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Yugcharan Dinkar By Savitri Sinha

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युगचरण दिनकर – सावित्री सिन्हा

‘युगचारण दिनकर’ अक्टूबर 1963 ई. में पहले पहल प्रकाशित हुई थी। लेखिका सावित्री सिन्हा थीं। ‘थीं’ कह रही हूँ क्योंकि यह किताब बहुत दिनों से ‘आउट ऑफ प्रिंट’ थी। तकरीबन 25 वर्ष से ज्यादा समय से अनुपलब्ध इस पुस्तक पर मेरी नजर अपने विद्यार्थी जीवन से ही रही है। बी.ए. और फिर एम.ए. करते समय हमलोग इस पुस्तक की तलाश में लाइब्रेरी दर लाइब्रेरी भटकते रहे। इस भटकाव का कारण यह था कि हर पुस्तकालय में यह पुस्तक उपलब्ध तो थी, पर किसी पुस्तकालय में पूरी पुस्तक नहीं थी। हर पुस्तकालय में यह घनघोर और जागरूक विद्यार्थियों की कृपा का शिकार थी। मतलब किताब के पृष्ठ बीच से फाड़ डाले गये थे। खासतौर से वे पृष्ठ जो पाठ्यपुस्तक से संबंधित थे। चूँकि लंबे समयांतराल में दिनकर जी की अलग-अलग पुस्तकें पाठ्यक्रम में शामिल हुई थीं, अतः अलग-अलग समयों में अलग- अलग पृष्ठ फटे थे।

जब हमने प्रकाशन की योजना बनायी और यह निर्धारित किया कि हर सेट में एक पुरानी पुस्तक का नया संस्करण निकालेंगे, तो मेरी पहली पसंद यह पुस्तक ही बनी। इस पुस्तक को प्रकाशित करने की योजना नेशनल पब्लिशिंग हाउस कई बार बना चुका है। इसकी जानकारी मुझे है, क्योंकि डॉ. हरदयाल ने तब (करीब 12-13 वर्ष पूर्व) इसकी एक भूमिका भी लिखी थी। डॉ. हरदयाल को कई पुस्तकों के समन्वयन से एक साबूत पुस्तक बना कर दी थी अमिताभ राय ने, पर वह पुस्तक किन्हीं कारणों से आज तक प्रकाशित न हो सकी।
 
अब एक लंबे अंतराल के बाद ‘सेतु प्रकाशन’ से यह पुस्तक छप रही है। इसे प्रकाशित करते हुए ‘सेतु प्रकाशन’ हर्ष और गौरव का अनुभव कर रहा है। अच्छी पुस्तक प्रकाशित करना, एक प्रकाशक के रूप में, इस गौरव का एक आधार है। यह पुस्तक दिनकर

जी पर प्रकाशित पुस्तकों में अन्यतम है। इसमें इस पुस्तक के प्रकाशित होने तक, दिनकर जी की प्रकाशित सभी पुस्तकों पर विचार किया गया है। इसमें इनकी सभी पुस्तकों का विवरणात्मक परिचय तो है ही, साथ ही इसका गहरा विश्लेषण और विवेचन भी है। यह विश्लेषण और विवेचन एकांगी नहीं है। इसमें समय और समाज की प्रत्येक धड़कन के आलोक में दिनकर की कविताओं का विकास रेखांकित किया गया है। साथ ही दिनकर जी के काव्य विकास को सावित्री सिन्हा ने समष्टिमूलक और व्यष्टिमूलक चेतना के आधार पर पकड़ने की कोशिश की है। इसीलिए उन्होंने काव्य-चेतना के विकास को दो अध्यायों में विभक्त किया है। इस पुस्तक की एक और बड़ी विशेषता है- दिनकर के काव्य-शिल्प का विस्तृत विवेचन। इस विवेचन के पूर्व बहुधा दिनकर के काव्य पर ही लोगों का ध्यान रहा। उनकी कविता की शैल्पिक विशेषताएँ विद्वानों के नजरिए से अक्सर ओझल ही रहीं। इस पुस्तक के महत्त्व का अनुमान इस तथ्य से भी ज्ञात होता है कि दिनकर पर बाद में काम करने वाले बहुत सारे विद्वानों के लिए यह पुस्तक आधार सामग्री का कार्य करती है। कई पुस्तकें इसके आधार पर लिखी गयीं तथा कई पाठकों की समझ का आधार भी यह पुस्तक बनी है।

इस पुस्तक की भाषा में हमने न्यूनतम छेड़छाड़ की है। चूँकि इस पुस्तक का पुनर्मुद्रण हो रहा है और इसे हम संपादित नहीं करा रहे, इसीलिए ऐसा करना सेतु प्रबंधन को उचित जान पड़ा।

अतः इस पुस्तक का महत्त्व समझते हुए इसे पुनः प्रकाशित करते हुए ‘सेतु प्रकाशन’ आनंदित और उत्साहित महसूस कर रहा है। आशा है पाठक और विद्वान इसका स्वागत करेंगे और यह उनके लिए उपयोगी साबित होगी।

– अमिता पाण्डेय


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Description

About the Author:

जन्म: 2 फरवरी, 1922, मृत्यु: 25 अगस्त, 1972 शिक्षा: 1945 में एम.ए. लखनऊ विश्वविद्यालय (प्रथम स्थान) 1951 में दिल्ली विश्वविद्यालय से ‘मध्ययुगीन हिंदी कवयित्रियाँ’ विषय पर पी-एच.डी., 1960 में लखनऊ विश्वविद्यालय से ‘ब्रजभाषा काव्य में अभिव्यंजनावाद’ पर डी.लिट्.। 1946 में इंद्रप्रस्थ कॉलेज में प्राध्यापक। 1950 में दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग मे रीडर और 1968 में प्रोफेसर नियुक्त हुई। प्रमुख पुस्तकें : ‘मध्ययुगीन हिंदी कवयित्रियाँ’, ‘ब्रजभाषा के कृष्णभक्ति काव्य में अभिव्यंजना-शिल्प’, ‘युगचारण दिनकर’ और ‘तुला और तारे’ (मौलिक ग्रंथ); ‘अनुसंधान का स्वरूप’, ‘अनुसंधान की प्रक्रिया’, ‘दिनकर’, ‘मुट्टियों में बंद आकाश’, नागरी प्रचारिणी सभा से प्रकाशित ‘हिंदी साहित्य का वृहद् इतिहास’ : प्रसादोत्तर नाटक खंड (उत्कर्ष काल) और ‘पाश्चात्य काव्यशास्त्र की परंपरा’ (संपादित ग्रंथ)। पुरस्कार : डी.लिट्. के प्रबंध पर उत्तर प्रदेश सरकार का विशेष पुरस्कार’। लखनऊ विश्वविद्यालय द्वारा बनर्जी रिसर्च पुरस्कार।

Additional information

ISBN

9788194047063

Author

Savitri Sinha

Binding

Hardcover

Pages

296

Publisher

Setu Prakashan Samuh

Imprint

Setu Prakashan

Language

Hindi

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