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Chauri-Chaura Par Aoupniveshik Nyay (PaperBack)

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चौरी चौरा पर औपनिवेशिक न्याय – सुभाष चन्द्र कुशवाहा


4 फरवरी 1922 की चौरी चौरा की घटना ने राष्ट्रीय आन्दोलन पर एक गहरी छाप छोड़ी है। इस घटना की वजह से असहयोग आन्दोलन को पूरे देश से उस समय वापस ले लिया जब वह अपने चरम पर था। जिनके द्वारा पुलिसकर्मी मारे गये थे उन्हें दोषी ठहराया गया और उनमें से कुछ को फाँसी हुई और कुछ को लम्बे समय तक कठोर कारावास की सजा भुगतनी पड़ी थी। सुभाष चंद्र कुशवाहा ने समकालीन समाचार पत्रों की रिपोर्टों एवं दस्तावेजों को, जो ज्यादातर अँग्रेजी से हिन्दी में और वहीं कुछ दस्तावेजों, जैसे इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को अँग्रेजी में एक साथ प्रस्तुत करके हमारे राष्ट्रीय आन्दोलन-इतिहास के सभी छात्रों की महान् सेवा की है।
श्री कुशवाहा को इस पुस्तक को तैयार करने में किये गये श्रम के लिए बधाई दी जानी चाहिए। चौरी चौरा काण्ड, 4 फरवरी, 2022 की आने वाली शताब्दी तिथि के मद्देनजर उनका काम बहुत सामयिक है। हमारे राष्ट्रीय आन्दोलन के इतिहास में रुचि रखने वाले सभी लोगों को श्री कुशवाहा से बहुत कुछ सीखने को मिलेगा। कुशवाहा का यह संकलन बहुत ही मूल्यवान है। इस तथ्य को हमेशा ध्यान में रखना चाहिए कि जिन लोगों ने पुलिसकर्मियों पर हमला किया, उनका मानना था कि वे देश की सेवा कर रहे हैं; और इसके लिए जिन लोगों को मौत की सजा मिली, उन्हें राष्ट्र के शहीदों में शामिल किया जाना चाहिए।
– प्रो इरफ़ान हबीब
07.10.2021


यह असहयोग आन्दोलन मुख्य रूप से दो संस्थाओं के हाथों में था, जिनको ‘कांग्रेस’ और ‘खिलाफत’ कहा जाता था। जिन दिनों सम्बद्ध घटनाएँ हुईं, उस समय तक ये दोनों संस्थाएँ लगभग एक बन चुकी थीं और उन्होंने कामयाबी के साथ एक विशाल अर्द्ध-सैनिक संगठन खड़ा कर लिया था जिसे ‘नेशनल वालंटियर्स’ कहा जाता था।
– जज थियोडोर पिगॉट
जो लोग चौरी चौरा घटना के बाद गिरफ्तार किये गये, वे पूरे जनपद के थे। उन्हें बेलगाम प्रशासन ने संगीनों और दूसरे आतंकी तरीकों से चुप करा दिया और उन पर पुलिसवालों की हत्या का अभियोग लगा दिया। 22 पुलिसवाले (वास्तव में कुल 24) मारे गये थे लेकिन भेदभावपरक औपनिवेशिक न्याय पद्धति ने इस तथ्य की अनदेखी की कि शान्तिपूर्वक प्रदर्शन कर रहे लोगों पर पुलिस ने गोली चलानी शुरू की जिससे कई लोग मारे गये, कई घायल हुए। हजारों की भीड़ में मरने वालों की संख्या निश्चय ही अधिक होगी। 172 लोगों में से बहुत से भूखे किसान हैं। वे इतने भूखे हैं कि अगर उन्हें फाँसी दे दी जाती है तो वे ‘आजादी के लिए युद्ध’ की भारी कीमत चुकाएँगे। यह न्यायिक हत्या, कानून व्यवस्था और अच्छी सरकार के नाम पर की जा रही है। वास्तविक अपराधी तो वे हैं जिन्होंने इनकी असहनीय आर्थिक दशा बनायी है और इनके अधिकारों को छीन लिया है।
– मानवेन्द्र नाथ रॉय जुरिच, 2 फरवरी 1923


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Description

Chauri-Chaura Par Aoupniveshik Nyay By Subhash Chandra Kushvaha


About the Author:

सुभाष चन्द्र कुशवाहा
जन्म : 26 अप्रैल 1961
जन्म-स्थान : ग्राम जोगिया जनूबी पट्टी, फाजिलनगर, कुशीनगर, उ.प्र.
शिक्षा :
स्नातकोत्तर (विज्ञान) सांख्यिकी ।
प्रकाशन
: साहित्य और इतिहास की लगभग दो दर्जन पुस्तकें प्रकाशित। कई अन्य का लेखन जारी। चौरी चौराः विद्रोह और स्वाधीनता आन्दोलन, अवध का किसान विद्रोह, भील विद्रोहः संघर्ष के सवा सौ साल, टण्ट्या भीलः द ग्रेट इण्डियन मूनलाइटर आदि महत्त्वपूर्ण इतिहास पुस्तकें। कई पत्रिकाओं के विशेषांकों का अतिथि सम्पादन ।
सम्मान :
‘सृजन सम्मान’, प्रेमचन्द स्मृति कथा सम्मान, आचार्य निरंजननाथ सम्मान, पुरवैया ‘शिखर सम्मान’ आदि।

Additional information

Author

Subhash Chandra Kushvaha

Binding

Paperback

Pages

296

Publisher

Setu Prakashan Samuh

Imprint

Setu Prakashan

Language

Hindi

ISBN

9789392228582

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