Description
अपने नाम के ही अनुरूप ध्रुव शुक्ल का यह उपन्यास एक टॉकीज़
है। उसमें एक चलचित्र-फलक भी है जिस पर अनेक फिल्मों के दृश्य उभरते बीतते हैं और वह प्रेक्षागृह भी जहाँ से ये उभरते-बीतते दृश्य देखे जाते हैं।
About the Author:
11 मार्च, 1953 को मध्य प्रदेश के सागर शहर में जन्मे ध्रुव शुक्ल विगत चालीस वर्षों से हिन्दी की साहित्यिक बिरादरी में शामिल हैं। उन्होंने महात्मा गाँधी की पुस्तक हिन्द स्वराज्य
को केन्द्र में रख कर पूज्य पिता के सहज सत्य पर
नाम से एक चर्चित पुस्तक के अलावा मध्य प्रदेश के लोक आख्यान, भीलों के मदनोत्सव भगोरिया और आदिवासी संस्कृति पर मोनोग्राफ़ लेखन भी किया है। उनकी पुस्तकों में अब तक पाँच कविता-संग्रह, शाइरी की एक किताब, तीन उपन्यास, एक कहानी-संग्रह, कृति-केन्द्रित समीक्षा-पुस्तक, सामयिक विषयों पर तीन निबन्ध-संग्रह, ‘यह दिन सब पर उगा है’ इनकी रचनाओं का संचयन। मध्य प्रदेश कला परिषद् और बाद में भारत भवन भोपाल से प्रकाशित पत्रिका पूर्वग्रह में आठ वर्षों तक सह-सम्पादक और बाद में मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी के सचिव और साक्षात्कार पत्रिका के सम्पादक रहे। मध्यप्रदेश शासन ने 2019 में ध्रुव शुक्ल को धर्मपाल शोधपीठ के निदेशक पद पर मनोनीत किया। ध्रुव शुक्ल को भारत के राष्ट्रपति ने कथा अवॉर्ड से, गाँधी शान्ति प्रतिष्ठान ने गाँधी पीस अवॉर्ड फॉर लिटरेचर से, मध्य प्रदेश लेखक संघ ने अक्षर आदित्य सम्मान से, मध्य प्रदेश कला परिषद् ने कविता के लिए रज़ा पुरस्कार से, आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी राष्ट्रीय स्मारक समिति ने लोकसेवा सम्मान से सम्मानित किया है। उन्हें कृष्ण बलदेव वैद सम्मान भी प्रदान किया गया है। भारत सरकार के संस्कृति विभाग और रज़ा फाउण्डेशन दिल्ली ने उन्हें फैलोशिप के लिए चुना है।
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