म और प्रतिरोध की आंतरिक एकसूत्रता से निर्मित है। इन निबंधों के अतिरिक्त पुस्तक में एक कहानी भी है। यह कहानी विषय के आंतरिक साम्य के कारण यहाँ है। वास्तव में श्रम और प्रतिरोध ही वे मानवीय संदर्भ हैं, जिनसे मानव जाति निरंतर विकसित होते हुए, विकास की विभिन्न मंजिलों को पार करते हुए, यहाँ तक पहुँची है। ये निबंध इन प्रसंगों में मनुष्यता की निरंतरता में, उसके इन सकारात्मक पक्षों को तो प्रस्तावित करते ही हैं, साथ ही वे आज मनुष्य की प्रतिगामी शक्तियों के संदर्भ भी उद्घाटित करते हैं। इस संदर्भ में भी वे प्रतिरोध और श्रम की भूमिका प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप में रेखांकित करते चलते हैं। ‘मनुष्य का अवकाश’ कवि कुमार अंबुज का वैचारिक संसार है। कविताओं का वैचारिक संसार प्रच्छन्न होता है, पर कवि जब खुद वैचारिक साहित्य रचता है, तो पाठक उसमें सिर्फ वैचारिक सामग्री नहीं पाते, अपितु वह उसके रचनात्मक संसार को भी प्रोद्भासित करता है। मनुष्य का अवकाश’ कुमार अंबुज के वैचारिक मानस के साथ उनके कवि व्यक्तित्व की समझ का भी एक कोण उभारता है। इन निबंधों में विचार की सहधर्मी है उनकी काव्यात्मक भाषा। अगर गद्य कवियों की कसौटी है, तो उस गद्य को निखारने में कवियों की काव्यात्मक भाषा की मुख्य भूमिका होती है। कुमार अंबुज का गद्य सार्थक है तथा इसकी सफलता का आधार भाषा की काव्यात्मकता भी है।
About the Author:
जन्म : 13 अप्रैल, 1957, ग्राम मँगवार, गुना (मध्य प्रदेश)। शिक्षा : वनस्पतिशास्त्र में स्नातकोत्तर, क़ानून की डिग्री। प्रकाशन : कविता-संग्रह-‘किवाड़’, ‘क्रूरता’, अनन्तिम’, ‘अतिक्रमण’, ‘अमीरी रेखा’ और कहानी-संग्रह-‘इच्छाएँ’, डायरी- थलचर’। कवि ने कहा’ सीरीज़ में कविताओं का संचयन, ‘प्रतिनिधि कविताएँ’ सीरीज़ में विष्णु खरे द्वारा सम्पादित संयचन, ‘मनुष्य का अवकाश’ नाम से एक गद्य संग्रह। पुरस्कार : कविताओं के लिए मध्य प्रदेश साहित्य अकादेमी का माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार, भारतभूषण अग्रवाल स्मृति पुरस्कार, केदार सम्मान, श्रीकांत वर्मा पुरस्कार, गिरिजा कुमार माथुर सम्मान और वागीश्वरी पुरस्कार। विभिन्न शीर्ष साहित्यिक संस्थाओं में रचनापाठ। विभिन्न प्रतिनिधि समकालीन हिंदी कविताओं के रूसी, जर्मन, अंग्रेजी, नेपाली सहित अन्य भारतीय भाषाओं में अनुवाद। कवि द्वारा भी संसार के कुछ चर्चित कवियों की कविताओं के अनुवाद प्रकाशित। ‘वसुधा’ के कवितांक ‘इधर को कविता’ (1994) तथा गुजरात दंगों नरसंहार पर विशेष पुस्तक क्या हमें चुप रहना चाहिए?’ का सम्पादन (2002) ! बैंककर्मियों को संस्था ‘प्राची’ के लिए अनेक पुस्तिकाओं तथा बुलेटिस का संयोजन-सम्पादन।
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