Description
‘मुझे पहचानो’
(“साहित्य अकादमी पुरस्कार – 2023” से पुरस्कृत किताब)
“मुझे पहचानो” समाज के धार्मिक, सांसारिक और बौद्धिक पाखंड की परतें उधेड़ता है।
सती होने की प्रथा प्राचीन काल से ही चली आ रही है। इस अमानवीय परंपरा के पीछे मूल कारक सांस्कृतिक गौरव है।
सांस्कृतिक गौरव के साथ शुचिता का प्रश्न स्वतः उभरता है। इसमें समाहित है वर्ण की शुचिता, वर्ग की शुचिता, रक्त की शुचिता और लैंगिक शुचिता इत्यादि। इसी क्रम में पुरुषवादी यौन शुचिता की परिणति के रूप में सतीप्रथा समाज के सामने व्याप्त होती है।
समाज के कुछ प्रबुद्ध लोगों के नजरिये से परे यह प्रथा सर्वमान्य रही है और वर्तमान समय में भी गौरवशाली संस्कृति के हिस्से के रूप में स्वीकार्य है। महत्त्वपूर्ण और निराशाजनक यह है कि स्त्रियाँ भी इसकी धार्मिक व सांस्कृतिक मान्यता को सहमति देती हैं। उपन्यास में एक महिला इस प्रथा को समर्थन देते हुए कहती है, जीवन में कभी-कभी तो ऐसे पुण्य का मौका देते हैं राम !
उपन्यास मुझे पहचानो इसी तरह की अमानवीय धार्मिक मान्यताओं को खंडित करने और पाखंड में लिपटे झूठे गौरव से पर्दा हटाने का प्रयास करता है। इसी क्रम में धर्म और धन के घालमेल को भी उजागर करता है। इसके लिए सटीक भाषा, सहज प्रवाह और मार्मिक टिप्पणियों का प्रयोग उपन्यास में किया गया है जो इसकी प्रभावोत्पादकता का विस्तार करता है।
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‘पुरबी बयार’
‘पुरबी बयार’, पुरबिया के जनक माने जाने वाले महेन्दर मिसिर के जीवनकाल पर आधारित उपन्यास है। उपन्यासकार संजीव ने ‘सत्य के गिर्द लताओं की तरह लिपटी अनेक कथाओं में अक्सर उलझती’ कथा को विवेकपूर्ण तार्किकता से बुना है। इस कथा में महेन्दर के साथ दूसरे चरित्र भी बहुत शक्ति और लेखकीय विशवास के साथ आए हैं।
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‘समुद्र मन्थन का पन्द्रहवाँ रतन’
कथाकार संजीव ने हिन्दी को कई महत्त्वपूर्ण उपन्यास दिये हैं। वह पढ़े भी खूब जाते रहे हैं। उनके रचनात्मक अवदान के लम्बे सिलसिले की नवीनतम कड़ी है उनका उपन्यास समुद्र मन्थन का पन्द्रहवाँ रतन। यह उपन्यास हमारे समय की एक प्रमुख विसंगति और एक व्यापक मूल्यभ्रंश की शिनाख्त करता है, जिनसे पूरा समाज आक्रान्त है। पैसे की माया हर जगह सिर चढ़कर बोल रही है और इसके असर में सब कुछ टूटता, बिखरता जा रहा है-रिश्ते-नाते, आपसदारियाँ, रीति-रिवाज, परम्पराएँ, पुरानी मूल्य व्यवस्था, लोक- लाज। अधकपारी नाम के एक गाँव के गनेश सिंह और नुनू बाबू नामक दो चरित्रों के द्वन्द्व से पैसे का खेल उजागर होना शुरू होता है और हम देखते हैं कि उसके आगे किस तरह पुरुषार्थ का दिवाला निकल जाता है।
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