‘शतरंज के खिलाड़ी’ कहानी मुंशी प्रेमचंद की अमर कहानी है। यह एक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर आधारित राजनीतिक कहानी है। कहानीकार ने प्रस्तुत कहानी में उन अनेक कारणों में से एक विशिष्ट कारण की ओर ध्यान आकर्षित किया है, जो भारत में पराधीनता की जड़ों को मजबूत करता था। यही विशिष्ट कारण था- शतरंज का खेल। आलोच्य कहानी में यह दर्शाने का प्रयास किया गया है कि शतरंज की बिसात पर बैठे शतरंज के नशे में चूर खिलाड़ी किस प्रकार देश की स्वाधीनता को दांव पर लगा रहे थे।
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मुंशी प्रेमचंद का जन्म 30 जुलाई 1980 को वाराणसी जिले के लम्हे नामक गांव में हुआ था ।
प्रेमचंद की माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम मुंशी अजायबराय था,
हिंदी साहित्य का उपन्यास सम्राट भी कहा जाता है।
वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव था।
जब मुंशी प्रेमचंद सात साल के थे, तभी उनकी माता का स्वर्गवास हो गया।
पिताजी के दबाव में आकर मुंशी प्रेमचंद ने 14 वर्ष की आयु में ही विवाह कर लिया।
1906 में मुंशी प्रेमचंद का दूसरा विवाह शिवरानी देवी से हुआ जो बाल-विधवा थीं।
प्रेमचंद जी के तीन संताने थी – श्रीपत राय, अमृत राय और कमला देवी।
मुंशी प्रेमचंद ने 1910 में अंग्रेज़ी, दर्शन, फ़ारसी और इतिहास लेकर इण्टर किया
1919 में मुंशी प्रेमचंद ने अंग्रेजी, फ़ारसी और इतिहास लेकर बी. ए. किया।
8 अक्टूबर 1936 को मुंशी प्रेमचंद का लम्बी बीमारी के कारण निधन हो गया।
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