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Rangpat 1 (Paramparik Lokdrishya-Kavya) By Aabha Gupta Thakur

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रंगपट-1 – आभा गुप्ता ठाकुर


भारत सघन सांस्कृतिक परंपराओं वाला देश रहा है। इन सांस्कृतिक परंपराओं का प्रतिबिंबन कई कला-रूपों में हुआ है। इसी में एक कला-रूप नाटक है। नाटक विश्वभर की सभ्य संस्कृतियों में सबसे प्राचीन कला-विधा के रूप में मौजूद है।
भारत में संस्कृत नाटकों की समृद्ध परंपरा रही है। संस्कृत के शास्त्रीय राज्याश्रित रंगमंच के समांतर विविध लोकरंग परंपराएँ जन बोलियों में विकसित थीं। समय के साथ स्थिर एकीकृत राजनीतिक व्यवस्था की समाप्ति के कारण राज्याश्रित रंगमंच टूट गया। धार्मिक संस्थानों व समुदायों द्वारा संरक्षित रंगमंच भी नयी विकसित होती भाषाओं की काव्य-परंपराओं की लोकप्रियता के सम्मुख स्वयं को स्थापित न रख सका।
क्षीण होती संस्कृत नाट्य-परंपरा का स्थान लेने के लिए विभिन्न क्षेत्रों की सहज लोक परंपराएँ धीरे-धीरे सामने आयीं। संस्कृत रंगमंच के टूटने के बाद संस्कृत रंग-परंपरा पुनः अपनी जड़ों की ओर, लोकरंग परंपराओं की ओर वापस लौटी और इससे सृजनात्मक स्फूर्ति नये रंग प्रयोगों को मिली।

इस संयोजन से भारतीय रंगमंच में नये युग का प्रारंभ हुआ जो वस्तुतः संस्कृत रंगमंच और आधुनिक रंगमंच की योजक कड़ी बना। एक हजार वर्षों तक फैले लोकरंगमंच के इस युग को देश की सांस्कृतिक विविधता का विस्तृत आकाश मिला। यही वजह है कि इस विकसित लोक-नाट्य शैलियों की परंपरा कश्मीर से कन्याकुमारी तक और महाराष्ट्र से मणिपुर तक दिखाई पड़ती है।
लोक-नाट्य परंपरा सामाजिक, समावेशी और वैविध्यपूर्ण सांस्कृतिक एकता का परिचायक रही है, जिसमें उत्सवधर्मी जनमानस के उल्लास को अभिव्यक्ति मिली है। उत्सवधर्मिता गीत व संगीत के बिना संभव नहीं है। यही वजह है कि पारंपरिक लोकरंग शैलियों में गीत, नृत्य और अभिनय अलग-अलग न होकर समवेत रूप में कार्य करते हैं।

पश्चिम की यथार्थवादी नाट्य परंपरा और जीवन की जटिल परिस्थितियों की अभिव्यक्ति के कारण नाटकों में काव्य-तत्त्वों की उपस्थिति कम होती जा रही है। काव्य-तत्त्वों के लिए घटते स्पेस ने समकालीन रंग-परिदृश्य में कविता के रंगमंच के लिए जगह बनायी और कविता के नाट्य-रूपों में प्रस्तुति की शुरुआत हुई। हिंदी की अधिकांश लंबी कविताएँ नाटकीय संभावनाओं से युक्त हैं।
समस्त रंगकर्म को समेकित दृष्टि से पहचानने की कोशिश करती इस पुस्तक के दो आयाम हैं। एक ओर यह पारंपरिक भारतीय रंगमंच के लोक पक्ष की समस्त विशेषताओं को उद्घाटित करती है, तो दूसरी ओर कविता की रंग परिकल्पना को तलाशती है। इस रूप में यह पुस्तक नाटकों में काव्य और काव्यों में नाटकत्व की क्षमताओं और संभावनाओं की तलाश करती है।


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Description

Rangpat 1 (Paramparik Lokdrishya-Kavya) By Aabha Gupta Thakur


About The Author

आभा गुप्ता ठाकुर

जन्म : आगरा 1969 ई.। उपलब्धियाँ : भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद् की ओर से इटली के ‘लॉ’ ओरियंटल विश्वविद्यालय में अध्यापन, 2016
वर्ष 1989 में लेडी श्रीराम कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय की सर्वश्रेष्ठ छात्रा घोषित । ‘द संडे इंडियन’ पत्रिका द्वारा 21वीं सदी की 111 हिंदी लेखिकाओं में शामिल किया गया।
प्रकाशन : ‘तुम शिव नहीं हो’ (काव्य-संग्रह), ‘समय के निकष पर मोहन राकेश का रंगकर्म’, ‘रंग-यात्रा’ (आलोचना), ‘संस्कृति का ताना-बाना’ (अनुवाद), ‘विश्व की प्रतिनिधि कहानियाँ’ (संकलन), अनेक पत्र-पत्रिकाओं में लेख प्रकाशित ।

Additional information

ISBN

9789389830422

Author

Aabha Gupta Thakur

Binding

Paperback

Pages

292

Publisher

Setu Prakashan Samuh

Imprint

Setu Prakashan

Language

Hindi

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