Srikrishna Uwach Edited By Shakuntala Mishra
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श्रीकृष्ण उवाच… सम्पादक : शकुन्तला मिश्रा
भगवद्गीता हिन्दू समाज के लिए सर्वाधिक पूज्य ग्रन्थ रही है। लेकिन इसकी मान्यता और प्रतिष्ठा एक धर्मग्रन्थ होने तक सीमित नहीं है। हिन्दू समाज के अलावा बाकी दुनिया के लिए भी यह सदियों से दार्शनिक चिन्तन-मनन और आध्यात्मिक मार्गदर्शन की एक प्रेरणास्पद पुस्तक रही है। शायद यही कारण है कि धर्मग्रन्थ मानी जाने वाली पुस्तकों में जितना भगवद्गीता पर विचार और प्रतिपादन हुआ है उतना किसी और पुस्तक पर नहीं। हो भी क्यों न, भगवद्गीता न सिर्फ आध्यात्मिक साधकों को मार्ग दिखाती रही है बल्कि सांसारिक कर्म क्षेत्र में जुटे लोगों में भी इसने बहुतों का आत्म-बल बढ़ाया है, बहुतों को जीवन जीने की दृष्टि दी है। जीवन की कठिन परीक्षा की घड़ियों में यह बात और भी लागू होती है। जैसा कि सब जानते हैं, भगवद्गीता महाभारत में कुरुक्षेत्र के युद्धक्षेत्र में अर्जुन को भगवान कृष्ण का दिया हुआ उपदेश है। इसका केन्द्र बिन्दु तो निष्काम कर्म है लेकिन इसमें स्थिप्रज्ञता से लेकर योग मार्ग, भक्तियोग, कर्मयोग, ज्ञान योग जैसे उतने ही महत्तर अन्य आयामों का भी गहन उद्घाटन है। गीता के अनेक भाष्यकारों ने, अपने रुझान के अनुसार, किसी एक आयाम को अपेक्षाकृत अधिक महत्त्व दिया है। लेकिन डॉ. शकुन्तला मिश्रा ने श्रीकृष्ण उवाच में सभी अध्यायों और सभी आयामों को समान महत्त्व दिया है। दरअसल, उन्होंने स्वयं का कोई दृष्टिकोण या आग्रह न थोपकर गीता का मर्म- सार प्रस्तुत करने की कोशिश की है। इसकी उपयोगिता से कौन इनकार करेगा !
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