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Vimarsh Aur Vyaktitva By Virendra Yadav

Original price was: ₹400.00.Current price is: ₹320.00.

वीरेन्द्र यादव हमारे समय के हिन्दी के प्रख्यात समालोचक हैं, खासकर कथा आलोचना में वह बराबर सक्रिय रहे हैं। साथ ही वे जुझारू, निर्भीक बौद्धिक हैं, जो अपनी बात बेहद साफगोई से रखते हैं। उनके ये दोनों गुण इस पुस्तक में एकसाथ हैं। इसलिए उनकी यह पुस्तक आलोचना तक सीमित नहीं है। इसमें जहाँ मूल्यांकनपरक लेख और व्याख्यान शामिल हैं, वहीं कुछ समकालीनों तथा अग्रज पीढ़ी के लेखकों के संस्मरण भी हैं। जैसा कि किताब के नाम से भी जाहिर है, इसमें हमः विमर्श से भी रूबरू होते हैं और व्यक्तित्वों से भी। विमर्श का दायरा विस्तृत है। इसमें प्रेमचन्द, गुण्टर ग्रास, नीरद चौधरी, पूरन चन्द जोशी, कृष्णा सोबती, राजेन्द्र यादव, डॉ धर्मवीर और अरुन्धति राय के चिन्तन की पड़ताल है तो गीतांजलि श्री के कथा सरोकार की भी। कहना न होगा कि पुस्तक में शामिल निबन्ध, साक्षात्कार आदि सन्दर्भित विषय के बारे में पाठक को पर्याप्त सूचनाएँ भी देते हैं और अधिक गहराई से सोचने-समझने में मदद भी करते हैं। अनेक व्यक्तित्वों के बारे में वीरेन्द्र यादव ने अपनी यादें यहाँ साझा की हैं। स्वाभाविक ही इन्हें पढ़ते हुए अधिकतर लखनऊ और कहीं-कहीं इलाहाबाद के उन दिनों के साहित्यिक परिवेश की झाँकी भी मिलती चलती है। लेकिन अनेक संस्मरण ऐसे भी हैं जो सम्बन्धित रचनाकार के विशिष्ट योगदान को भी रेखांकित करते चलते हैं। जहाँ भी जरूरी लगा, लेखक ने अपनी असहमतियाँ भी दो टूक दर्ज की हैं। इसमें दो राय नहीं कि लेखों, व्याख्यानों, संस्मरणों तथा भेंटवार्ताओं से बनी यह किताब बेहद पठनीय है।


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Description

Vimarsh Aur Vyaktitva By Virendra Yadav

विमर्श और व्यक्तित्व – वीरेन्द्र यादव


जरूरत है हिन्दी लेखकों व बौद्धिकों द्वारा आत्मालोचना और अपनी भूमिका पर ठहरकर विचार करने की। हिन्दी समाज और साहित्य का वर्तमान परिदृश्य गम्भीर चिन्ता का विषय है। आज जनतन्त्र और संविधान को बचाने की चुनौती महज राजनीतिक न होकर सामाजिक और सांस्कृतिक भी है। ऐसे ही समयों के लिए प्रेमचन्द ने कहा था कि “साहित्य राजनीति के पीछे चलने वाली चीज नहीं, उसके आगे-आगे चलने वाला ‘एडवांस गार्ड’ है।” क्या हिन्दी लेखक अपनी इस भूमिका के निर्वहन के प्रति सजग है ?

– इसी पुस्तक से

Additional information

Author

Virendra Yadav

Binding

Paperback

Language

Hindi

ISBN

978-93-6201-278-4

Pages

264

Publisher

Setu Prakashan Samuh

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