Description
बनारस…बनारस कई अर्थों और चेतनाओं के साथ भारतीय मनीषा का अभिन्न अंग रहा है। भारत, विशेष तौर से उत्तर भारत की परिपक्व मनीषा का अभिभाज्य अंग है बनारस। इसे प्रत्येक मानुष समझता है परंतु जब कोई सामाजिक बनारस में निरंतर रह रहा है, तो संवेदनशील सामाजिक की चेतना का बहुमुखी हो जाना स्वाभाविक बात है। श्रीप्रकाश शुक्ल का नवीन संग्रह ‘क्षीरसागर में नींद’ इस बहुमुखता को काव्यात्मक आस्वाद का हिस्सा बनाता है। यात्रा भीतर यात्रा/यात्रा भीतर घर/ घर भीतर यात्रा’–यात्रा और यात्रा के बीच जो विस्तृत स्पेस है, उस काव्यात्मक स्पेस की विशेषता ही यही है कि वह गतिशील होता है, बहुमुखी होता है, विविधवी होता है। इस स्पेस में ही कवि पाता है-‘जो यातना में होता है बहुत ज़िद्दी होता है।’ यह जिद और यातना, गति और यात्रा परंपरा के गतिशील अनुशासन से उभरती है। यह गतिशील अनुगमन इस संग्रह की केंद्रिकता है। संग्रह की कविताओं में यात्रा का एक स्तर भौतिक स्थितियों के आभ्यंतरीकरण से भी निर्मित हुआ है। इसी कारण दार्जिलिंग में, जो प्राकृतिक सुषमा विकास है, ‘वह वर्षों से उग रहा था’ कवि के भीतर, ‘बस उसे देखने की ऊँचाई नहीं थी’। यह ऊँचाई कवि अपनी काव्यात्मक यात्रा के विकास में पाता है करुणा, संवेदनशीलता आदि भावों के कारण। संग्रह की कविताओं में अंत:सलिला के रूप में राजनीतिक चेतना प्रवहमान है। इस चेतना के बिना ‘बुरे दिनों का ख़्वाब’, ‘यात्रा’, ‘विरोध का होना’ आदिकविताओं तथा ‘पक्का महाल’ श्रृंखला की कविताएँ लिखा जाना असंभव है। सक्रिय राजनीतिक चेतना के बिना यह संग्रह बन ही नहीं सकता था। क्षीरसागर में नींद’ भी इसी राजनीतिक समझ का प्रमाण है। राजनीति ने इन कविताओं को एक दूसरे रूप में भी प्रभावित किया है। इसने कविताओं में व्यंग्य के सहारे लाक्षणिकता को विकसित किया है। क्षीरसागर क्या है? निश्चितरूपेण यह आज का भारत है। फिर नींद किसको लगी है या लग रही है? यह दोतरफा है। लोकतांत्रिक राज्यों-राष्ट्रों में सत्ता की बागडोर जनता के हाथ होती है। जनता अच्छे और गतिशील समाज के निर्माण के लिए उत्तरदायी और जिम्मेदार होती है। वह भी नींद में है तो दूसरी ओर उसके द्वारा चुने गये नुमाइंदे भी नींद में हैं। इस पूरे संग्रह में व्यंग्य, प्रतीक, रूपक कवि के काव्यात्मक टूल्स हैं। इस संग्रह की एक विशेषता है-उसकी लयात्मकता। लय कहीं तुक से निर्मित हुआ है, तो कहीं स्थितियों के संघात से। लय का अर्थ छंद नहीं होता। आधुनिक कविता में लय छंद से निर्मित नहीं होता। लय जीवन की स्थितियों के गंभीर संघात से निर्मित होता है। इस संग्रह में जीवन की विभिन्न स्थितियों का गहरा संघात तो है ही। हाँ, यह बात अलग है कि कहीं-कहीं कवि ने छंदों का भी इस्तेमाल किया है। इस संग्रह में घटनाओं के यथातथ्य विवरण का घटाटोप नहीं है। वर्तमान की घटनाओं के सहारे ही काव्यात्मक संसार निर्मित हुआ है, पर वे घटनाएँ ही काव्यात्मक संसार नहीं हैं। यह एक ऐसी विशेषता है, जो इस संग्रह को वर्तमान की जमीन से आगे भी ले जाता है। साथ ही वर्तमान समय के संग्रहों में एक विशिष्ट पहचान भी देता है।
About Author
श्रीप्रकाश शुक्ल
जन्म : 8 मई 1965 को सोनभद्र जिले के बरवाँ गाँव में।
शिक्षा : एम.ए. (हिंदी), पी.एच.डी.।
प्रकाशित कृतियाँ : कविता संग्रह : ‘अपनी तरह के लोग’, ‘जहाँ सब शहर नहीं होता’, ‘बोली बात’, ‘रेत में आकृतियाँ’, ‘ओरहन और अन्य कविताएँ’, ‘कवि ने कहा’, ‘क्षीर सागर में नींद’; आलोचना : ‘साठोत्तरी हिंदी कविता में लोक सौंदर्य’ और ‘नामवर की धरती’; संपादन : साहित्यिक पत्रिका ‘परिचय’ का संपादन।
पुरस्कार : कविता के लिए ‘बोली बात’ संग्रह पर वर्तमान साहित्य का मलखानसिंह सिसोदिया पुरस्कार, ‘रेत में आकृतियाँ’ नामक कविता संग्रह पर उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का नरेश मेहता कविता पुरस्कार, ‘ओरहन और अन्य कविताएँ’ नामक कविता संग्रह के लिए उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का विजयदेव नारायण साही कविता पुरस्कार।
वर्तमान में बी.एच.यू. के हिंदी विभाग में प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं तथा भोजपुरी अध्ययन केंद्र, बी.एच.यू. के समन्वयक हैं।
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