WAH HANSI BAHUT KUCH KEHTI THI – Rajesh Joshi

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Wah Hansi Bahut Kuch Kehti Thi – Rajesh Joshi

मुझे लगता है कि जिस सृजनात्मक साहित्य, कला और संगीत को बाजार कमोडिटी में तब्दील नहीं कर पाता वह उससे डरता हैं। वह उसके खिलाफ तरह-तरह के प्रपंच रखता है। बाजार का यह डर दिनोदिन बढ़ रहा है।

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वह हँसी बहुत कुछ कहती थी

मुझे लगता है कि जिस सृजनात्मक साहित्य, कला और संगीत को बाजार कमोडिटी में तब्दील नहीं कर पाता वह उससे डरता हैं। वह उसके खिलाफ तरह-तरह के प्रपंच रखता है। बाजार का यह डर दिनोदिन बढ़ रहा है। वह मनुष्य को सृजनात्मकता को एक निरर्थक चीज़ के रूप में पेश करने को कोशिश कर रहा है। वस्तुतः बाजार का यह प्रचार ही बाजार की पराजय का प्रमाण हैं।

बाजार की विजय के बड़बोलेपन में ही उसको पराजय अंतर्निहित है और सृजनात्मकता के प्रति निराशा में उसकी आशा और उसकी सार्थकता भी।

About Author

राजेश जोशी

जन्म : 18 जुलाई, 1946 नरसिंहगढ़, मध्यप्रदेश।
किस्सा कोताह (उपन्यास), समरगाथा (एक लम्बी कविता) के साथ ही पाँच कविता संग्रह : एक दिन बोलेंगे पेड़, मिट्टी का चेहरा, नेपथ्य में हँसी, दो पंक्तियों के बीच, चाँद की वर्तनी, धूप घड़ी (एक दिन बोलेंगे पेड़ और मिट्टी का चेहरा का संयुक्त संस्करण), गेंद निराली मीठू की (बच्चों के लिए कविताएँ), ब्रह्मराक्षस का नाई (बच्चों के लिए नाटक), सोमवार और अन्य कहानियाँ तथा कपिल का पेड़ : कहानी संग्रह।

ISBN

9789389830101

Author

Rajesh Joshi

Binding

Paperback

Pages

160

Publisher

Setu Prakashan Samuh

Imprint

Setu Prakashan

Language

Hindi

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