Description
गान गुणगान – सत्यशील देशपांडे – अनुवाद : उषा बजाज देशपांडे
हमारे शास्त्रीय संगीत के रसिकों की कोई कमी नहीं है। नयी तकनालजी ने उसे सहज सुलभ करा के उनकी संख्या शायद कई गुना बढ़ा दी है। लेकिन सार्वजनिक परिसर में संगीत और संगीतकारों पर विचार-विश्लेषण का बहुत अभाव है। यह अभाव हिन्दी अंचल में विकराल है हालाँकि ज्यादातर घराने हिन्दी अंचल में ही उपजे और वहीं से ग़ायब हैं। संगीतकारों की आपस में चर्चा होती है, वाद-विवाद, बहस आदि भी लेकिन उसकी सार्वजनिक अभिव्यक्ति नहीं होती।
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के विरुद्ध – अखिलेश
स्वामीनाथन : एक पक्ष
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वा घर सबसे न्यारा – ध्रुव शुक्ल
हिन्दी कवि कथाकार ध्रुव शुक्ल ने जो प्रयत्न किया है, वह मूल्यवान् और कुमार जी के बारे में अब तक जो लिखा-समझा गया है, उसमें कुछ नया, रोचक और सार्थक जोड़ता है। इस जीवनी में कुमार जी के बारे में जो पहले से जाना हुआ है उसे, जो कम या बिलकुल भी नहीं जाना हुआ है, उसे निरन्तरता में जोड़कर एक ऐसा जीवन वितान चित्रित हुआ है जिसमें कुमार जी के संघर्ष, सौन्दर्य-बोध, हर्ष और विषाद, विफलताएँ और रसिकता सभी गुँथे हुए हैं। भौतिक समय और संगीत – समय की तात्कालिकता, परम्परा के उत्खनन और नवाचार के जोखिम आदि की बहुत रोचक व्याख्याएँ यथास्थान बड़े मार्मिक ढंग से उभरती हैं । कुमार गन्धर्व की जीवन-कथा संघर्ष और लालित्य की कथा एकसाथ है—उसमें भारतीय आधुनिकता की अपनी मर्मकथा भी अन्तर्भूत है। ध्रुव शुक्ल ने यह जीवनी संवेदना, समझ और भाषा में काव्यात्मक अनुगूँजें उद्दीप्त करते हुए बहुत मनोयोग से लिखी है।
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