Nagrik Samaj By Basant Tripathi
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Nagrik Samaj By Basant Tripathi
नागरिक समाज – बसन्त त्रिपाठी
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SKU: | nagrik-samaj-by-basant-tripathi |
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Category: | Kavita Sangraha |
Tags: | Basant Tripathi, hindi ke kavi, kavita in hindi, Kavita Sangraha, kavitayen in hindi, kavitri, kavitri in hindi, कविता किताब हिंदी, कविता हिन्दी, कवित्री, हिंदी कवि |
ISBN | 9789391277970 |
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Author | Basant Tripathi |
Binding | Hardcover |
Pages | 136 |
Publisher | Setu Prakashan Samuh |
Imprint | Setu Prakashan |
Language | Hindi |
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समय गति है, जिससे स्थायी-स्वभाव वाली स्मृति उलझती रहती है। समय और स्मृति के इसी उलझाव- सुलझाव में हमारी पहचान पोशीदा है। अज्ञेय जब कहते हैं कि ‘होना’ और ‘मैं’ दोनों स्मृति में बँधे हैं या ‘स्मरण करना’ ‘होना’ है तो सिलसिला ‘सर्वशास्त्राणं प्रथमं ब्रह्मणां स्मृतम्’ तक पहुँचता है। अर्थात् प्राचीनता के साथ नित्य नवीनता तक।
बहुत सम्भव है चन्द्रकुमार ने इसीलिए स्मृतियों को चुनना पसन्द किया हो। अक्सर/ स्मृतियाँ ही चुनता हूँ/ मैं प्रेमी से ज़्यादा/ कवि बनकर जीता हूँ। -
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